02 फ़रवरी 2009

सिख धर्म के पांच चिन्ह


श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने सन् १६९९ ई। की बैसाखी वाले दिन खालसा पंथ की नींव रखी। उन्होंने इस दिन सिखों को दीक्षित करने के लिये खंडे – बाटे का अमृत-पान करने की परंपरा शुरु की। गुरु की चरण-पाहुल की जगह गुरुबानी का पाठ करते हुये खंडे तथा – बाटे के प्रयोग द्वारा अमृत तैयार करके, उसे सिख को पिला कर दीक्षित करना शुरू किया। उन्होंने सिख को इस दिन एक अनूठी पहचान भी प्रदान की जिसे प्रत्येक दीक्षित सिख के लिये धारण करना अनिवार्य कर दिया। इस पहचान के अंतर्गत पांच चीजें आती हैं। प्रत्येक चीज का नाम ‘क’ अक्षर से प्रारंभ होने के कारण इसे ‘पांच ककार’ कहा जाता है। ये ‘ककार’ निम्नलिखित हैं - :

1) केशः-
प्रत्येक सिख को हुकुम है कि वह जन्म से मृत्यु पर्यंत अपने शरीर के केशों की सम्भाल करे। सिर से पैरों के नख अर्थात शरीर के किसी भी हिस्से के केश सिख न तो काटेगा न उखाड़ेगा। वह इन्हें मूलभूत रुप में संभालकर रखेगा। उल्लेखनीय है कि केश संत की पहचान होते हैं। श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी में केशों को कत्ल करने वाले व्यक्ति को ‘बेईमान’ कहकर संबोधित किया गया है।

2) कंघाः-
लकड़ी की बनी हुई छोटी कंघी सिख को हमेशा अपने केशों में सजाकर रखने का हुकुम है। प्रत्येक सिख (नर तथा नारी) को दिन में दो वक्त अपने केशों में कंघा करने का आदेश है ताकि केश साफ-सुथरे रखे जा सकें।

3) कच्छाः-
यह तिरछे (उरेब) कपड़े से सिला हुआ लंबा पहनने का अंन्तर्वस्त्र है। जो सिख की जत-सत की निशानी है।

4) कड़ाः-
लोहे का बना हुआ कड़ा प्रत्येक सिख को अपनी दाईं कलाई पर पहनने का हुकुम है।

5) कृपाण:-
स्वयं की तथा मजलूम की रक्षा के लिये प्रत्येक सिख को अपने साथ हर वक्त कृपाण रखने का आदेश है उल्लेखनीय है कि अन्तिम उपाय के तौर पर ही इसका इस्तेमाल करने का उपदेश है। कृपाण सिपाही होने की निशानी है।