जन सामान्य की पीड़ा निवारण में रामचरित मानस और हनुमान चालीसा की चौपाइयां और दोहे जातक की कुंडली में व्याप्त ग्रह दोष और पीड़ा निवारण में सहायक हो सकते हैं। इन्हें सुगमता से समझा जा सकता है और श्रद्धापूर्वक पारायण करने से लाभ मिल जाता है। मानस की चौपाइयों में मंत्र तुल्य शक्तियां विद्यमान हैं। इनका पठन,मनन और जप करके लाभ लिया जा सकता है।
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प्रेम प्राप्ति
भुवन चारिदस भरा उछाहु।
जनक सुता रघुबीर बिआहू।।
गरल सुधा रिपु करहिं मिताई।
गोपद सिंधु अनल सितलाई।।
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रोजगार के लिए
बिस्व भरन पोषन कर जोई।
ताकर नाम भरत अस होई।।
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क्लेश निवारण
हरन कठिन कलि कलुष कलेसू।
महामोह निसि दलन दिनेसू।।
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विध्न्न -बाधा निवारण
प्रणवों पवनकुमार खल बन पावक ग्यान घन।
जासु ह्वदय आगार बसहि राम सर चाप धर॥
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मनोरथ पूर्ति के लिए
भव भेषज रघुनाथ जसु, सुनाही
जे नर अरू नारी।
तिन्ह कर सकल मनोरथ
सिद्ध करहि त्रिसिरारी॥
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एकल चंद्र (केमेन्द्रुम दोष) निवारण
बिन सतसंग बिबेक न होई।
राम कृपा बिनु सुलभ न सोई ॥
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कालसर्प दोष निवारण
रावण जुद्ध अजान कियो तब,
नाग कि फांस सबै सिर डारो।
श्री रघुनाथ समेत सबै दल,
मोह भयो यह संकट भारो।।
आनि खगेश तबै हनुमान जु,
बंधन काटि सुत्रास निवारो।
को नहि जानत है जग में कपि संकट मोचन नाम तिहारो।।
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स्थान/ नगर में प्रवेश करते समय
प्रबिस नगर कीजे सब काजा।
ह्वदय राखि कोसलपुर राजा।।
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राहु प्रभाव से कलंक मुक्ति के लिए
मंत्र महामनि विषय ब्याल के ।
मेटत कठिन कुअंक भाल के ॥
हरन मोह तम दिनकर कर से ।
सालि पाल जलधर के॥
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निराशा यानी शनि प्रभाव से मुक्ति
गौतम नारि श्राप बस उपल देह धरि धीर।
चरन कमल रज चाहति कृपा करहु रघुबीर॥
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आलस्य से मुक्ति
हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रणाम।
राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहां विश्राम॥
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विजय प्राप्ति के लिए
विजय रथ का पाठ लंकाकाण्ड ( दोहा 79-80 मध्य) का नियमित पाठ विजय प्राप्त कराता है।
परिकल्पना-प्रोजेक्ट पूर्णता के लिये भागीरथ के गंगा अवतरण प्रयास का नियमित पाठ व्यक्ति की कल्पना को साकार करता है।
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बंधन मुक्ति
सौ बार हनुमान चालीसा पाठ सभी बंधनों से मुक्त करता है।
श्रद्धापूर्वक मनन,पठन, जप और श्रवण करने से सभी समस्याओं का समाधान हो जाता है। पे्रम और दृढ़ विश्वास फल प्राप्ति के लिए जरूरी है। गुरू मार्गदर्शन लेकर सभी मनोरथ पूरे कर सकते हैं।
18 फ़रवरी 2010
रामचरितमानस के चमत्कारिक मंत्र
Labels: तंत्र-मंत्र-यंत्र
Posted by Udit bhargava at 2/18/2010 06:45:00 am 1 comments
फेंगशुई: डबल ड्रैगन
दो ड्रैगन का जोड़ा समृद्धि का प्रतीक है। इनके पैर के पंजों में जादा मोती सबसे ज्यादा उर्जा संजोये है। फेंगशुई में ड्रैगन को चार दिव्य प्राणियों में गिना जाता है। ड्रैगन येंग यानी पुरुषत्व, हिम्मत और बहादुरी का प्रतीक है, इसमें अपार शक्ति होती है।
दौबले ड्रैगन को यूँ तो किसी भी दिशा में रखा जा सकता है लेकिन पूर्व दिशा में रखना सबसे ज्यादा कारगर माना गया है। चीनी संस्कृति और फेंगशुई में ड्रैगन को बहूत सामान दिया जाता है और इसे शुद्ध मानते हैं। कई पीढ़ियों से ड्रैगन शक्ति, अच्छे भाग्य और सम्मान का प्रतीक मन जा रहा है। ड्रैगन एक कीमती कास्मिक 'ची' बनाता है जिसे 'शेंग ची' भी कहते हैं, जिससे घर और कार्यस्थल पर भाग्य साथ देता है। यह ड्रैगन लकड़ी, सेरेमिक व धातु में उपलब्ध है। लकड़ी के ड्रैगन को दक्षिण- पूर्व या पूर्व में, सेरेमिक, क्रिस्टल के ड्रैगन को दक्षिण- पूर्व, उत्तर-पूर्व या उत्तर पश्चिम में रखा जाना चाहिय।
छात्र इसे अपनी पढ़ाई की टेबल पर रखें। घर की उत्तर-पश्चिम दिशा में इसे रखने से अच्छे सलाहकार, दोस्त व बढ़िया नेतृत्व करने वाले साथी मिलेंगे। यह ध्यान रखें कि यह जिस उंचाई पर रखा हो वह आँख के स्तर से अधिक न हो। एक्वेरियम या क्रित्रम फाउन्टेन के पास रखने से भाग्य साथ देता है।
Posted by Udit bhargava at 2/18/2010 05:54:00 am 0 comments
17 फ़रवरी 2010
दिल की कमजोरी का घरेलू इलाज
जब दिल हो कमजोर तो
जरा सा भी परिश्रम करने पर साँस फूलने लगे, पसीना आ जाए, सीढ़ियाँ चढ़ते समय दम भर जाए तो समझो दिल कमजोर है।
दिल की कमजोरी दूर करने हेतु घरेलू उपचार इस प्रकार हैं-
* लौकी उबालकर उसमें धनिया, जीरा व हल्दी का चूर्ण तथा हरा धनिया डालकर कुछ देर और पकाएँ। कमजोर दिल के रोगी को इसका नियमित सेवन करने से लाभ होता है और दिल को शक्ति मिलती है।
* अच्छा पका हुआ कुम्हड़ा लेकर उसे धो लें और छिलके सहित उसके छोटे-छोटे टुकड़ काट लें। इसे अच्छी तरह सुखाकर मिट्टी के बरतन में भरकर, ढक्कन लगाकर, कपड़ा बाँधकर मिट्टी लेप दें। 20 मिनट हल्की आँच पर पकाएँ व उतारकर ठंडा होने दें, कुम्हड़े के जले टुकड़ों का चूर्ण बनाकर शीशी में बंद कर दें। दो ग्राम चूर्ण में एक ग्राम सोंठ का चूर्ण मिलाकर गर्म पानी से सेवन करें। इससे दिल की दुर्बलता व सीने का दर्द दूर होता है।
* अनार के 10 मिलीलीटर रस में 10 ग्राम पिसी मिश्री मिलाकर प्रतिदिन सुबह-शाम पीने से भी बहुत लाभ होता है।
* वंशलोचन, इलायची दाना, जहर मोहरा, खताई पिष्टी, रहरवा शमई, सतगिलोय और वर्क चाँदी, सभी समान मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें व फिर सभी को गुलाब के अके में घोटकर रख लें।
1 से 4 रत्ती मिश्री या आँवले के मुरब्बे के साथ दिन में तीन बार सेवन करें। यह दिल की कमजोरी, धड़कन का असामान्य होना तथा दिल के रोग में अत्यंत लाभकारी है। इसके सेवन से पित्त ज्वर उल्टी, दाह आदि में आराम मिलता है।
Posted by Udit bhargava at 2/17/2010 06:16:00 am 0 comments
16 फ़रवरी 2010
ग़ज़ल- इकबाल
अजब बाइज़ की दींदारी है या रब
अदावत है इसे सारे जहाँ से
कोई अब तब न ये समझा कि इन्साँ
कहाँ जाता है, आता है कहाँ से
वहीं से रात को जुल्मत मिली है
चमक तारों ने पाई है जहाँ से
हम अपनी दर्द मन्दी का फ़साना
सुना करते हैं अपने राज़दाँ से
बड़ी बारीक हैं वाइज़ की चालें
लरज़ जाता है आवाज़े अज़ा, से !
Labels: कविता / शायरी
Posted by Udit bhargava at 2/16/2010 07:44:00 am 1 comments
धनिया के घरेलू नुस्खे
बवासीर - धनिया के दाने और मिश्री 10-10 ग्राम एक गिलास पानी में डालकर उबालें। इसे ठंडा करके छान कर पीने से बवासीर रोग में गिरने वाला खून बंद होता है। हरे धनिये (कोथमीर) को पीसकर गरम करें और कपड़े की पोटली में बाँध कर मस्सों को हल्के-हल्के सेंक करें। इससे मस्से की सूजन कम होती है और पीड़ा शांत होती है।
नकसीर - नाक से खून आने को नकसीर कहते हैं। हरा कोथमीर 20 ग्राम व राई बराबर कपूर मिलाकर पीस लें और रस निचोड़ लें। इस रस की 1-2 बूँद नाक में दोनों तरफ टपकाने और रस को माथे पर लगाकर मसलने से खून गिरना बंद होता है।
Posted by Udit bhargava at 2/16/2010 07:13:00 am 0 comments
सद्भाव से समाज निर्माण संभव
भावनाओं का अनुभव तो सभी करते हैं किंतु हममें से अधिकांश उनकी ठीक समझ नहीं रखते। भावनाओं को ठीक से समझना एक महत्वपूर्ण कला है। जो व्यक्ति इन्हें समझकर सबके प्रति करुणा का भाव रखता है, उससे श्रेष्ठ जीवन ढूँढना मुश्किल है।
इसे स्पष्ट करने के लिए बहुत उपयुक्त है एक कथा- आनंद धर्मयात्रा पर थे। एक गाँव में कुएँ पर उन्होंने पकति नाम की एक युवती से जल माँगा। वह युवती मतंग (एक अस्पृश्य समझी जाने वाली) जाति की थी इसलिए उसने अपनी जाति बताकर जल देने में असमर्थता बताई।
आनंद बोले- मैंने तुमसे जल माँगा है, जाति नहीं पूछी, मुझे जल दो। प्यास लगी है। आनंद के व्यवहार से युवती का मन भर आया। भाव-विह्वल होकर युवती ने उन्हें जल पिलाया और वह उनके पीछे-पीछे महात्मा बुद्ध के दर्शन की अभिलाषा से चलने लगी। तथागत के पास पहुँचकर युवती ने आनंद के प्रति अपने प्रेम की बात बताकर उसकी सेवा में रहने की अनुमति माँगी।
महात्मा बुद्ध ने उसके भाव को समझा और बोले- पकति, तुम्हारा यह प्रेम आनंद के प्रति नहीं है बल्कि उसके सद्भाव के प्रति है। इसलिए तुम उसके आचरण को अपनाओ जिससे तुम्हें परम सुख की प्राप्ति होगी। बुद्ध आगे बोले- राजा की दासों के प्रति सहृदयता अच्छी बात है, परंतु उससे भी महान सहृदयता उस दास की है, जो अपने दमनकर्ता के अपराधों को क्षमा कर दया और मैत्री का भाव फैलाता है। पकति धन्य है। मतंग जाति में जन्म लेने पर भी तुम आर्य नर-नारियों का आदर्श बनोगी। ब्राह्मण तुमसे उपदेश लेंगे।
मनुष्य और समाज के मनोवैज्ञानिक अध्ययन पर आधारित बुद्ध का यह संदेश उस मानव समाज के निर्माण का आधार है, जो भारतीय संस्कृति का आदर्श है। वास्तव में सद्भाव से ही समाज निर्माण संभव है। जिससे एक व्यक्ति से दूसरे को अधिकाधिक हस्तांतरित होने पर श्रेष्ठ समाज की कल्पना को साकार किया जा सकता है।
Posted by Udit bhargava at 2/16/2010 06:38:00 am 0 comments
15 फ़रवरी 2010
श्रीमद्भागवत सत्य से परिचय कराता है
राजा परीक्षित और कलयुग आगमन
श्रीमद्भागवत कल्पवृक्ष की ही तरह है, यह हमें सत्य से परिचय कराता है। उन्होंने कहा कि कलयुग में तो श्रीमद् भागवत कथा की अत्यंत आवश्यकता है, क्योंकि मृत्यु जैसे सत्य से हमें यही अवगत कराता है।
माधवानंदजी महाराज ने राजा परीक्षित के सर्पदंश और कलयुग के आगमन की कथा सुनाई। उन्होंने बताया कि राजा परीक्षित बहुत ही धर्मात्मा राजा थे। उनके राज्य में कभी भी प्रजा को किसी भी चीज की कमी नहीं थी।
एक बार राजा परीक्षित आखेट के लिए गए, वहाँ उन्हें कलयुग मिल गया। कलयुग ने उनसे राज्य में आश्रय माँगा, लेकिन उन्होंने देने से इनकार कर दिया। बहुत आग्रह करने पर राजा ने कलयुग को तीन स्थानों पर रहने की छूट दी। इसमें से पहला वह स्थान है जहाँ जुआ खेला जाता हो, दूसरा वह स्थान है जहाँ पराई स्त्रियों पर नजर डाली जाती हो और तीसरा वह स्थान है जहाँ झूठ बोला जाता हो। लेकिन राजा परीक्षित के राज्य में ये तीनों स्थान कहीं भी नहीं थे।
तब कलयुग ने राजा से सोने में रहने के लिए जगह माँगी। जैसे ही राजा ने सोने में रहने की अनुमति दी, वे राजा के स्वर्णमुकुट में जाकर बैठ गए। राजा के सोने के मुकुट में जैसे ही कलयुग ने स्थान ग्रहण किया, वैसे ही उनकी मति भ्रष्ट हो गई। कलयुग के प्रवेश करते ही धर्म केवल एक ही पैर पर चलने लगा। लोगों ने सत्य बोलना बंद कर दिया, तपस्या और दया करना छोड़ दिया। अब धर्म केवल दान रूपी पैर पर टिका हुआ है।
यही कारण है कि आखेट से लौटते समय राजा परीक्षित श्रृंगी ऋषि के आश्रम पहुँच कर पानी की माँग करते हैं। उस समय श्रृंगी ऋषि ध्यान में लीन थे। उन्होंने राजा की बात नहीं सुनी, इतने में राजा को गुस्सा आ गया और उन्होंने ऋषि के गले में मरा हुआ सर्प डाल दिया। जैसे ही उनका ध्यान समाप्त हुआ, उन्होंने राजा परीक्षित को सर्पदंश से मृत्यु का श्राप दे दिया।
माधवानंदजी महराज ने कहा कि हम सब कलयुग के राजा परीक्षित हैं, हम सभी को कालरूपी सर्प एक दिन डस लेगा, राजा परीक्षित श्राप मिलते ही मरने की तैयारी करने लगते हैं। इस बीच उन्हें व्यासजी मिलते हैं और उनकी मुक्ति के लिए श्रीमद्भागवत् कथा सुनाते हैं। व्यास जी उन्हें बताते हैं कि मृत्यु ही इस संसार का एकमात्र सत्य है। श्रीमद् भागवत की कथा हमें इसी सत्य से अवगत कराया जाता है।
Labels: प्रवचन
Posted by Udit bhargava at 2/15/2010 10:27:00 pm 1 comments
रामायण – उत्तरकाण्ड - कुत्ते का न्याय
श्रीराम के शासन में न तो किसी को शारीरिक रोग होता था, न किसी की अकाल मृत्यु होती थी, न कोई स्त्री विधवा होती थे और न माता पिताओं को सन्तान का शोक सहना पड़ता था। सारा राज्य सब प्रकार से सुख-सम्पन्न था। इसलिये कोई व्यक्ति किसी प्रकार का विवाद लेकर राजदरबार में उपस्थित भी नहीं होता था। किन्तु एक दिन एक कुत्ता राजद्वार पर आकर बार-बार भौंकने लगा। उसे अभियोगी समझ राजदरबार में उपस्थित किया गया। पूछने पर कुत्ते ने बताय, "प्रभो! आपके राज्य में सर्वार्थसिद्ध नामक एक भिक्षुक है। उसने आज अकारण मुझ पर प्रहार करके मेरा मस्तक फाड़ दिया है। इसलिये मैँ इसका न्याय चाहता हूँ।"
कुत्ते की बात सुनकर उस भिक्षुक ब्राह्मण को बुलवाया गया। ब्राह्मण के आने पर राजा रामचन्द्र ने पूछा, "विप्रवर! क्या आपने इस कुत्ते के सिर पर घातक प्रहार किया था? यदि किया था तो इसका क्या कारण है? वैसे ब्राह्मण को अकारण क्रोध आना तो नहीं चाहिये।"
महाराज की बात सुनकर सर्वार्थसिद्ध बोले, "प्रभो! यह सही है कि मैंने इस कुत्ते को डंडे से मारा था। उस समय मेरा मन क्रोध से भर गया था। बात यह थी कि मेरे भिक्षाटन का समय बीत चुका था, तो भी भूख के कारण मैं भिक्षा के लिये द्वार-द्वार पर भटक रहा था। उस समय यह कुत्ता बीच में आ खड़ा हुआ। मैं भूखा तो था ही, अतएव मुझे क्रोध आ गया और मैंने इसके सिर पर डंडा मार दिया। मैँ अपराधी हूँ, मुझे दण्ड दीजिये। आपसे दण्ड पाकर मुझे नरक यातना नहीं भोगनी पड़ेगी।"
जब राजा राम ने सभसदों से उसे दण्ड देने के विषय में परामर्श किया तो उन्होंने कहा, "राजन्! ब्राह्मण दण्ड द्वारा अवध्य है। इसे शारीरिक दण्ड नहीं दिया जा सकता और यह इतना निर्धन है कि आर्थिक दण्ड का भार भी नहीं उठा सकेगा।" यह सुनकर कुत्ते ने कहा, "महाराज! यदि आप आज्ञा दें तो मैं इसके दण्ड के बारे में एक सुझाव दूँ। मेरे विचार से इसे महन्त बना दिया जाय। यदि आप इसे कालंजर के किसी मठ का मठाधीश बना दें तो यह दण्ड इसके लिये सबसे उचित होगा।" कुत्ते का सुझाव मानकर श्रीराम ने उसे मठाधीश बना दिया और वह हाथी पर बैठकर वहाँ से प्रसन्नतापूर्वक चला गया।
उसके जाने के पश्चात् एक मन्त्री ने कहा, "प्रभो! यह तो उसके लिये उपहार हुआ, दण्ड नहीं।"
मन्त्री की बात सुनकर श्रीराम ने कहा, "मन्त्रिवर! यह उपहार नहीं, दण्ड ही है। इसका रहस्य तुम नहीं समझ सके हो।" फिर कुत्ते से बोले, "श्वानराज! तुम इन्हें इस दण्ड का रहस्य बताओ।" राघव की बात सुनकर कुत्ता बोला, "रघुनन्दन! पिछले जन्म में मैं कालंजर के एक मठ का अधिपति था। वहाँ मैं सदैव शुभ कर्म किया करता था। फिर भी मुझे कुत्ते की योनि मिली। यह तो अत्यन्त क्रोधी है। इसका अन्त मुझसे भी अधिक खराब होगा। मठाधीश ब्राह्मणों और देवताओं के निमित्त दिये गये द्रव्य का उपभोग करता है, इसलिये वह पाप का भागी बनता है।" यह रहस्य बताकर कुत्ता वहाँ से चला गया।
Posted by Udit bhargava at 2/15/2010 07:40:00 am 1 comments
महाभारत - कर्ण और अर्जुन
द्रोणाचार्य ने पाण्डव तथा कौरव राजकुमारों के शस्त्रास्त्र विद्या की परीक्षा लेने का विचार किया। इसके लिये एक विशाल मण्डप बनाया गया। वहाँ पर राज परिवार के लोग तथा अन्य प्रतिष्ठित व्यक्ति उपस्थित हुये। सबसे पहले भीम एवं दुर्योधन में गदा युद्ध हुआ। दोनों ही पराक्रमी थे। एक लम्बे अन्तराल तक दोनों के मध्य गदा युद्ध होता रहा किन्तु हार-जीत का फैसला न हो पाया। अन्त में गुरु द्रोण का संकेत पाकर अश्वत्थामा ने दोनों को अलग कर दिया।
गदा युद्ध के पश्चात् अर्जुन अपनी धनुर्विद्या का प्रदर्शन करने के लिये आये। उन्होंने सबसे पहले आग्नेयास्त्र चला कर भयंकर अग्नि उत्पन्न किया फिर वरुणास्त्र चला कर जल की वर्षा की जिससे प्रज्वलित अग्नि का शमन हो गया। इसके पश्चात् उन्होंने वायु-अस्त्र चला कर आँधी उत्पन्न किया तथा पार्जन्यास्त्र से बादल उत्पन्न कर के दिखाया। यही नहीं अन्तर्ध्यान-अस्त्र चलाया और वहाँ पर उपस्थित लोगों की दृष्टि से अदृश्य हो कर सभी को आश्चर्य में डाल दिया। वहाँ पर उपस्थित समस्त जन उनकी धनुर्विद्या की प्रशंसा करने लगे।
अचानक उसी समय एक सूर्य के समान प्रकाशवान योद्धा हाथ में धनुष लिये रंगभूमि में उपस्थित हुये। वे कर्ण थे। कर्ण ने भी उन सभी कौशलों का प्रदर्शन किया जिसका कि प्रदर्शन अर्जुन पहले ही कर चुके थे। अपने कौशलों का प्रदर्शन कर चुकने के पश्चात् कर्ण ने अर्जुन से कहा कि यदि तुम्हें अपनी धनुर्विद्या पर इतना ही गर्व है तो मुझसे युद्ध करो। अर्जुन को कर्ण का इस प्रकार ललकारना अपना अपमान लगा। अर्जुन ने कहा, "बिना बुलाये मेहमान की जो दशा होती है, आज मैं तुम्हारी भी वही दशा कर दूँगा।" इस पर कर्ण बोले, "रंग मण्डप सबके लिये खुला होता है, यदि तुममें शक्ति है तो धनुष उठाओ।"
उनके इस विवाद को सुन कर नीति मर्मज्ञ कृपाचार्य बोल उठे, "कर्ण! अर्जुन कुन्ती के पुत्र हैं। वे अवश्य तुम्हारे साथ युद्ध के लिये प्रस्तुत होंगे। किन्तु युद्ध के पूर्व तुम्हें भी अपने वंश का परिचय देना होगा क्योंकि राजवंश के लोग कभी नीच वंश के लोगों के साथ युद्ध नहीं करते।" कृपाचार्य के वचन सुन कर कर्ण का मुख श्रीहीन हो गया और वे लज्जा का अनुभव करने लगे। कर्ण की ऐसी हालत देख कर उनके मित्र दुर्योधन बोल उठे, "हे गुरुजनों एवं उपस्थित सज्जनों! मैं तत्काल अपने परम मित्र कर्ण को अंग देश का राजपद प्रदान करता हूँ। कर्ण इसी क्षण से अंग देश का राजा है। अब एक देश का राजा होने के नाते उन्हें अर्जुन से युद्ध का अधिकार प्राप्त हो गया है।" दुर्योधन की बात सुन कर भीम कर्ण से बोले, "भले ही तुम अब राजा हो गये हो, किन्तु हो तो तुम सूतपुत्र ही। तुम तो अर्जुन के हाथों मरने के भी योग्य नहीं हो। तुम्हारी भलाई इसी में है कि शीघ्र जाकर अपना घोड़े तथा रथ की देखभाल करो।"
वाद-विवाद बढ़ता गया और वातावरण में कटुता आने लगी। यह विचार कर के कि बात अधिक बढ़ने न पाये, द्रोणाचार्य एवं कृपाचार्य ने उस सभा को विसर्जित कर दिया।
Labels: महाभारत की कथाएँ|
Posted by Udit bhargava at 2/15/2010 07:40:00 am 0 comments
पसीने की दुर्गन्ध से बचाव
जड़ी-बूटी द्वारा संभव है उपचार
इन बातों का विशेष ध्यान रखें -
एक बार पहने हुए वस्त्रों को बिना धोए अलमारी में न रखें।
बिना धुले वस्त्रों को अलमारी में रखने पर दुर्गन्ध पैदा करने वाले बैक्टीरिया सक्रिय होकर वस्त्रों में दुर्गन्ध पैदा कर देते हैं।
शरीर की साफ-सफाई का विशेष ख्याल रखना चाहिए।
नीम युक्त साबुन का नहाते वक्त इस्तेमाल करें तो बेहतर रहेगा।
जहाँ तक हो सके कड़ी धूप से बचें।
वस्त्र ऐसे पहनें जो शरीर से चिपके हुए न हों क्योंकि तंग वस्त्रों में ज्यादा पसीना आता है और वाष्पीकरण सही ढंग से नहीं हो पाता है जिससे कपड़ों से दुर्गन्ध आने लगती है।
सिन्थेटिक वस्त्र न पहनकर सूती वस्त्र पहने तो ज्यादा ठीक रहेगा।
तली-भुनी व मसालायुक्त चीजें न खाएँ।
मौसमी फलों का सेवन करें।
जड़ी-बूटी द्वारा उपचार
बबूल के पत्ते और बाल हरड़ को बराबर-बराबर मिलाकर महीन पीस लें। इस चूर्ण की सारे शरीर पर मालिश करें और कुछ समय रूक-रूक कर स्नान कर लें। नियमित रूप से यह प्रयोग कुछ दिनों तक करते रहने से पसीना आना बंद हो जायेगा।
पसीने की दुर्गन्ध दूर करने के लिये बेलपत्र के रस का लेप शरीर पर करना चाहिए।
अडूसा के पत्रों के रस में थोड़ा शंख चूर्ण मिलाकर शरीर पर लगाने से शरीर से पसीने की दुर्गन्ध दूर हो जाती है।
Posted by Udit bhargava at 2/15/2010 07:06:00 am 0 comments
14 फ़रवरी 2010
कहीं एक मासूम नाजुक सी लड़की...
यह प्यारा सा गीत अपने पाठकों के लिये वलेंटाइन दिवस पर
उपहार स्वरुप भेंट कर रहा हूँ ।
Labels: प्रेम गुरु
Posted by Udit bhargava at 2/14/2010 10:52:00 am 0 comments
एक पत्र प्रेम की खातिर
प्रिय निखिल,
हमारी शादी को नौ बरस बीत गए हैं। हमारे पास सब कुछ है- बच्चे, गाड़ी, बंगला और अच्छी आमदनी। फिर भी मैं खुश नहीं हूँ। कुछ है जो हमारे रिश्तों के बीच से गायब है, वह क्या है?
तुम खुद ही समझ जाओ, इस इंतजार में मैंने सालों गुजार दिए हैं, लेकिन अब मैं समझती हूँ कि और प्रतीक्षा करना बेकार रहेगा। इसलिए मैं खुद ही तुम्हें बताती हूँ कि आखिर एक विवाहित महिला क्या चाहती है? यह बात मैं तुमसे जबानी भी कह सकती थी, लेकिन मैं समझती हूँ कि लिखित बात अधिक प्रभावी होती है और इसे तुम तसल्ली से पढ़कर मेरी ख्वाहिश के प्रति सकारात्मक रुख अपना सकते हो।
तुम्हें याद होगा कि कोई तीन माह पहले मैंने तुमसे सवाल किया था कि क्या तुम्हें मुझसे प्यार है? इस पर तुम्हारा जवाब था, तुमसे शादी करने का अर्थ ही यह है कि मैं तुमसे प्यार करता हूँ। वैसे भी यह बात मैंने तुम्हें शादी के बाद ही बता दी थी। तुम्हारे इस जवाब से ही जाहिर है कि तुम अभी तक यह नहीं समझ पाए हो कि एक औरत आखिर चाहती क्या है? तो इसलिए सुनो- हम विवाहित महिलाएँ चाहती हैं कि हमारे पति निरंतर अपने इश्क का इजहार करते रही। हमें किसी पुष्टि की भी जरूरत नहीं है। इसके लिए हम सिर्फ यह अहसास करना चाहती हैं कि अगर मौका पड़ा तो हमारे पति फिर से भी हमीं से शादी करना चाहेंगे।
तुमने जो जवाब दिया था उस पर मैं यह कहना चाहती हूँ कि जिस तरह एक विधायक या सांसद फिर से चुने जाने के लिए अपने मतदाताओं का निरंतर ख्याल रखता है उसी तरह से एक पति को भी अपनी पत्नी का ख्याल रखना चाहिए। इसका अर्थ यह नहीं है कि तुम दिन निकलते ही या साँझ ढले आई लव यू कहो या फिर वेलेन्टाइन-डे पर चॉकलेट से भरा डिब्बा मुझे पेश करो।
तुम्हारा यह सवाल स्वाभाविक होगा कि यह नहीं तो फिर वूइंग (प्रणय निवेदन करना) के तौर पर महिलाएँ क्या चाहती हैं? हर औरत चाहती है रोमांटिक सरप्राइज। काश! कभी ऐसा हो कि मैं अपने जन्मदिन पर सो रही हूँ और तुम मुझे बिना बताए किचन में व्यस्त रहो। मैं जब आँखें खोलूँ तो तुम अपने द्वारा बनाए गए केक को मेरे सामने रखकर कहो- हैप्पी बर्थ डे। या फिर हमारी शादी की सालगिरह हो, तुम मुझे एक सुंदर सा गुलदान देते हुए कहो- यह वह गुलदान है जिसे मैं तुम्हारे लिए शादी की हर सालगिरह पर फूलों से भरा करूँगा। या कभी तुम मुझे एक रोमांटिक इंडोर पिकनिक से सरप्राइज कर दो, जो कंबल और मोमबत्तियों से पूर्ण हो और तुम खाने में मेरी पसंदीदा कढ़ाई-प्लेट डिश को ऑर्डर करना न भूले हो।
मैं जानती हूँ कि शादी के बाद पत्नी को रिझाना या पटाना थोड़ा-सा मुश्किल जान पड़ता है। शादी से पहले डेटिंग के दौरान हम सभी क्लोज-अप की मुस्कान और दफ्तर के एक्जिक्यूटिव के से तौर-तरीके लिए होते हैं। साथ ही योजनाओं में बाधा डालने के लिए बच्चे भी नहीं होते। पानी और बिजली के बिल और कार लोन की किस्तें भी दरमियान में नहीं होंती। लेकिन इन हालात के बावजूद जब पति अपनी पत्नी को वू करता है तो वह इस जानकारी के साथ करता है कि बिना मेकअप के सुबह दाँत साफ करती हुई उसकी पत्नी कैसी दिखाई देती है। जाहिर है कोई सुंदर दृश्य नहीं होता। इसलिए शादी के बाद की वूइंग हम महिलाओं के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
मेरी एक सहेली है, वह जब दफ्तर के लिए निकलती है तो उसका पति दरवाजे पर छाता पकड़ाना नहीं भूलता ताकि वह अपने आपको धूप से बचा सके। यह कोई बड़ी बात नहीं है, लेकिन इससे पता चलता है कि उसका पति उसकी जरूरतों का कितना ख्याल रखता है। निखिल, क्या मेरी हसरतें एक टूटा हुआ सा ख्वाब ही बनकर रह जाएँगी? अगर नहीं तो कुछ नए अंदाज से मुझे कभी वू करो ताकि मुझे अहसास हो जाए कि तुम मेरी परवाह करते हो और हमारा रोमांस हमारे वैवाहिक जीवन में भी जारी रहे। इस उम्मीद के साथ कि तुम मेरी इन बातों पर गौर करोगे, तुम्हें हमेशा प्यार करने वाली, तुम्हारी रेखा।
Labels: प्रेम गुरु
Posted by Udit bhargava at 2/14/2010 09:14:00 am 0 comments
ये इश्क नहीं आसाँ...
'मुझे तो अब भी यकीन नहीं हो रहा यार कि राजेश ने सोनम के अलावा किसी और से शादी कर ली। आदमी इतना बदल कैसे जाता है?' सचिन के मुँह से यह वाक्य सुनकर अब तक चुपचाप बैठे मनीष ने कहा, 'हाँ यार, राजेश और सोनम को हम लोग दो जिस्म एक जान समझा करते थे। कॉलेज के दिनों में कैसे दोनों के चेहरे हमेशा फूल की तरह खिले रहते थे।
कॉलेज के लड़के-लड़कियाँ उनके प्रेम को अपना आदर्श मानते थे। मैंने तो सपने में भी नहीं सोचा था कि राजेश सोनम के अलावा किसी और से शादी करने के बारे में सोच तक सकता है। 'सोनम और राजेश की यह कहानी अकेले उनकी ही नहीं है। कॉलेज जाने वाला हर लड़का और लड़की प्रेम के इस दरिया में डुबकियाँ लगाना चाहते हैं। यह बात अलग है कि ज्यादातर की परिणति वही होती है, जो राजेश और सोनम के प्यार की हुई। कॉलेज के संबंध बेवफाई की एक अंतहीन दास्ताँ है। यह कोई नया ट्रेंड भी नहीं है। हमेशा से ऐसा होता रहा है।
यह बात अलग है कि कॉलेज जाने वाला हर लड़का और लड़की प्रेम करना चाहते हैं, लेकिन कुछ ही किस्मत वाले होते हैं जो तमाम बाधाओं के बावजूद कॉलेज के दिनों के कस्मे-वादों को उम्र भर हमसफर बनकर निभाते हैं। एक शायर ने भी कहा है- 'ये इश्क नहीं आसाँ इतना तो समझ लीजै, एक आग का दरिया है और डूब के जाना है।' ये दो पंक्तियाँ प्यार की कठिन डगर को बयान करने के लिए काफी हैं। फिर भी सब कुछ जानते हुए भी लड़के-लड़कियाँ इस दरिया में कूद ही जाते हैं।
समाज में लैला-मजनू के किस्से बेशक ध्यान से सुने जाते हों, लेकिन समाज को यह कतई मंजूर नहीं कि इस तरह की प्रेम कहानी उसका हिस्सा भी बने। फिर भी गली-मोहल्लों से लेकर कॉलेजों तक प्यार में दिल लूटने-लुटाने वालों की कमी नहीं रहती। हर लड़के-लड़की का ख्वाब होता है कि उसके सपनों का हमसफर उसे कहीं जिंदगी की राहों पर टकरा जाए। इसी कामना के वशीभूत वे एक-दूसरे में अपने प्यार का प्रतिबिंब तलाशते हैं। जहाँ भी इस प्रतिंिंबब की झलक दिखाई देती है, वहीं नजदीकियाँ बढ़ने लगती हैं। ये नजदीकियाँ प्यार में बदलती हैं, जिसकी परिणति अक्सर बेवफाई के रूप में सामने आती है।
वास्तव में देखा जाए तो प्यार की अग्निपरीक्षा शादी ही है। पर देखा गया है कि प्रेम की गाड़ी में सवार होकर चलने वाले इस अग्निपरीक्षा में अक्सर असफल हो जाते हैं। कॉलेज के प्रेम संबंधों का अक्सर दुखांत होता है। ऐसा आखिर क्यों है? यह सवाल प्रेम संबंधों के समाजशास्त्र में एक फाँस की तरह अटका हुआ है? कॉलेज में जो लड़का-लड़की एक पल भी एक-दूसरे के बगैर चैन से नहीं रह पाते, कॉलेज छोड़ते ही अक्सर एक-दूसरे को यूँ भूल जाते हैं जैसे ट्रेन में सफर के यात्री अपने स्टेशन के प्लेटफार्म पर उतरते ही अजनबी हो जाते हैं। अगर किसी का प्यार किसी तरह से शादी की मंजिल तक पहुँचता भी है, तो देखने में आता है कि वह अक्सर टूट जाता है। आखिर ऐसा क्यों होता है?
वास्तव में इसकी प्रमुख वजह यही है कि ये रिश्ते केवल दिल की भावनाओं पर टिके होते हैं। भावनाएँ भी ऐसी, जो एक हल्की सी ठोकर में ही चकनाचूर हो जाएँ। अक्सर कहा जाता है कि भावनात्मक आदमी अपने जीवन में कभी खुश नहीं रह सकता। यह बात सोलह आने सच है। भावनाएँ सपनों की आधारशिला पर टिकी होती हैं।
दूसरी तरफ सपनों का वास्तविकता से कोई लेना-देना नहीं होता। जब एक लड़का और एक लड़की प्रेम के मोहपाश में बँधते हैं, तो उनकी दुनिया सिर्फ और सिर्फ अपने तक ही सीमित होकर रह जाती है। वे सुबह सोकर उठने से लेकर रात को सोने तक केवल एक-दूसरे के बारे में ही सोचते हैं। इतना ही नहीं, सोने से पूर्व भगवान से यह प्रार्थना करना नहीं भूलते कि रात को सपने में उसका प्रिय दिखाई दे। प्यार को अगर नशा कहा गया है तो यह सही ही कहा गया है। जिस तरीके से नशेड़ी को दुनियादारी से कोई लेना-देना नहीं होता ठीक उसी तरह प्रेमी युगल का समाज के बंधनों अथवा रीति-रिवाजों से कोई सरोकार नहीं होता। यह प्यार सिर्फ 'टाइमपास' के लिए होता है। कॉलेज के दिनों में प्रेमी-प्रेमिकोमिकाओं की मुहब्बत मंजिल नहीं पाती अगर कोई जोड़ा शादी कर भी लेता है, तो ज्यादातर की शादी टूट जाती है क्योंकि शादी के बाद वे एक-दूसरे का वास्तविक स्वरूप देखते हैं, जो अक्सर कल्पनाओं से भिन्न होता है।
यही वह चीज होती है जो दोनों को अलगाव की नींव तक ले जाती है। जो लोग वास्तविकता से समझौता कर लेते हैं, वे तो सफल हो जाते हैं। जो सिर्फ अपनी कल्पनाओं को ही साकार देखना चाहते हैं, उनके बीच दूरियाँ बढ़ने लगती हैं। यही दूरी आखिर में दोनों को अलगाव की दहलीज तक खींचकर ले जाती है। यह अलगाव कई बार सामान्य अलगाव से अलग और उलझन भरा होता है। कहते हैं कि प्यार जब नफरत में बदल जाए तो वह ज्यादा खतरनाक होता है। यही वजह है कि जब दो प्रेमियों के बीच शादी के बाद अलगाव होता है तो उसकी प्रक्रिया काफी कष्टदायी होती है।
इस तरह के सैकड़ों उदाहरण हमारे सामने हैं। ये उदाहरण इस बात की पुष्टि करते हैं कि सपनों का टूटना आदमी को पागलपन की हद तक पहुँचा देता है। कॉलेज के ऐसे प्रेम-संबंध जो शादी की परिणति तक पहुँचते हैं, उनमे से नब्बे फीसदी अलगाव की भेंट चढ़ जाते हैं। यह सारा खेल सपनों के बनने एवं उनके टूटने पर टिका है। सच कहा जाए तो प्यार की दुनिया स्वप्निल दुनिया है। जब तक जमीनी सच्चाई से इसका मेल-मिलाप नहीं होता, तब तक इस दुनिया पर खतरे के बादल मँडराते रहते हैं।
शादी से पूर्व लड़की ख्वाब देखती है कि मेरा प्रेमी मुझे राजकुमारी की तरह रखेगा। लड़का सोचता है कि प्रेमिका मेरे सारे दुःखों को एक ही झटके में समाप्त कर देगी। लेकिन शादी के बाद ठीक इसके विपरीत होता है। इस विपरीत परिस्थिति से वे सामंजस्य नहीं बिठा पाते और गंभीर परिणाम भुगतते हैं। अतः कितना अच्छा हो कि यदि कल्पनाओं पर आधारित प्रेम को हकीकत की तराजू पर पहले ही तौलकर देख लिया जाए।
Labels: प्रेम गुरु
Posted by Udit bhargava at 2/14/2010 09:03:00 am 1 comments
'ये मेरा जीवन तेरे लिए है'
'मेरे पति एक पत्रकार हैं। मैं उनसे बहुत प्यार करती हूँ। जब भी मैं उनकी बाँहों में होती हूँ तब मुझे एक अजीब सी अनुभूति होती है। आज हमारी शादी के तीन साल हो गए हैं लेकिन मैं देख रही हूँ कि अब हमारे बीच में वह प्यार नहीं रहा जो पहले था। आजकल आलोक मुझसे ज्यादा अपने काम पर ध्यान देने लगे हैं। कभी-कभी लगता है वह मुझे बिल्कुल ही भूल गए हैं।
मेरे से बात करने के बजाय उन्हें अकेले में बातें करना ज्यादा अच्छा लगता है। बैठे-बैठे कुछ भी सोचा ही करेंगे, भले ही मैं उनके पास बैठकर उन्हें निहारा करूँ, उनका ध्यान इस ओर नहीं जाता। आखिर मैं थक गई हूँ।
अब मुझे तलाक चाहिए। यह बात जब मैंने उनको बताई तो वह मेरे सामने देखते ही रह गए। उन्होंने पूछा तुम क्यों मुझसे अलग होना चाहती हो। मैंने सिर्फ इतना कहा 'दुनिया में कुछ चीजें ऎसी भी होती हैं जिनका कोई कारण नहीं होता।'
उस दिन वह पूरी रात सोए नहीं। बस हर बार सिगरेट जलाकर कुछ ना कुछ सोचते रहे। मैंने सोचा कि शायद वह सुबह मुझसे कहेंगे कि 'मुझे माफ कर दो। अब मैं तुम्हें कभी कोई शिकायत का मौका नहीं दूँगा' लेकिन ऎसा कुछ भी नहीं हुआ। वह वैसी ही मुद्रा में थे जैसे वह रोज दिखते थे।
फिर भी उन्होंने मेरा दिल रखने के लिए कहा कि 'आखिर मैं क्या करूँ तुम्हारे लिए? मैं उनके जवाब से संतुष्ट नहीं थी फिर भी मैंने कहा क्या आप मेरे लिए वह कर सकते हैं जो मैं चाहती हूँ।क्या?
'मान लो कि हम दोनों एक ऊँची पहाड़ी पर हैं। वहाँ पर एक बहुत बड़ा लाल गुलाब का फूल है। जो मुझे बहुत पसंद है लेकिन वहाँ पर सिर्फ वही शख्स पहुँच सकता है जो मौत को गले लगाना चाहता है तो क्या तुम मेरे लिए वह फूल लाकर दे सकते हो?
'मेरी प्रिया'
मुझे माफ कर देना क्योंकि मैं तुम्हारे लिए वह पहाड़ी गुलाब नहीं ला सकता। तुम उसे मेरी कमजोरी कहो या और कुछ लेकिन उस पहाड़ी पर पहुँचने पर या तो मेरी मृत्यु हो सकती है या मेरे शरीर का कोई अंग मुझसे अलग हो सकता है जिसकी मुझे बहुत बहुत जरूरत है।
इतना पढ़कर मेरे दिल के टुकड़े-टुकड़े हो गए फिर भी हिम्मत जोड़कर आगे पढ़ने लगी। तुम उसे मेरी कमजोरी समझ सकती हो लेकिन यह बात सही है कि मैं मेरे शरीर के हर एक हिस्से से बहुत प्यार करता हूँ क्योंकि मेरा हर एक अंग तुम्हारे लिए काम करता है। उसके बिना तुम भी बिल्कुल अधूरी हो।
प्रिया, तुम जब भी कम्प्यूटर का उपयोग करती हो तब तुम्हें समय का ख्याल नहीं रहता और फिर तुम्हारा सिर दुखने लगता है। मैं अपनी अँगुलियों को बचाना चाहता हूँ ताकि उस वक्त मैं तुम्हारा सिर और तुम्हारी थकी हुई अँगुलियों को दबाकर तुम्हें कुछ आराम दे सकूँ।
तुम कई बार ऑफिस जाते वक्त अपना लंच ले जाना भूल जाती हो या लंच में देर हो जाती है तो उसे तुम्हारे ऑफिस तक पहुँचाने की जिम्मेदारी मेरी होती है। इसलिए मैं अपने इन पैरों को भी बचाना चाहता हूँ ताकि में दौड़कर तुम्हारे लिए लंच सही समय पर पहुँचा सकूँ।
कभी-कभी चलते-चलते तुम रास्ते के पत्थरों को लात मार देती हो जिससे कई बार तुम्हारे पैरों में चोट लगी है। इसलिए मैं अपनी आँखों को सलामत रखना चाहता हूँ ताकि जब भी तुम चलो मेरी आँखें हमेशा तुम्हें रास्ता दिखाएँ।
तुम हमेशा कम्प्यूटर के नजदीक रहती हो जो आँखो के लिए अच्छी बात नहीं है। मैं अपनी आँखें भी इसलिए सलामत रखना चाहता हूँ कि मेरी इन्हीं आँखों की मदद से तुम्हारे बड़े-बड़े नाखून काट सकूँ जो मुझे बिल्कुल भी पसंद नहीं और तुम्हारे सफेद बालों को छाँट सकूँ। तुम्हारा हाथ पकड़कर तुम्हें मंदिर ले जा सकूँ।
तुम हमेशा घर में रहना पसंद करती हो और कभी-कभी तनावग्रस्त हो जाती हो इसलिए मैं अपने मुँह और जुबान को बचाना चाहता हूँ ताकि जब भी तुम तनावग्रस्त हो तब मैं मिमिक्री कर और चुटकुले सुनाकर तुम्हारा मन बहला सकूँ।
तुम्हें गुलाब बहुत पसंद है लेकिन बाग में गुलाब के फूल तोड़ते समय कभी-कभी तुम्हारे हाथों में काँटा चुभ जाता है और खून निकल आता है मैं अपने हाथों को इसलिए बचाना चाहता हूँ कि जब भी तुम्हें फूल की जरूरत हो मैं खुद अपने हाथों से गुलाब तोड़कर तुम्हारे बालों में लगा सकूँ।
इसलिए मेरी प्रिया, मैं वह पहाड़ वाला गुलाब तोड़ने की भूल कभी नहीं करूँगा। क्योंकि मैं जीना चाहता हूँ सिर्फ और सिर्फ तुम्हारे लिए जीना चाहता हूँ। 'आई लव यू व्हेरी मच।' यह पढ़कर मेरी आँखें भर आईं। आगे लिखा था अगर तुमने पत्र का मजमून पढ़ लिया हो तो दरवाजा खोलना मत भूलना।
तुम्हारा आलोक
मैंने दरवाजा खोला। सामने देखा तो वह अपने दोनों हाथों में दूध की बोतल और ब्रेड के पैकेट लिए खड़े थे। उन्हें मालूम था कि अब तक न तो मैंने कुछ खाया होगा और ना ही कुछ बनाया होगा। अब मुझे पूरा यकीन हो गया था कि वह मुझे बहुत-बहुत प्यार करते हैं और मुझे जिस तरह के हसबैंड की जरूरत थी, उससे कहीं अधिक अच्छे हैं।
Labels: प्रेम गुरु
Posted by Udit bhargava at 2/14/2010 08:32:00 am 0 comments
आ तुझे चूम लूँ मैं...
"रुखसार पर है रंगे हया का फरोग
बोसे का नाम मैंने लिया वो निखर गए"
प्यार का इजहार, इकरार और फिर रोजाना की मुलाकातें, एक-दूसरे को जानने-समझने की कोशिश, कभी रूठना, कभी मनाना और भी न जाने क्या-क्या...! लेकिन इसी राह में कुछ अनकही बातें ऐसी भी होती हैं, जो बार-बार दिल में कसक पैदा करती हैं। दिल कहता है बस उनके साथ, उनके हाथों में हाथ लेकर, उनकी आँखों में आँखें डालकर देखते रहें और समझते रहें अनकहे शब्दों की जुबाँ।
सिर्फ उनके पास बैठने और निगाहों की जुबाँ समझने तक ही आपका दिल नहीं रुकता। जैसे-जैसे प्यार परवान चढ़ने लगता है आपकी अपेक्षाएँ बढ़ने लगती हैं। अब आप सिर्फ निगाहों में ही बातें नहीं करते आपके दिल में उठ रही लहर आपको इससे आगे बढ़ने के लिए उत्तेजित करती है। अब आप उन्हें अपनी बाँहों में भर लेना चाहते हैं, उन्हें चूमना चाहते हैं। लेकिन ये क्या? थोड़ा ठहरिए। क्या आप ठीक से चुंबन लेना जानते हैं?
हुंह... इसमें कौनसी बड़ी बात है?' यही सोच रहे हैं न आप। लेकिन जनाब आपको बता दूँ कि चुंबन लेना भी एक कला है और यदि आप इस कला में माहिर हैं तो इससे न सिर्फ आप संतुष्ट होंगे बल्कि आपके पार्टनर को भी अच्छा लगेगा।
अच्छा तो अब जरा आपको बता दें कि ये कला कैसे सीखी जाए लेकिन इसे सीखने के पहले एक बात का जरूर ध्यान रखें कि किसी भी प्रकार की जबर्दस्ती आपके प्यार में दरार डाल सकती है। अपनी उत्तेजना को काबू में रखें और प्रेम की मर्यादा बनाए रखें अन्यथा बाद में पछताने के सिवा कुछ नहीं रह जाएगा।
लीजिए सबसे पहली टिप्स। जब आप उनके साथ किसी रोमांटिक सी जगह पर बैठे हैं और आपका दिल बार-बार उन्हें चूमने के लिए कह रहा है लेकिन आप शायद इसलिए हिचक महसूस कर रहे हैं कि कहीं वो आपको गलत न समझ लें।
ना-ना इसमें इतना हिचकने वाली बात नहीं है। हो सकता है शायद उनके मन में भी यही हो बस इसे कम्प्लीट रूप देने की जरूरत है। क्या करें इसके लिए? उन्हें अपने करीब लाएँ और उनके कंधे या कमर में हाथ डालकर बैठे रहें। कुछ देर इस स्थिति में बैठे रहने के बाद उनका चेहरा अपने हाथों में लेकर उन्हें लगातार देखते रहें। एक्शन का रिएक्शन होगा। यानी उनकी भावनाएँ भी उभरकर सामने आने लगेंगी। अब फिर होना क्या है? वैसे भी जब आप इतने रोमांटिक तरीके से बैठे हैं तो चुंबन तो स्वाभाविक है।
जब आप उन्हें चूम रहे हैं तो आपके होंठों की क्या स्थिति हो, अब जरा इस पर बात कर ली जाए। उनके होंठों पर चुंबन लेते समय आप दोनों के होंठ कुछ इस तरह से हों कि दोनों कम्फर्टेबल हों तो आप इसे अच्छे से अंजाम दे पाएँगे। यानी आपका ऊपरी होंठ उनके ऊपरी होंठ के ऊपर हो और निचला उनके निचले होंठ के अंदर। हाँ थोड़ा इस बात का भी ध्यान रखें कि आपके सिर विपरीत दिशाओं में थोड़े झुके हों और आपकी नाक एक-दूसरे से नहीं टकराए।
अपने होंठों को बिलकुल वैसी ही गति दें जैसे आप किसी च्यूइंगम को चबा रहे हों या फिर किसी गोली को चूस रहे हों। अं.... वैसे ये कोई बताने वाली बात नहीं है क्योंकि ये अपने आप ही हो जाएगा।
कुछ और रोमांटिक बनाने के लिए उन्हें अपने से थोड़ा दूर करें और फिर करीब खींचकर चूमें। अपनी जीभ उनके होंठों पर फिराएँ। उनके गालों पर, ठोढ़ी पर और गर्दन पर चुंबन लें। ये कुछ ऐसे करें कि आपकी भावनाएँ स्पष्ट रूप से नजर आएँ। और हाँ इस बात का ध्यान जरूर रखें कि आपकी भावनाएँ पवित्र हों, किसी प्रकार का गलत विचार आपके मन में न हो। यदि ऐसा हुआ तो यह आपके चेहरे पर साफ तौर से झलकेगा और ये बात आपका साथी जरूर समझ जाएगा।
Labels: प्रेम गुरु
Posted by Udit bhargava at 2/14/2010 08:30:00 am 0 comments
रामायण – उत्तरकाण्ड - च्यवन ऋषि का आगमन
एक दिन जब श्रीराम अपने दरबार में बैठे थे तो यमुना तट निवासी कुछ ऋषि-महर्षि च्यवन जी के साथ दरबार में पधारे। कुशल क्षेम के पश्चात् उन्होंने बताया, "महाराज! इस समय हम बड़े दुःखी हैं। लवण नामक एक भयंकर राक्षस ने यमुना तट पर भयंकर उत्पात मचा रखा है। उसके अत्याचारों से त्राण पाने के लिये हम बड़े-बड़े राजाओं के पास गये परन्तु कोई भी हमारी रक्षा न कर सका। आपकी यशोगाथा सुनकर अब हम आपकी शरण आये हैं। हमें आशा है आप निश्चय ही हमारा भय दूर करेंगे।"
ऋषियों के यह वचन सुनकर सत्यप्रतिज्ञ श्री राम बोले, "हे महर्षियों! यह समस्त राज्य और मेरे प्राण भी आपके लिये ही हैं। मैं आपको वचन देता हूँ कि मैं उस दुष्ट के वध का उपाय शीघ्र ही करूँगा। आप मुझे उसके विषय में विस्तार से बतायें।" च्यवन ऋषि बोले, "हे राजन्! सतयुग में लीला नामक दैत्य का पुत्र मधु बड़ा शक्तिशाली और बुद्धिमान राक्षस था। उसने भगवान शंकर की तपस्या करके उनसे अपने तथा अपने वंश के लिये एक ऐसा शूल प्राप्त किये था जो शत्रु का विनाश करके वापस उसके पास आ जाता था। उन्होंने यह भी वर दिया कि जिसके हाथ में जब तक यह शूल रहेगा, तब तक वह अवध्य रहेगा। उसी मधु का पुत्र लवण है जो अत्यन्त दुष्टात्मा है और उस शूल के बल पर निरन्तर हमें कष्ट देता है। वह प्रायः किसी न किसी ऋषि, मुनि, तपस्वी को अपने आहार बनाता है। वन के प्राणियों, मनुष्यादि किसी को भी वह नहीं छोड़ता।"
यह सुनकर राम ने सब भाइयों को बुलाकर पूछा, "इस राक्षस को मारने का भार कौन अपने ऊपर लेना चाहता है?" यह सुनकर शत्रुघ्न बोले, "प्रभो! लक्ष्मण ने आपके साथ रहते हुये बहुत से राक्षसों का संहार किया है। भैया भरत ने भी आपकी अनुपस्थिति में नन्दीग्राम में रहते हुये अनेक दैत्यों को मौत के घाट उतारा है। इसलिये लवणासुर से निपटने का कार्य मुझे सौंपने की कृपा करें।"
श्री राम बोले, "ठीक है, तुम ही लवणासुर का संहार करो और उसे मारके मधुपुर में अपना राज्य सथापित करो। मैं तुम्हें वहाँ का राजसिंहासन सौंपता हूँ।" फिर उन्होंने शत्रुघ्न को एक अद्भुत अमोघ बाण देकर कहा, "इस अद्भुत बाण से ही मधु और कैटभ नामक राक्षसों का विष्णु ने वध किया था। इससे लवणासुर अवश्य मारा जायेगा। एक बात का ध्यान रखना कि वह अपने शूल को महल के अन्दर एक प्रकोष्ठ में रखकर नित्य उसका पूजन करता है। जब वह तुम्हें अपने महल के बाहर दिखाई दे तभि तुम उसे युद्ध के लिये ललकारना। अभिमान के कारण वह तुमसे युद्ध करने लगेगा और शूल के लिये महल के अन्दर जाना भूल जायेगा। इस प्रकार वह रणभूमि में तुम्हारे हाथ से मारा जायेगा।"
बड़े भअई की आज्ञा पाकर शत्रुघ्न ने विशाल सेना लेकर श्रीराम द्वारा दिय गये निर्देशों के अनुसार लवणासुर को मारने की योजना बराई। उन्होंने सेना को ऋषियों के साथ आगे भेज दिया। एक माह पश्चात् उन्होंने अपनी माताओं, गुरुओं और भाइयों की परिक्रमा एवं प्रणाम कर अकेले ही प्रस्थान किया।
Posted by Udit bhargava at 2/14/2010 08:20:00 am 0 comments
कैसे बनाएँ रोबोटिक्स में करियर?
मैं रोबोटिक्स के क्षेत्र में करियर बनाना चाहता हूँ। कृपया मार्गदर्शन दें।
- रोबोटिक्स कम्प्यूटर विज्ञान की वह शाखा है जिसमें यह सीखा जाता है कि कम्प्यूटर में आदमी जैसी बुद्धि कैसे आए। रोबोटिक्स का उद्देश्य ऐसे रोबोट्स बनाना है, जो समस्याओं को हल कर सके। रोबोट तकनीक के अध्ययन के लिए इंजीनियरी डिग्री आवश्यक है। यदि आप रोबोटिक्स में डिजाइनिंग तथा कंट्रोल में विशेषज्ञता प्राप्त करना चाहते हैं तो आपको मैकेनिकल इंजीनियरिंग में डिग्री हासिल करना होगी।
कंट्रोल तथा हार्डवेयर में डिजाइनिंग के लिए इलेक्ट्रिकल या इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग की बी-टेक डिग्री जरूरी है। रोबोटिक्स में दिलचस्पी रखने वाले छात्र गणित में अच्छे होने चाहिए। उनमें सृजनात्मक योग्यता की भी आवश्यकता होती है। रोबोटिक्स से संबंधित पाठ्यक्रम इन संस्थानों में उपलब्ध हैं- इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस, बंगलुरु/ इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, दिल्ली/ कानपुर/मुंबई/ चेन्नई/ खड़गपुर/ गुवाहाटी तथा रुड़की। यूनिवर्सिटी ऑफ हैदराबाद/ बिड़ला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी एंड साइंस, पिलानी।
Labels: मनपसंद करियर
Posted by Udit bhargava at 2/14/2010 07:46:00 am 0 comments
पेट दर्द के घरेलू नुस्खे
1। अजवायन को तवे पर सेंक कर फाँकने से पेट दर्द में फायदा होता है।
2। अजवायन के चूर्ण में पिसा काला नमक मिला कर गर्म पानी के साथ लेने से पेट की तकलीफ दूर होती है।
3। सूखा अदरक चूसने से भी पेट दर्द में आराम होता है।
4। जीरा भूनकर चबाने से भी पेट दर्द में आराम मिलता है।
5। हींग को आधी कटोरी पानी में गला कर यह पानी पेट पर लगाने से आराम मिलता है।
6। बिना दूध की चाय पीने से पेट दर्द ठीक होता है।
Posted by Udit bhargava at 2/14/2010 07:03:00 am 0 comments
थाईलैंड की 'अतिथि देवो भवः' परंपरा
थाईलैंड में धार्मिक आस्था ज्यादा नजर आती है। वहाँ पर घरों और दुकानों के सामने छोटे-छोटे मंदिर दिखते हैं। भारत में जैसे घरों में तुलसी-चौरा होते हैं, वैसे ही वहाँ बुद्ध की प्रतिमा वाले छोटे-छोटे मंदिर होते हैं। वहाँ की पूजा परंपरा भारतीय परंपरा से मिलती-जुलती है। लोग कपड़े, फल, अगरबत्ती आदि चढ़ावे के साथ मंदिर जाते हैं। वहाँ करीब पैंतीस हजार बौद्ध मंदिर हैं।
फूकेट में पर्वत पर भगवान बुद्ध की विशाल प्रतिमा है, जहाँ पहुँचने के लिए ऊँची पहाड़ी चढ़नी पड़ती है। फूकेट में ही बुद्ध की तीन मंजिला मंदिर है। वहाँ पर आस्था व्यक्त करने के लिए श्रद्धालु पटाखा चलाते हैं। पटाखा चलाने के लिए एक गुम्बद बना हुआ है। अतिथि सत्कार भी वहाँ सैलानियों को आकर्षित करता है। 'अतिथि देवो भवः' की परंपरा वहाँ भी है।
भगवान बुद्ध के अनुयायी वाले देश में हिन्दू मंदिर भी काफी हैं। वहीं गणेश जी, शंकर-पार्वती और गरूड़ की प्रतिमाएँ घरों और होटलों में दिखती हैं। बैंकाक में एक विशाल मॉल के सामने गणेश जी की प्रतिमा के सामने हिन्दुओं के साथ-साथ बौद्ध भी शीश नवाते दिखे। वहाँ भगवान की प्रतिमा के सामने दीये की जगह मोमबत्ती जलाने का चलन है।
भारत की तरह वहाँ भी भगवान की प्रतिमा पर फूल-माला चढ़ाने की परंपरा है। गेंदे के फूल की माला, सेवंती और गुलाब फूल चढ़ाए जाते हैं। अतिथि सत्कार की भी वहाँ विशेष परंपरा दिखी। एक रंग-बिरंगे फूल से अतिथियों का स्वागत किया जाता है। इस फूल की बेल नारियल के वृक्ष पर परजीवी होती है।
बैंकाक में बुद्ध की विशाल प्रतिमा भी लोगों को आकर्षित करती है। यह प्रतिमा पूरी तरह सोने की बनी है। थाईलैंड में सोने की पॉलिश वाली कई बौद्ध प्रतिमाएँ भी हैं। थाईलैंड गए साहित्यकारों व पत्रकारों का दल बैंकाक के जिस होटल में ठहरा था, वहाँ शंकर जी और पार्वती की प्रतिमा स्थापित थी। बैंकाक के सिलोम इलाके में कई हिन्दू मंदिर भी हैं, जहाँ शंख और घंटे की आवाज पूजा के दौरान गूंजती है। कुछ जगहों पर चर्च और मस्जिद भी दिखे। वहाँ सबसे उल्लेखनीय बात यह दिखी कि सड़क किनारे कोई भी मंदिर नहीं दिखा। मंदिरों में पार्किंग और शेड की व्यवस्था भी दिखी।
धर्म के प्रति आस्था के चलते यहाँ दोनों हाथ जोड़कर नमस्कार करने की परंपरा है। दुकानों में सामान की खरीदी के बाद दुकानदार ग्राहक को दोनों हाथ जोड़कर प्रणाम करता है। थाई में सुबह-सुबह अभिनंदन के लिए महिलाएँ सबातीखा और पुरुष सबातीक्राप शब्द का इस्तेमाल करते हैं। थाईलैंड में हाथी का विशेष महत्व है। घरों की दीवारों पर हाथी की आकृतियाँ देखने को मिलती हैं। पेंटिंग और वस्त्रों पर भी हाथी का चित्रांकन दिखता है। पटाया से करीब 20 किमी दूर नूनचुंग विलेज में हाथियों की प्रतियोगिता रोजाना आयोजित होती है।
वे पर्यटकों को विशेष मेहमान मानते हैं। यह प्रतियोगिता पर्यटकों को काफी आकर्षित करती है। पर्यटकों के मनोरंजन के लिए पटाया में टिफनी शो का आयोजन होता है। यह शो थाई, भारतीय और यूरोपीय देशों का मिलाजुला सांस्कृतिक समागम होता है। इसमें कलाकार तरह-तरह के रूप धारण कर नृत्य करते हैं। पटाया में पर्यटकों के मनोरंजन के लिए और भी कई तरह के कार्यक्रम आयोजित होते हैं। इन कार्यक्रमों के लिए टिकट के रूप में 500 से 1500 बाथ तक देना होता है।
Posted by Udit bhargava at 2/14/2010 06:23:00 am 0 comments
13 फ़रवरी 2010
रामायण – उत्तरकाण्ड - पूर्व राजाओं के यज्ञ-स्थल एवं लवकुश का जन्म
अयोध्या से प्रस्थान करने के तीसरे दिन शत्रुघ्न ने महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में विश्राम किया। रात्रि में उन्होंने मुनि से पूछा, "हे महर्षि! आपके आश्रम के निकट पूर्व में यह किसका यज्ञ-स्थल दिखाइ पड़ रहा है?"
महर्षि बोले, हे सौमित्र! यह यज्ञ-स्थल तुम्हारे कुल के महान राजाओं ने बनवाया था। मैं उनके विषय में बताता हूँ। तुम्हारे कुल में राजा सौदास बड़े धार्मिक हुये हैं। एक दिन आखेट करते हुये उन्होंने वन में दो भयंकर दुर्दुर्ष राक्षसों को देखा। राजा ने बाण चलाकर उनमें से एक को मार गिराया। यह देखकर दूसरा राक्षस यह कहता हुआ अदृश्य हो गया कि हे पापी! तूने मेरे इस मित्र को निरपराध मारा है, अतः मैं इसका प्रतिशोध अवश्य लूँगा।
कुछ समय पश्चात् सौदास का पुत्र वीर्यसह राज्य देकर सौदास ने वशिष्ठ जी को पुरोहित बनाकर इस स्थान पर अश्वमेघ यज्ञ किया। उस समय वही राक्षस अपने प्रतिशोध चुकाने के लिये वहाँ आया और वशिष्ठ जी का रूप बनाकर राजा से बोले कि आज मुझे माँसयुक्त भोजन कराओ, इसमें सोच-विचार की आवश्यकता नहीं है। राजा ने अपने रसोइये को ऐसा ही आदेश दिया। इस आदेश को सुनकर वह आश्चर्य में पड़ गया। तभी वह राक्षस रसोइये के वेश में वहाँ उपस्थित हुआ और भोजन में मनुष्य का माँस मिलाकर राजा को दिया। राजा ने अपनी पत्नी सहित वह भोजन वशिष्ठ जी को परोसा। जब वशिष्ठ जी को ज्ञात हुये कि भोजन में मनुष्य का माँस है तो उन्होंने क्रोधित होकर राजा को शाप दिया कि राजन्! जैसा भोजन तूने मुझे प्रस्तुत किया है, वैसा ही भोजन तुझे प्राप्त होगा। तब तो राजा वीर्यसह ने भी क्रोधित हो हाथ में जल लेकर वशिष्ठ जी को शाप देना चाहा। परन्तु रानी के समझाने पर वह जल अपने पैरों पर डाल दिया। इससे उनके दोनों पैर काले हो गये। तभी से उनका नाम कल्माषपाद पड़ गया। तत्पश्चात् राजा और रानी ने महर्षि वशिष्ठ के पैर पकड़ कर क्षमा माँगी और पूरा वृतान्त उन्हें कह सुनाया। तब वशिष्ठ जी ने कहा कि राजन्! बारह वर्ष पश्चात् आप इस शाप से मुक्त हो जाओगे और तुम्हें इसका स्मरण भी नहीं रहेगा। हे शत्रुघ्न! इस प्रकार राजा कल्माषपाद उस शाप को भोगकर पुनः राज्य प्राप्त कर धैर्यपूर्वक प्रजा का पालन करने लगे। उन्हीं राजा सौदास और राजा कल्माषपाद का यह सुन्दर यज्ञ-स्थल है।" यह कथा सुनकर शत्रुघ्न अपनी पर्णशाला में विश्राम करने चले गये।
जिस दिन शत्रुघ्न वाल्मीकि के आश्रम में पहुँचे उसी रात को सीताजी ने एक साथ दो पुत्रों को जन्म दिया। तपस्विनी बालाओं से उनके जन्म का समाचार सुनकर महर्षि ने एक कुशाओं का मुट्ठा और उनके लव लेकर मन्त्रच्चार द्वारा उनकी भावी बाधाओं से रक्षा करने की व्यवस्था की। फिर एक का कुश और दूसरे का लव से मार्जन कराया। इस प्रकारे बड़ बालक का नाम कुश और दूसरे का लव रखा गया। शत्रुघ्न को भी यह समाचार पाकर अत्यन्त प्रसन्नता हुई।
अगले दिन प्रातःकाल सब कृत्यों से निवृत हो शत्रुघ्न मधुपुरी की ओर चल दिये। मार्ग में सात रात्रियाँ व्यतीत कर वे महर्षि च्यवन के आश्रम में पहुँचे।
Posted by Udit bhargava at 2/13/2010 08:30:00 pm 0 comments
पौष्टिक आहार को दे अहमियत
* गर्मी के मौसम में अपने खान-पान पर पूरा ध्यान दें। संतुलित भोजन (दाल, चावल, सब्जी-रोटी और सलाद-दही) को ही अपनी दिनचर्या में शामिल करें।
* विटामिन-सी हमारे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता हैं, इसलिए आप अपने भोजन में विटामिन-सी युक्त फलों जैसे:- संतरा, अँगूर, तरबूज, आँवला आदि को शामिल करें।
* तेलयुक्त और मसालेदार भोजन से बचें। जंक-फूड, पिज्जा, बर्गर और वेफर्स को भोजन में शामिल न करें। ताजा फलों के रस को शामिल करना लाभदायक रहेगा।
* प्रतिदिन 8-10 ग्लास पानी पिएँ। प्रतिदिन सुबह खाली पेट एक ग्लास पानी में नींबू का रस निचोड़कर पीने से चेहरे पर चमक आती हैं और डिहाइड्रेशन से भी बचा जा सकता हैं।
* दिन में एक या दो बार नींबू-पानी-शक्कर डालकर पीना चाहिए। इसके अतिरिक्त दही, छाछ या मीठे शर्बत का सेवन करना चाहिए। इससे शरीर में शीतलता व तरावट बनी रहती है।
Posted by Udit bhargava at 2/13/2010 07:02:00 am 0 comments
रत्नों की श्रेष्ठता
रत्नों की श्रेष्ठता प्रमाणित करने में उसके मुख्यतया तीन गुण हैं- रत्नों की अद्भुत सौंदर्यता, रत्नों की दुर्लभता, रत्नों का स्थायित्व।
मनुष्य विकसित होने के साथ-साथ रत्नों की तरफ भी अधिक आकर्षित हो गया है। अतः रत्नों को विभाजित करते समय विशेष रूप से तीन बातों का ध्यान देते हैं कि प्राप्त रत्न निम्न तीन में से किस प्रकार का है? पारदर्शक है, अल्प पारदर्शक है अथवा अपारदर्शक है।
पारदर्शक रत्न सर्वोत्तम श्रेणी में आता है। यह भी दो प्रकार का होता है-
रंगविहीन- जिस रत्न में रंग बिल्कुल ही न हो।
रंगहीन- जिसमें रंग तो हो, परन्तु हीन दशा में हो अर्थात् रंग न अधिक गहरा हो और न अधिक हल्का तथा पारदर्शक हो, वह श्रेष्ठ होता है।
अधिक गहरा रंग होने के कारण रत्न अपारदर्शक हो जाता है। अपारदर्शक रत्नों में फीरोजा का उच्च स्थान है, तो वैसे नीलम, पुखराज तथा पन्ना भी अपने विशिष्ट रंगों के कारण मनुष्य को अपनी तरफ मोहित करते हैं।
रत्नों की दुर्लभता भी मनुष्य को उसकी तरफ आकर्षित होने का एक प्रमुख कारण है। ठीक उसी तरह जैसे कि आपके सामने से कोई सुंदर आकर्षक नवयौवना आ रही हो उसे एक बार देखने के पश्चात आपके हृदय में बार-बार उसे देखने की लालसा नहीं उठती, क्योंकि उसके चेहरे पर उसके तन पर किसी प्रकार का परदा नहीं है।
आपको देखने में कोई रोक टोक नहीं है तथा ठीक इसके विपरीत कोई महिला काली कलूटी व बदसूरत हो, परन्तु वह एक लम्बा घूँघट निकाले हुए तथा अपने शरीर को लम्बी चादर से ढँके हुए आ रही हो तो आप बार-बार उसके मुख मंडल के सौंदर्य का रसपान करना चाहते हैं। यहाँ तक कि दूर चले जाने पर भी आप बार-बार मुड़कर देखते हैं कि जरा सी भी उसकी झलक दिखाई दे जाए। ऐसा क्यों? इसलिए कि उसका मुख मंडल, शरीर सौष्ठव आपको देख पाना कठिन है, इसलिए उसकी तरफ लालायित हैं।
जिन रत्नों में स्थायित्व है तथा उनकी चमक व गुणों पर ऋतुओं व अम्ल आदि के द्वारा कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ता वह रत्न अधिक मूल्यवान होता है। हर व्यक्ति के पास इसे खरीदने की क्षमता नहीं होती या अधिक मूल्यवान होने के कारण हर तीसरे-चौथे वर्ष उसे खरीद सकना सम्भव नहीं है। अतः रत्नों की कठोरता होना जिससे कि उसे किसी प्रकार का खरोंच या रगड़ने का दाग न पड़े श्रेष्ठ होता है। जैसे-हीरा, पन्ना, पुखराज आदि। रत्नों के विषय में अग्नि पुराण, गरुड़ पुराण, देवी भागवत, महाभारत, विष्णु धर्मोत्तर आदि अनेकों प्राचीन ग्रंथों में वर्णन मिलता है।
Posted by Udit bhargava at 2/13/2010 06:12:00 am 0 comments
12 फ़रवरी 2010
रामायण – उत्तरकाण्ड - मान्धाता की कथा
रात्रि होने पर शत्रुघ्न ने महर्षि च्यवन से लवणासुर के विषय में अन्य जानकारी प्राप्त की तथा पूछा कि उस शूल से कौन-कौन शूरवीर मारे गये हैं। च्यवन ऋषि बोले, "हे रघुनन्दन! शिवजी के इस त्रिशूल से अब तक असंख्य योद्धा मारे जा चुके हैं। तुम्हारे कुल में तुम्हारे पूर्वज राजा मान्धाता भी इसी के द्वारा मारे गये थे।"
शत्रुघ्न द्वारा पूरा विवरण पूछे जाने पर महर्षि ने बताया, "हे राज्! पूर्वकाल में महाराजा युवनाश्व के पुत्र महाबली मान्धाता ने स्वर्ग विजय की इच्छा से देवराज इन्द्र को युदध के लिये ललकारा। तब इन्द्र ने उने से कहा कि राजा! अभी तो तुम समस्त पृथ्वी को ही वश में नहीं कर सके हो, फिर देवलोक पर आक्रमण की इच्छा क्यों करते हो? तुम पहले मधुवन निवासी लवणासुर पर विजय प्राप्त करो। यह सुनकर राजा पृथ्वी पर लौट आये और लवणासुर से युद्ध करने के लिये उसके पास अपना दूत भेजा। परन्तु उस नरभक्षी लवण ने उस दूत का ही भक्षण कर लिया। जब राजा को इसका पता चला तो उन्होंने क्रोधित होकर उस पर बाणों की प्रचण्ड वर्षा प्रारम्भ कर दी।
उन बाणों की असह्य पीड़ा से पीड़ित हो उस राक्षस ने शंकर से प्राप्त उस शूल को उठाकर राजा का वध कर डाला। इस प्रकार उस शूल में बड़ा बल है। हे रघुकुलश्रेष्ठ! मान्धाता को इस शूल के विषय में कोई जानकारी नहीं थी अतः वे धोखे में मारे गये। परन्तु तुम निःसन्देह ही उस राक्षस को मारने में सफल होगे।
Posted by Udit bhargava at 2/12/2010 08:30:00 pm 0 comments
महाशिवरात्रि पर इस तरह करें स्नान
मेष - कुंभ स्नान नई चेतना देने वाला है। राज्यभाव में चंद्रमा की उपस्थिति अनुकूल है तथापि अन्य ग्रहों की अनुकूलता के लिए स्नान करते समय लाल पुष्प एवं हल्दी जल में प्रवाहित करें तथा इस मंत्र का जाप करें- ऊं ऐं क्लीं सौ:।
वृषभ - भाग्यवर्धक योग है। अन्य ग्रहों की अनुकूलता एवं शीघ्र शुभ फल की प्राप्ति के लिए स्नान करते समय अखंड़ चावल व चंदन प्रवाहित कर स्नान करें, हो सके तो अपने साथ गौमती चक्र रखें। ऊं ऐं क्लीं श्रीं मंत्र का जप करें।
मिथुन - ग्रहगोचर सम बने हुए हैं। विशेष परिश्रम से सफलता मिल सकेगी। दूध मिश्रित जल तथा जौं प्रवाहित कर स्नान करें। स्नान के समय शंख या सीप अपने साथ रखें तथाऊं क्लीं ऐं सौ: मंत्र का जप करने से विशेष सफलता प्राप्त होगी।
कर्क - ग्रहगोचर विशेष फलदायी हैं। स्नान के पूर्व शहद, लाल फूल तथा तिल का प्रवाह करें। स्फटिक साथ में रखकर स्नान किया जाए तो शुभ फल प्राप्ति में सहयोग मिल सकेगा। ऊं ह्रीं क्लीं श्रीं मंत्र का जप आपको यशस्वी बना सकता है।
सिंह - छठे भाव में सूर्य बुध चक्र की उपस्थिति तथा सप्तम में स्थित गुरु शुक्र सफलतादायक हैं। तिल, सुगंधित इत्र तथा गोमूत्र का प्रवाह करते हुए ऊं ह्रीं श्रीं सौ: मंत्र जाप करते हुए स्नान करें। रुद्राक्ष धारण कर स्नान करना फलदायी हो सकेगा।
कन्या - जन्मस्थ शनि तथा गुरु शुक्र से षडाष्टक योग मिश्रित फलदायी है। ऐसे में स्नान के समय तिल, सुपारी व एकाधिक सिक्के प्रवाहित करें। ऊं क्लीं ऐं सौ: इस मंत्र का जाप करते हुए स्नान करें तो सफलता सहज हो सकेगी।
तुला - द्वाद्वश शनि तथा चतुर्थ में बुध सूर्य चंद्र की उपस्थिति सफलता प्राप्ति में संदेह दर्शाती है। ऐसे में स्नान के पूर्व सुगंधित इत्र, श्वेत पुष्प तथा तिल का प्रवाह करते हुए ऐं क्लीं श्रीं मंत्र का जाप सफलता दिलाने में मददगार साबित हो सकता है।
वृश्चिक - पराक्रम में सूर्य बुध तथा भाग्य में मंगल शुभ है। चतुर्थ गुरु शुक्र व्यवधान कारक हैं। ऐसे में स्नान करते समय चने की दाल, चावल व हल्दी प्रवाहित करें। स्नान करते समय ऊं ऐं क्लीं सौ: मंत्र का जाप करें।
धनु - लग्न में राहु तथा पराक्रम में गुरु शुक्र आध्यात्मिक उन्नतिकारक हैं। शुभफल की विशेष प्राप्ति के लिए स्नान के पूर्व श्वेत वस्त्र, चावल व मुलेठी लपेटकर प्रवाहित करें तथा स्नान के समय ऊं ह्रीं क्लीं सौ: मंत्र का जाप सफलतादायी रहेगा।
मकर - लग्न में सूर्य या सप्तम में मंगल की उपस्थिति सम बनी हैं। शुभ फल की प्राप्ति के लिए स्नान के समय अरगजा युक्त जल एवं तिल प्रवाहित करें तथा गोमती चक्र साथ में रखते हुए ऊं ऐं क्लीं ह्रीं श्रीं सौ: मंत्र का जप करें, सफलता प्राप्त होगी।
कुंभ - लग्नस्थ गुरु शुक्र तथा लाभ भाव में राहु आध्यात्मिक चेतना जाग्रत करने वाला है। स्नान के समय गोमूत्र एवं यज्ञ भस्म प्रवाहित करें तथा ऊं ह्रीं ऐं क्लीं श्रीं मंत्र का जप करें। इससे सफलता अर्जित कर सकेंगे।
मीन - पंचमस्थ मंगल तथा राज्य भाव में राहु की उपस्थिति शुभ है। अन्य ग्रहों की शुभता के लिए स्नान के समय पंचामृत एवं तुलसी का प्रवाह कर ऊं ह्रीं क्लीं सौ: मंत्र का जप करें। स्नान के समय तुलसीमाला पहनना विशेष लाभकारी रहेगा।
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Posted by Udit bhargava at 2/12/2010 06:20:00 am 0 comments
चाहत 'स्लिम श्रीमती' की
हाल ही में हुए एक सर्वे की रिपोर्ट बताती है कि स्लिम लाइफ पार्टनर चाहने के मामले में भारतीय पुरुष सबसे आगे हैं। तो जाहिर है कि ऐसे में महिलाओं को अपनी बॉडी को लेकर खासा कॉन्शस होने की जरूरत है।
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Posted by Udit bhargava at 2/12/2010 06:13:00 am 0 comments
प्रतिदिन की सैर लाभदायक
मोटापा न केवल खूबसूरती का दुश्मन है वरन अनेक रोगों का घर है। मोटापा विभिन्न रोगों को निमंत्रण भी देता है। मोटापा एक ऐसा रोग है जो बहुत प्रयत्न के बाद भी शायद ही पीछा छोड़े। खानपान, रहन-सहन में थोड़ी-सी लापरवाही मोटापे का द्वार खोल देती है।
इसके लिए आप अपने आचार-व्यवहार, रहन-सहन पर अंकुश लगाए बगैर छरहरे नहीं रह सकते। स्वास्थ्यप्रद क्रियाकलापों को हम अपनी दिनचर्या में शामिल कर लें तो मोटापे के जालिम पंजों से बचा जा सकता है।
- मानसिक कार्य करने वाले व्यक्ति, अधिकारी जिनको पैदल चलने का काम कम पड़ता है, अक्सर मोटापे का शिकार हो जाते हैं। ऐसे व्यक्ति को खानपान का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए। प्रतिदिन व्यायाम व सैर भी लाभदायक होती है।
- सुबह-शाम ताजा भोजन करें। समय व श्रम की बचत करने के लिए बहुत-सी महिलाएँ फ्रिज की बदौलत ढेर सारा खाना बना लेती हैं। समय व श्रम की बचत के और भी कई तरीके हैं, उन्हें आजमाइए।
- बासी भोजन में पौष्टिकता अमूमन पूरी तरह नष्ट हो जाती है। गरिष्ठ, तले, मसालेदार, खटाईयुक्त भोजन से परहेज करें। इनसे मोटापे के साथ-साथ अन्य बीमारियों की संभावना कई गुना बढ़ जाती है।
- भोजन चाहे हल्का-फुल्का हो या गरिष्ठ अपनी क्षमता के अनुसार ही ग्रहण करें। जितनी कैलोरी ग्रहण की है, शारीरिक श्रम द्वारा उतनी ही खर्च भी करें।
Posted by Udit bhargava at 2/12/2010 06:12:00 am 0 comments
विघ्नहर्ता गणपति और प्रबंधन
यह करियर और कॉम्पिटिशन का दौर है। तेजी और चतुराई का समय है। हर कोई होड़ जीतना चाहता है। भूमंडलीकरण के दौर में युवाओं हेतु संभावनाओं के नए दरवाजे खुले हैं। उनके सामने अपार लक्ष्य हैं। जाहिर है वह अपनी मेहनत और लगन से अपने लक्ष्यों को हासिल करना चाहता है। लेकिन कई बार ऐसा होता है कि बिना किसी तैयारी या मैनेजमेंट के वह इसमें कामयाब नहीं हो पाता है। कहने की जरूरत नहीं कि आज कामयाबी हासिल करने के लिए हर स्तर पर मैनेजमेंट की जरूरत है।
जीवन को नई दिशा देने में आज प्रबंधन ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। भारतीय समाज में एक श्रेष्ठ प्रबंधक के गुण हमारे देवताओं में भी मौजूद हैं। उन्हीं में एक शुभारंभ के प्रतीक हैं श्री गणेश, जो प्रथम वंदनीय और विघ्नहर्ता तथा बुद्धि के देवता हैं। उनमें और उनकी जीवनलीला में प्रबंधन के कई ऐसे गुर मौजूद हैं जिसकी सहायता से और उनसे सीखकर शीर्ष पर पहुँचा जा सकता है। गणेशजी के समान ही समय के साथ सही प्रबंधन का गठजोड़ कर वह हर कठिन कार्य को उन्हीं के समान तेजी से, चतुराई से और धैर्य के साथ आसानी से पूरा कर सकता है।
आईआईपीएस के मार्केटिंग विषय के प्रो. रजनीश जैन कहते हैं कि श्री गणेश को ज्ञान का देवता कहा गया है और आज के समय में 'ज्ञान ही शक्ति' है। वे कहते हैं कि श्री गणेश का बड़ा सिर इस बात का प्रतीक है कि हमेशा बड़े विचार रखें, बड़ा सोच रखें और साथ ही यह भी कि बड़े लाभ के बारे में सोचना है। उनके बड़े कान का अर्थ है दूसरी की बातों और उनके सुझाव या आइडियाज को ध्यान से सुनना। उनकी छोटी आँखें हमें यह संदेश देती हैं कि हमें किसी भी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए बहुत फोकस रहना है।
एकाग्रता रखकर अपने लक्ष्य हासिल करना है। उनका छोटा मुख हमें सिखाता है कि हमें जितना हो सके कम बोलना है और जब भी बोलना है हमेशा अर्थवान बोलना है। और यह भी कि ज्यादा से ज्यादा सुनना है। कई बार स्टूडेंट्स अति उत्साह में ऐसा कुछ बोल जाते हैं, जो उनके बस में नही होता या अनर्थ हो जाता है।
श्री गणेश जब अंकुश का प्रतीक धारण करते हैं तो संकेत देते हैं कि हमें बुद्धि संपन्न होने के साथ ही खुद पर नियत्रंण करना आना चाहिए। वरदान देने की मुद्रा का आशय अपनी सकारात्मकता का सतत प्रसार करना है और अभयमुद्रा का आशय सकारात्मकता का संरक्षण करना सिखाता है।
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Posted by Udit bhargava at 2/12/2010 06:10:00 am 0 comments
महाशिवरात्रिः छोटे-छोटे उपाय सुख-समृद्धि लाएं
* किसी गहरे पात्र में पारद शिवलिंग स्थापित करें। पात्र को सफेद वस्त्र पर स्थापित करें। ॐ ह्रिं नम: शिवाय ह्रिं मंत्र का ठीक आधे घंटे तक जाप करते हुए जलधारा पारद शिवलिंग पर अर्पित करें। अर्पित जल को बाद में किसी पवित्र वृक्ष की जड़ में डाल दें। शिवलिंग पूजा स्थान में स्थापित करें और नित्य नियम से मंत्र का जाप करें।
* यदि ग्यारह सफेद एवं सुगंधित पुष्प लेकर चौराहे के मध्य प्रात: काल सूर्योदय से पूर्व रख दिए जाएं, तो ऐसे व्यक्ति को अचानक धन लाभ की प्राप्ति की संभावना बनती है। यदि यह उपाय करते वक्त या उपाय करने के लिए घर से निकलने समय कोई सुहागिन स्त्री दिखाई दे, तो निश्चय ही धन-समृद्धि में वृद्धि होती है। चौराहे के मध्य में गुलाब के इत्र की शीशी खोलकर इत्र डालकर वहीं छोड़ आएं, तो ऐसे भी समृद्धि बढ़ती जाती है। जो महाशिवरात्रि पर न कर पाएं, वह शुक्ल पक्ष के दूसरे शुक्रवार को यह उपाय कर समृद्ध बन सकता है।
* एक बांसुरी को लाल साटन में लपेटकर व पूजनकर तिजोरी में स्थापित किया जाए, तो व्यवसाय में बढ़ोतरी होती है।
जिस व्यक्ति को नजर लगी हो या बार-बार नजर लग जाती हो तो उस व्यक्ति के ऊपर से मीठी रोटी उसारकर ढाक के पत्ते पर रखकर चौराहे के मध्य में प्रात:काल सूर्योदय से पूर्व रखना चाहिए। मीठी रोटी को रखने के बाद उसके चारों ओर सुगंधित फूल की माला रख देनी चाहिए। यह याद रखें कि जिस व्यक्ति को जल्दी-जल्दी नजर लगती हो उन्हें चौराहे के ठीक मध्य भाग से नहीं गुजरना चाहिए।
ग्रह दोष निवारण के लिए
पहले जान लें कि किस ग्रह के कारण बाधाएं जीवन में आ रही हैं। उस ग्रह से संबंधित अनाज लेकर ढाक के पत्ते पर रखकर चौराहे के मध्य में रखना चाहिए तथा उसके चारों ओर सुगंधित पुष्पमाला चढ़ानी चाहिए। विभिन्न ग्रहों से संबंधित अनाज इस प्रकार हैं। महाशिवरात्रि पर सूर्योदय से पूर्व ग्रह से संबंधित अनाज रख कर आएं। ध्यान रखें कि अनाज की मात्रा 250 ग्राम से कम न हो। जिस चौराहे पर वर्षा ऋतु में जल का भराव हो जाता हो, उस चौराहे पर उपाय नहीं करने चाहिए। वहां अभीष्ट फल की प्राप्ति नहीं होती।
पुत्र प्राप्ति के लिए
पश्चिम दिशा में मुंह करके पीले आसन पर बैठें। जहां तक हो सके पीले वस्त्र पहनें। लकड़ी की चौकी पर पीला वस्त्र बिछा कर एक ताम्रपत्र में ‘संतान गोपाल यंत्र’ तीन कौड़ियां, एक लग्न मंडप सुपारी स्थापित करें, केसर का तिलक लगाएं। पीले फूल चढ़ाएं व भगवान कृष्ण के बाल स्वरूप का ध्यान करें व स्फटिक माला से प्रतिदिन 5 माला जप निम्न मंत्र का करें।
देवकी सुत गोविंद वासुदेव जगत्पये
जीवन में सफलता के लिए नवग्रह रुद्राक्ष माला सवरेतम है। किसी कारणवश जो इस अवसर पर रुद्राक्ष न पहन सकें, तो वे श्रावण माह में अवश्य धारण कर लाभ प्राप्त कर सकते हैं। रुद्राक्ष बिल्कुल शुद्ध होना चाहिए।
* राजनेताओं को पूर्ण सफलता के लिए तेरह मुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए।
Labels: देवी-देवता
Posted by Udit bhargava at 2/12/2010 05:22:00 am 0 comments
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