उन्होंने अपने कैरियर के शुरूआती दिनों में नेल्को और सेंट्रल इंडिया टेक्सटाइल जैसी घाटी की कंपनियों को संभाला और उन्हें प्रांफ़िटेबल यूनिट में बदल कर अपनी विलक्षण प्रतिभा को सबके सामने पेश किया। फ़िर साल दर साल उन्होंने अनेक क्षेत्रों में टाटा का विस्तार किया और सफ़लता पाई।
देश की पहली कार जिसकी डिजाइन से लेकर निर्माण तक का कार्य भारत की कंपनी ने किया हो, उस टाटा इंडिका प्रोजेक्ट का श्रेय भी रतन टाटा के खाते में ही जाता है। इंडिका के कारण विश्व मोटर कार बाजार के मानचित्र पर उभरा है।
1991 में वह टाटा संस के अध्यक्ष बने और उनके नेतृत्व में टाटा स्टील, टाटा मोटर्स, टाटा पावर, टाटा टी, टाटा केमिकल्स और इंडियन होटल्स ने भी काफ़ी प्रगति की। टाटा ग्रुप की टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (टीसीएस) आज भारत की सबसे बडी सूचना तकनीकी कंपनी है। वह फ़ोर्ड फ़ाउंडेशन के बोर्ड आंफ़ ट्रस्टीज के भी सदस्य हैं।
कंपनी के नियमानुसार 65 वर्ष की उम्र पार कर लेने के बाद वह पद से तो रिटायर हो गए, पर काम करने का जुनून अभी भी उन पर हावी है और उनकी अगुवाई में टाटा के कंपनियां नए आयामों को छू रही हैं।
टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (टीसीएल) और टाटा मोटर्स जैसी कंपनियों को बुलंदी पर पहुंचाकर अब रतन देश के मध्यम्वर्गी लोगों के लिए सस्ती कार के ख्वाब को पूरा करने में लगे हैं। रतन टाटा बाजार में एक लाख रूपय कीमत की कार लांन्च करने की तैयारी कर रहे हैं, जो कार खरीदने का सपना रखने वाले आम भारतीयों के लिए उनका तोहफ़ा होगी। वर्सेटाएल पर्सेनैलिटी रतन को देश के साथ ही विदेशों में भी सशक्त उघोगपति माना जाता है। उन्हें मित्सुबिशी कांरपोरेशन, अमेरिकन इंटरनेशनल ग्रुप, जेपी मांर्गन चेज, बूज एलन हैमिल्टन इंक जैसी विदेशी कंपनियों में भी रतन टाटा को जगह मिली, साथ ही साथ इंटरनेशनल इन्वेस्टमेंट काउंसिल, न्यूयांर्क स्टांक एक्सचेंच के निदेशक मंडल की एशिया पैसिफ़िक एडवाइजरी कमेटी, बिल एण्ड मिलिंडा गेटस फ़ाउंडेशन, रैंडस सेंटर फ़ांर एशिया पैसिफ़िक पांलिसी आदि से भी रतन टाटा से गहरा जुडाव रहा है।
भारतीय रिजर्व बैंक के सैंट्रल बोर्ड और व्यापार-उघोग से संबंधित काउंसिल में भी रतन टाटा ने अहम भूमिका निभाई है। देश में निवेश बढाने के लिए गठित कमेटी के वह अध्यक्ष भी रहे हैं। उनकी इन सेवाओं के कारण 2000 में उन्हें पदम्भूषण से सम्मानित किया गया है।
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