03 सितंबर 2010

दिल में हो जज्बा, तो दुनिया है... ( Spirit in the heart, The world...)

मला पोद्दार ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। यही कारण है की आज वह निफ्ड की चेयरपर्सन होने के साथ पोद्दार ग्रुप के कई इंस्टीट्यूट ( पोद्दार इंस्टीट्यूट आँफ इन्फांरमेशन टेक्नोलाँजी , पोद्दार एकैडमी आँफ इंश्योरेंस साइंस, एनआईएस आदि इंस्टीट्यूट विभिन्न विश्वविद्यालयों से सम्बद्ध) चला रही हैं। इस सफलता का श्रेय वे अपनी समझ और सही निर्णय क्षमता को देती हैं। उनके पास न ही कोई डिगरी है और न ही कोई मनेजमेंट का डिप्लोमा। फिर भी कोई नहीं कह सकता की उनके मैनेजमेंट में किसी तरह की कोई कमी है। वे सभी की बात सुनती हैं, समझती हैं और उस बात की गहराई में जाने के बाद ही कोई फैसला लेती हैं। वे अपनी सफलता क एक मंत्र इसे भी मानती हैं।

कमला पोद्दार का जन्म कोलकाता में 19 सितम्बर 1959 को हुआ था। दसवीं तक पढाई करने के बाद ही कमला की शादी हो गई। शादी के कुछ सालों तक तो वे घर में व्यस्त रहीं। घर की आर्थिक स्थिति कुछ अच्छी नहीं थी, इसलिए जब वे माँ बनीं, तो उन्हें अपने बच्चों के भविष्य की चिंता सताने लगी।

कमला पोद्दार का कहना है, 'मैं अपने बच्चों को उच्च शिक्षा देना चाहती थी, जिससे भविष्य में उन्हें किसी का मोहताज न होना पड़े, लेकिन यह भी जानती थी की मेरे घर की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं है की मैं अपने बच्चों को अच्छे से अच्छे कपडे पहना सकूं, उन्हें उनकी जरूरत की सभी चीजें दे सकूं। उस समय मेरे पति एक जूट मिल में 1500 रूपये में काम करते थे, इसीलिये मैंने कुछ करने की ठान ली और आज इस मुकाम पर आ गई हूँ की मेरे साथ मेरे परिवार की भी एक अलग पहचान बन गई है।

कमला पोद्दार ने अपने कैरियर की नींव एक गारमेंट मैन्युफैक्चरर और एक्सपोर्टर के तौर पर राखी थी। इसे शुरू करने के लिये सबसे पहले उन्होंने बाजार का सर्वेक्षण किया और बेसिक बातों की जानकारी लेकर पांच मशीनों से इस काम का श्रीगणेश कर दिया। काम शुरू होने के बाद भी वह लगातार बाहर कपड़ा सप्लाई करने वालों के संपर्क में बनी रहीं, जिससे उन्हें बाजार की स्थिति का समय-समय पर पता लगता रहता था। धीरे-धीरे उन्होंने अपने काम को विस्तार देना आरम्भ किया। मुख्य तौर पर उनका काम एक्सपोटर्स से कपडे की कटिंग और अन्य सामान लेकर उनको सिलवाकर (स्टिचिंग) वापस एक्सपोर्टर्स को देना होता था, जिसमें उन्हें हर पीस पर 15 से 25 रूपये बचते थे। इसी बीच उन्होंने 1999 में जयपुर में इन्डियन इंस्टीट्यूट आँफ फैशन डिजाइनिंग (निफ्ड) की फ्रेंचाईजी ले ली। इसके बाद उन्होंने इंस्टीट्यूट को आगे बढाने के लिये दिन-रात एक कर दिए। इंस्टीट्यूट की तरफ ज्यादा ध्यान देने और गारमेंट मैन्युफैक्चरिंग से ज्यादा मुनाफ़ा न होने के कारण उन्होंने यह तय किया की इंस्टीट्यूट की तरफ ही पूरा ध्यान दिया जाए और गारमेंट के बिजनेस को बंद करने का फैसला लेकर सन 2001 में गारमेंट कारोबार को बंद कर दिया। अपने कैरियर को संवारने में उन्हें अपने परिवार का पूरा सहयोग मिला। सहयोग मिलने के पीछे वे एक और कारण बताती हैं की मैंने बाहर काम करने का निर्णय अपने परिवार की हालत को देखकर लिया था, न की अपने किसी शौक की वजह से। इसलिए मुझे हर कदम पर सहयोग मिला। सफलता के लिये योग्य मार्गदर्शक या गुरु का होना जरूरी होता है। कमला पोद्दार भी अपनी सफलता का श्रेय ऐसे ही मार्गदर्शक को देती हैं, जिसने जिन्दगी की मुश्किल राहों पर उनकी सफलता का मार्ग प्रशस्त कर दिया।