युवक ने आँख मिलाकर उत्तर दिया, 'आपसे भी बड़ा होटलियर, सर।'
गंवारों जैसी वेशभूषा, पांवों में कोह्लापुरी चप्पल पहने, सीधे-सादे दिखने वाले युवक के मुंह से ऐसी बात सुनकर रायबहादुर थोड़ा हैरान तो हुए लेकिन उसका सपना पूरा होने का आशीर्वाद भी दिया। यह सपना देखने वाला युवक था, विट्ठल व्यंकटेश कामत और तीस साल बाद उसका सपना एक दिन सच हुआ, जब दरबान के इंटरनेशनल सेंटर में कामत के होटल को 'पर्यावरण का संतुलन बनाए रखने वाला विश्व का सर्वोत्कृष्ट होटल आर्किड' का सम्मान प्राप्त हुआ।
बंबई के ग्रांट रोड स्टेशन के पास ही एक छोटे से घर में रहने वाले भूरे-पूरे परिवार में विट्ठल कामत का जन्म हुआ था। विट्ठल के पिता व्यंकटेश का एक छोटा सा रेस्टोरेंट था। उसकी माँ भी एक शिक्षित और कर्मनिष्ठ महिला थीं। अपनी सफलता का पूरा श्रेय वे अपने माता- पिता को ही देते हैं, 'अपनी सच्चाई, अनुशाशन और कर्मनिष्ठ के बल पर ही उन्होंने होटल क्षेत्र में 'कामत' नाम को बुलंदियों तक पहुंचा दिया था... विरासत में मिली उत्तर गुणों और प्रवृत्तियों की संपत्ति के लिये मैं अपने माता-पिता का हमेशा ऋणी रहूँगा।' पिता के रेस्टोरेंट से ही विट्ठल को आरंभिक व्यवहारिक प्रशिक्षण प्राप्त हुआ।
किताबें पढ़ना, नाटक खेलना और भाषण सुनना, ये सारी बातें बचपन से ही विट्ठल के शौक में शुमार थीं। मगर ये केवल मनबहलाव का साधन भर ही नहीं थी, बल्कि विट्ठल के व्यक्तित्व के विकास में भी इनका भरपूर योगदान रहा। किताबें पढने और भाषण सुनाने से जहाँ बौद्धिक रूप से परिपक्व हुए, वहीँ सीखने की प्रवृत्ति भी बनी रही। नाटक खेलने से सामाजिक चेतना का विकास हुआ। तरह-तरह के आयोजनों में शिरकत करने से भी किसी भी काम के लिये तुच्छता का एहसास मन से हमेशा कल इए चला गया। अनजाने ही कोई भी जिम्मेदारी उठाने की भावना भी विकसित हुई।
तालाम्की वादी के मराठी प्राइमरी स्कूल और रांबर्टमणी हाईस्कूल से शिक्षा प्राप्त करने के बाद उन्होंने इंजीनियरिंग की डिग्री प्राप्त की। माँ की इच्छा थी की पिता के होटल व्यवसाय में ही बच्चे हाथ बंटाएं। दूसरी ओर, विट्ठल का इरादा कुछ और था, लेकिन नियति को शायद यही मंजूर था। उन्हीं दिनों विट्ठल के पिता व्यंकटेश का एक रेस्टोरेंट किसी अपने ने ही धोखे से हथिया लिया। इससे उन्हें भारी आघात पहुंचा और घाटा भी हुआ। ऐसी परिस्थिति में विट्ठल को पिता के बाकी बचे एक रेस्टोरेंट 'सत्कार' में जुटना पडा। सत्कार की भूमि ही उनकी पहली कर्मभूमि सिद्ध हुई। स्वच्छता, समय का मूल्य, अविलम्ब सेवा, नवीनता, विविधता, मानवता जैसे संस्कारों की कीमत विट्ठल ने यन्हीं से सीखी और इन्हीं गुणों की बदौलत 'सत्कार' की लोकप्रियता आसमान छूने लगी।
इसके बाद विट्ठल ने देश-विदेश घूमकर होटल व्यवसाय के सम्बन्ध में अधिक से अधिक जानकारी इकट्ठा करने का निश्चय किया। बस पिता की स्वीकृति मिलते ही वे लन्दन पहुँच गए। वहां एक परिचित के घर रूकते ही उन्होंने 75 पौंड प्रति सप्ताह पर एक रेस्टोरेंट में कुक की नौकरी कर ली। इसी रेस्टोरेंट से अनुभव और पैसा कमाकर विट्ठल ने कई देशों की सैर की। इसके बाद भारत लौटकर अपने होटल व्यवसाय को और भी आगे बढाया। रेस्टोरेंट से छोटा होटल और फिर थ्री स्टार होटल, फोर स्टार और फिर फाइव स्टार होटल आर्किड। आर्किड के बनने की कहानी भी कम दिलचस्प नहीं। सांताक्रूज एयरपोर्ट के पड़ोस में स्थित एयरपोर्ट प्लाज्मा नाम का फोर स्टार होटल बिकने वाला था। विट्ठल ने जब यह खबर सुनी, तो मन में उसे खरीदने की लालसा जाग उठी मगर कीमत सुनकर होश उड़ गए। फिर भी, जो ठान लिया, उसे पूरा करके ही दम लेने की विट्ठल की जिद ने इसे भी सम्भव कर दिखाया। एयरपोर्ट प्लाज्मा खरीदकर वहां पहले कामत प्लाजा बनाया गया, फिर उसके बाद फाइवस्टार आर्किड का निर्माण हुआ।
आज तक विश्व भर में लगभग 450 से अधिक रेस्टोरेंट और होटल खोले हैं। विट्ठल ने पिता के अलावा अपने जीवन में दो लोगों से बहुत सीखा, पहले तो उनके रिश्तेदार और बेंगलौर में कई होटलों के मालिक आर.पी.कामत और बेहराम कांट्रेक्टर। उनका मानना है की पंख पसारकर आकाश को बाहों में भरने का सामर्थ्य और इच्छा भले ही असंभव लगती हो, लेकिन अगर मन में किसी काम को पूरा करने का दृढ संकल्प हो, तो कोई भी मंजिल पाना मुश्किल नहीं होता। हम सभी में एक अनमोल हीरा छिपा होता है। बस, उसे तराशने का उत्तरदायित्व हमें उठाना होता है।
कर्म मंत्र
- डिटर्मिनेशन डेडिकेशन और डिसिप्लिन यानी दृढ निश्चय, समर्पण और अनुशासन।
- योग्य व्यक्तियों से हमेंशा कुछ न कुछ सीखने का प्रयत्न करते रहना चाहिए।
- कुछ नया करने के उत्साह के साथ व्यावहारिक सोच होनी भी जरूरी है।
- असफलता मिलने पर उसका कारण खोजकर निदान करें।
- अपने लक्ष्य पर हमेशा अर्जुन की तरह एकाग्र दृष्टि रखें।
- दूसरों की भलाई करते समय हमेशा उसका अच्छा फल मिलने की उम्मीद न करें।
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