आसीमम केनाम : इसे वन तुलसी भी कहा जाता है। वनस्पतिक विज्ञान में यह आसीमम केनाम के नाम से जानी जाती है। इस का पादप एकवर्षीय रोमयुक्त होता है। तथा छोटा होता है। पत्तियाँ हलके हरे रंग की होती हैं।
आसीमम ग्रेतीसीनाम : तुलसी पादप की सभी जातियों में यह सब से बड़ी होती है। इस के पुष्प सफ़ेद रंग के होते हैं। इसे अर्जक नाम से भी जाना जाता है।
आसीमम सेंतम : इसे तुलसी गौरी या वृंदा के नाम से भी जाना जाता है। आसीमम सेंतम इस का वनस्पतिक नाम है। इस की शाखाएं सीधी एवं फ़ैली हुई होती हैं।
आसीमम बेसीलिकम : तुलसी की सभी जातियों में यह सब से अधिक तीक्ष्ण खुशबु वाली है। इसे आम बोलचाल की भाषा में ’मरूहा’ के नाम से जाना जाता है। ’अजगंधिका’ या ’मरूबक’ नाम भी इस जाति के लिए प्रचलित हैं। इस के फ़ूल बैंगनी रंग के होते हैं। इस की शाखाएं हरी या फ़ीके पीले रंग की होती हैं।
आमतौर पर तुलसी के पत्तों का इस्तेमाल कफ़, कृमि या वमन के नष्ट करने में किया जाता है। श्याम तुलसी का उपयोग रक्तदोष, ज्वर, वमन, कृमि आदि को समाप्त करने में करते है। ’मरूहा’ की तेज गंध घरों में मच्छरों को भगाती है।
घर में या बगिया में तुलसी का पौधा आसानी से लगाया जा सकता है। इसलिए तुलसी के पौधे को गमले में भी लगाया जा सकता है। एक बार तुलसी के पौधे को लगा देने के बाद पौधे से परिपक्व बीज गिर कर अंकुरित हो नए पौधे का निर्माण कर लेते हैं। तुलसी के पौधों का निर्माण कर लेते हैं। तुलसी के पौधों का निर्माण कर लेते हैं। तुलसी के पौधों को बढवार के लिए किसी विशेष खाद की जरूरत भी नहीं है। सिर्फ़ आप की थोडी सी देखभाल से तुलसी आप की बगिया को महका सकती है।
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