मूलत: गौमुख ही गंगा का उद्गम स्थल है। किंतु संभवत: गंगोत्री धाम की स्थापना के समय गंगोत्री से गोमुख तक का पूरा क्षेत्र बर्फ से ढका रहता होगा और गंगा इसी गंगोत्री धाम पर निकलती होगी। कालान्तर में बर्फ पिघलने से आज गंगा गौमुख से निकलती दिखाई देती है। वैज्ञानिक भी हिमालय क्षेत्र में बर्फ पिघलने की पुष्टि करते हैं। गंगोत्री का शाब्दिक अर्थ - वह स्थान जहां गंगा उतरी भी माना जाता है। पौराणिक मान्यताओं में गंगा के स्वर्ग से पृथ्वी पर उतरने का उल्लेख है।
गंगोत्री मंदिर -
गंगोत्री में गंगाजी का भव्य और पवित्र मंदिर है। उत्तराखंड के इस तीर्थ के प्रति हर सनातन धर्म को मानने वाली की अपार श्रद्धा है। गंगाजी का यह मन्दिर गोरखा जनरल अमरसिंह थापा ने १९वी सदी की शुरुआत में बनवाया था। इस मंदिर का बाद में जीर्णोद्वार हुआ। वर्तमान मंदिर जयपुर के राजाओं द्वारा निर्मित माना जाता है। इसके आस-पास छोटा-सा नगर बसा है। मंदिर में गंगा और शंकराचार्य की मूर्तियां है। समीप ही एक शिला है जिसके बारे में माना जाता है कि इसी पर बैठकर भगीरथ ने गंगा को भू-लोक में लाने के लिए तप किया था। कुछ मान्यताओं के अनुसार पाण्डवों ने इस स्थान पर देव यज्ञ किया था।
गंगोत्री में साक्षात् बहने वाली गंगा मैया की और किनारे पर स्थित गंगा माता की मूर्ति की पूजा होती है। गंगा की मूर्ति पूजा के पीछे यही भाव है कि गंगा साक्षात् नदी तो है, किंतु गंगा की छबि भक्तों के हृदय में मां की तरह है। अत: मां और मूर्ति की साकार रुप में पूजा की जाती है।
अन्य दर्शनीय स्थल -
गंगोत्री में एक जल में डूबी शिवलिंग रुप में एक शिला है। जिसके पीछे मान्यता है कि यहां भगवान शिव ने स्वर्ग से उतरी गंगा को अपनी जटा में स्थान दिया था। गंगोत्री से ६ किलोमीटर दूर प्राकृतिक सौंदर्य से समृद्ध नन्दनवन तपोवन भी है। प्राय: पर्वतारोहण करने वाले इसे अपना पड़ाव स्थल बनाते हैं। यहां से लगभग १९ किलोमीटर दूरी पर गोमुख के आकार की गुफा से गंगा निकलती है, जहां जाने के लिए पैदल यात्रा करनी होती है। गौरीकुण्ड और देवघाट भी यहां के प्रमुख दर्शनीय स्थानों में एक है।
यहां प्राकृतिक दृश्यों में देवदार के ऊंचे वृक्ष, गंगा के प्रवाह का स्वर, शीतल बर्फीली हवाओं के झोंके और विशाल और ऊंचे पर्वत मन को मोहित करते हैं। यहां गंगा में असंख्य श्रद्धालु स्नान कर मन व तन को पवित्र करते हैं। गंगा को मोक्षदायिनी शक्ति के रुप में पूजा जाता है। गंगा में स्नान और दर्शन कर हर व्यक्ति मन ही मन स्वयं को बड़ा धन्य और सौभाग्यशाली मानता है। हर धर्म में पवित्र भावनाओं के साथ मौन प्रार्थना से कुछ पाने की चाह मान्य है। हिन्दू धर्म का तो सार ही इसी में समाया है।
परंपराएं -
गंगोत्री में मनाए जाने वाला सबसे मुख्य पर्व गंगा का प्राकट्य उत्सव होता है। यह ज्येष्ठ माह की दशमी को मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है इसी दिन गंगा का स्वर्ग से पृथ्वी पर अवतरण हुआ। गंगोत्री के कपाट अक्षय तृतीया के दिन खुलते हैं। यह तिथि अप्रैल के अंतिम या मई के पहले सप्ताह में आती है। वहीं कपाट बंद होने का समय नवम्बर में दिपावली का शुभ दिन होता है। इसलिए यह दिन यहां उत्सव और समारोह के होते हैं। कपाट बंद होने के बाद प्रतिमा को समीप ही मुखवा गांव में ले जाया जाता है। यहां गंगा मां की पूजा अगले ६ माह तक की जाताी है और कपाट खुलने के समय उसी प्रतिमा को लाकर पुन: प्रतिष्ठित किया जाता है।
पहुंच के संसाधन -
गंगोत्री जाने के लिए वायु मार्ग, रेलमार्ग और सड़क मार्ग की सुविधा उपलब्ध है-
वायु मार्ग - गंगोत्री पहुंचने के लिए देहरादून और नई दिल्ली सबसे निकटतम हवाई अड्डे हैं। जहां पहुंचने के बाद रेल मार्ग या सड़क मार्ग से गंगोत्री पहुंचा जा सकता है।
रेल मार्ग - गंगोत्री जाने के लिए सबसे प्रमुख रेल्वे स्टेशन हरिद्वार, ऋषिकेश और देहरादून है।
सड़क मार्ग - सड़क मार्ग से गंगोत्री हरिद्वार, ऋषिकेश और देहरादून पहुंचा जा सकता है। हरिद्वार से गंगोत्री की दूरी २०० किमी, ऋषिकेश से १७७ किमी तथा देहरादून से २१२ किमी है।
सार्थक अभिव्यक्ति।
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