'फ़ूलों की रानी' गुलदाऊदी के फ़ूल बहुरंगे और खूबसूरत होते हैं। वनस्पति जगत में यह सूरजमुखी नस्ल का ही एक सदस्य है। घर आंगन में इस पौधे को गमले और जमीन दोनों जगह लगाया जा सकता है।
गुलदाऊदी को ईस्ट की रानी भी कहा जाता है। इस की उत्पत्ति चीन से हुई थी। इस के फ़ूलों को ’रे फ़्लोरेट’ व ’डिस्क फ़्लोरेट’, 2 प्रकार में विभाजित किया जा सकता है। इस की बडे और छोटे फ़ूल वाली किस्में हैं। इसे व्यावसायिक खेती के लिए तो क्यारियों में उगाया जाना चाहिए पर गमलों में भी उगाया जा सकता है। गुलदाऊदे को प्रदर्शनी के लिए उगाया जाए तो आप को कुछ खास बातों का ध्यान रखना आवश्यक है। एक तो बडे फ़ूल वाली किस्मों को प्राथमिकता दें, दूसरे, प्रति पौधा अधिक से अधिक 3 फ़ूल ही रहने दें।
स्थान कैसा हो
गुलदाऊदी की पौदावार के लिए ऐसे स्थान का चयन करें जहां दिन के समय 4 से 5 घंटे आती हो, स्थान खुला हो व जल के निकास की सुविधा हो। वहां की मिट्टी दोमट (यानी न अधिक चिकनी न अधिक रेतीली) हो, मिट्टी में कंकडपत्थर भी न हो। यदि रेतीली मिट्टी हो तो उस में गोबर या किसी जैविक खाद को मिला दें।
तैयारी कैसे करें
पौधे लगाने से पहले क्यारियों की ठीक प्रकार से खुदाई कर लें। पुरानी लगाई गई फ़सल के अवशेष, घास तथा कंकड मिट्टी से निकाल दें। मिट्टी में 25 से 30 किलो गोबर की सडी खाद प्रति वर्ग मीटर क्षेत्रफ़ल में मिला दें और पानी दे दें इस से मिट्टी में खरपतवार के पौधे जम जाएंगे तो उन्हें खेत से निकाल कर फ़िर खुदाई कर दें। ऐसा करने से क्यारियां खरपतवार मुक्त हो जाएंगी। खेती की तैयारी अक्तूबर के प्रथाम सप्ताह तक कर लेनी चाहिए।
गमलों में गुलदाऊदी लगाने के लिए गोबर की खाद 1 भाग, कंपोस्ट छना हुआ 1 भाग, मिट्टी 1 भाग और प्रति गमला 2 चम्मच हड्डी का चूरा मिला कर गमले को भर दें। गुलदाऊदे के लिए 10 और 12 इंच आकार के गमलों का चयन करें। गमले में मिट्टी भरते समय ध्यान रखें कि उस का 2.5 सेंतीमीटर ऊपरी भाग खाली रहे ताकि पानी रूकने के लिए उपयुक्त जगह हो।
देखभाल कैसे करें
पौधों की अच्छी बढवार और स्वस्थ फ़ूल लेने के लिए उस की देखभाल करना जरूरी हो जाता है। ध्यान रखें कि अच्छे फ़ूल लेने के लिए उर्वरक देना बेहद जरूरी है।
पौधा रोपने के 15 दिन बाद से तरल खाद देनी शुरू कर देनी चाहिए। तरल खाद देनी शुरू कर देनी चाहिए। तरल खाद बनाने के लिए ताजा गोबर की 1.2 किलो मात्रा, खली (सरसों अथवा नीम) की 1.2 मात्रा किलो को 10 लिटर पानी में घोल दें। 10 दिने में यह घोल सड जाता है। जब इस का रंग चाय जैसा हो जाए तब इस को छान कर 10 दिन के अंतराल पर प्रति गमला आधा लिटर घोल डाल दें।
सिंचाई कब करें
बरसात न होने तक नियमित सिंचाई करें। ध्यान रहे, सिंचाई हमेशा सुबह के समय करना लाभदायक रहता है। पौधो की पत्तियों से धूल एवं मिट्टी को पानी की बौछारों से हटाते रहना चाहिए। अधिक पानी भी गुलदाऊदे के पौधे के लिए हानिकारक है, अत: जल निकास का उचित प्रबंध होना आवश्यक है। यदि बरसात अधिक हो रही है तो गमलों को थोडा तिरछा कर के भी पौधे को अधिक पानी से होने वाले नुकसान से बचाया जा सकता है।
खरपतवार मुक्त रखें
पौधा शुरू में बढवार की अवस्था में होता है, इसलिए खरवतवार नियंत्रण करना बहुत ही जरूरी होता है, क्योंकि वे न केवल पौधे का पोषण ही सीमित करते हैं बल्कि बढ्वार पर भी प्रतिकूल असर डालते हैं। अत: खरपतवार को समय-समय पर क्यारियों से निकालते रहना चाहिए।
पौधों को सहारा देना
गुलदाऊदी के पौधों से अच्छे फ़ूल पाने के लिए किनारे वाली शाखाओं को खपच्चियों से सहारा देना आवश्यक समझा गया है। गमले में सहारे के लिए डंडियों को गमले से बाहर की तरफ़ रखते हैं। ऐसा करने से पौधे को बढने और फ़ूलने के लिए पर्याप्त स्थान मिल जाता है।
पिंचिग कैसे करें
यह क्रिया पौधे को छोटा, अधिक शाखाओं वाला तथा अधिक संख्या में फ़ूल पाने के लिए की जाती है। इस में 3 से 5 सेंमी। लंबाई से पौधे के ऊपरी हिस्से (फ़ुनगी) को हाथ से तोड दिया जाता है। ऐसा करने से साइड से अधिक शाखाएं बनती हैं, जिस के परिणामस्वरूप प्रति पौधा अधिक संख्या में फ़ूल बनते हैं।
कलियों को तोडना
गुलदाऊदी से बडे आकार के अचछे फ़ूल पाने के लिए कलियों को तोडना चाहिए। पौधे पर कुछ कलियों को छोड कर शेष को काट दिया जाता है। प्रदर्शनी के लिए 2-3 कलियां प्रति पौधा रखनी चाहिए।
इन क्रियाओं के अलावा पौधे की जड के पास से निकलने वाली शाखाओं को बराबर काटते रहें जिस से पौधे को दी जाने वाली खुराक का उपयोग ये शाखाएं न कर पाएं तथा पौधे पर फ़ूल किस्म के अनुरूप आएं।
प्रमुख किस्में
गुलदाऊदी की प्रमुख रूप से, बडे फ़ूल वाली और छोटे फ़ूल वाली 2 किस्में होती हैं।
बडे फ़ूल वाली किस्में
सफ़ेद रंग : स्नोवाल, ब्यूटी, जोहन वेवर, वेलेंट, कस्तूरबा गांधी, परपिल, मीरा, प्रेसीडेंट विगर।
पीला रंग : चंद्रिमा, सनराइज, स्टार यलो, सोनार बंगला, जैकस्ट्रा, मधुराज, महाराज सिक्किम, इवनिंग स्टार, सुपर जाइंट, मेनटेनर।
लाल रंग : गोल्डी डायमंड, एपर्ट डिस्टेक्शन, वदगर तामरा, अकन, जोहन हीट।
बैंगनी रंग : मीरा, पिंक, ज्वाइंट, महात्मा गांधी, स्टार आफ़ इंडिया, टैक्टेशन, फ़िश टेल, राज।
छोटे फ़ूल वाली किस्में
सफ़ेद रंग : बीरबल साहनी, शरद मुक्ता, शरद तारिका।
बैंगनी रंग : शरद बहार, शरद प्रभा वीनस, विनशम, फ़्लीर्ट वसंती, कुंदन।
पीला रंग : नानको, लिलीपुट, कस्तूरी, कालियोत्टेरा।
लाल रंग : मैरी, लोहित, तारा, पारागोन।
रोग और सुरक्षा के उपाय
रस चूसने वाले कीडों (थ्रित्स) एवं चैपा की रोकथाम के लिए रोगोर अथवा मेटासिस्टाक्स नामक कीटनाशक 1.5 मिलीमीटर दवा प्रति लिटर पानी में घोल कर छिडकाव करें।
पत्ती का काला धब्बा रोग ( फ़फ़ूंदी जनित) की रोकथाम 2 ग्राम मोन्कोजेव युक्त फ़फ़ूंदनाशक जैसे इंडोफ़िल एम-45 आदि का प्रति लिटर पानी में घोल कर छिडकाव करें। यदि आवश्यकता हो तो उपरोक्त दवाओं का छिडकाव हर 15 दिन पर करें।
अच्छी जानकारी!
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