स्त्रियों को खूबसूरत दिखने का लोभ हमेशा लुभाता रहा है। उन में सदियों से सुन्दरता की चाह रही है। इसे स्त्रियों का प्राक्रतिक स्वभाव कहा जाता है। बहुत पहले से सुन्दर बनने व दिखने के लिये तरह-तरह के नुस्खे आजमाए जाते रहे हैं। प्राचीन समय में शरीर की सुन्दरता के लिये उबटन, जड़ी-बूटियाँ इस्तेमाल की जाती थीं तो आजकल पुराने नुस्खों के साथ-साथ नए-नए सौंदर्य प्रसाधन तथा आधुनिक मशीनी उपकरणों से लेकर कास्मेटिक सर्जरी जैसे तरीके अपनाए जाते हैं।
पुराने समय में अप्सराओं, ऋषि-मुनियों और राजाओं की पत्नियों या उन की कन्याओं तक के अनुपम सौंदर्य की बेशुमार गाथाएं हैं। किस अप्सरा ने किस ऋषि पर अपनी खूबसूरती के डोरे डाले, किस ऋषि ने किस मुनि की पत्नी या कन्या की सुन्दरता पर रीझ कर उसे पाने की कोशिश की और कौन किस की पत्नी या पुत्री को भगा ले गया, इस तरह के बहुत से किस्से सुनने को मिलते हैं।
सौंदर्य के बल पर सुंदरियों द्वार साधु-संतों, तपस्वियों की तपस्या भंग होने की बेशुमार कथाएँ भरी पडी हैं। पुराने जमाने में अप्सराएं, ऋषि-मुनी, देवों की पत्नियों, पुत्रियों और आम औरतें सुन्दरता के लिये कौन सा साबुन, क्रीम, लोशन का इस्तेमाल किया करती थीं, वह आज की हीरोइनों, मॉडलों के सौंदर्य प्रचार की तरह खुलेआम सब को पता नहीं होता था।
यह तो ठीक है कि तेल, उबटन, क्रीम, लोशन जैसे सौंदर्य प्रसाधनों और आधुनिक मशीनी तरीकों से कुछ हद तक औरतों की सुन्दरता में निखर आ सकता है, लेकिन हमारे धर्मग्रंथों में सौंदर्य बढाने वाले ऐसे-ऐसे नुस्खे बताए बाये हैं जिन्हें 'चुटकुलों' के तरह पढ़ कर हँसते-हँसते लोटपोट हुआ जा सकता है। ग्रंथों में स्त्रियों को सुन्दर बनाने के अजीबो-गरीब नुस्खे, चमत्कारिक तरीके दिए गए हैं।
कुरूप दिखने वाले स्त्री ने नदी में स्नान किया और बस, अनुपम सौंदर्य धारण कर बहार निकली। किसी ने मंत्र पडा, हवन-पूजा की तो सौंदर्य से खिल उठा, ब्रह्मण को दान दिया तो औरत खूबसूरत हो गयी, विशेष व्रत किया तो रूपसी बन गई, किसी पुरुष के साथ हमबिस्तर हुई तो रूपवती हो गई। आइए, जानते हैं धर्मग्रंथों में लिखे कुछ ऐसे ही बेसिरपैर के अजीबो-गरीब सौंदर्य नुस्खे :
ब्रह्मपुराण में लिखा है, महर्षि भरद्वाज की बहन रेवती बहुत कुरूप थी। वह काठ नामक मुनि को ब्याह गई थी। वह एक बार गोदावरी में स्नान करने के लिये गयी और नदी से बाहर आई तो रूपवती हो कर निकली। जिस जगह रेवती ने स्नान कर सुन्दर रूप पाया था, वहां रेवती तीर्थ हो गया।
अब सुन्दर होना है तो हिन्दू धर्म के अनुसार किसी नदी में सही जगह ढूँढिये। सब संकट दूर। पता न हो तो ब्रह्मण से पूछिए। वह दान-दक्षिणा ले कर बता देगा।
महाभारत के आदिपर्व और विष्णु के अनुसार सत्यवती नाम की मछुआरे की कन्या में मछली की गंध आती थी। इस कारण उसे मत्स्यागंधा भी कहते थे। महर्षि पराशर उस पर मुग्ध हो गए और मन्त्रों द्वारा उस की गंध दूर कर रूपवती योजनगंधा बना दिया। फिर उस के साथ समागम किया पर बाद में सत्यवती का विवाह शांतनु नामक राजा से हुआ। यदि शरीर की बदबू से परेशान हैं तो अपने धर्म की आन रखने के लिये किसी महर्षि के साथ सोइए, चाहे विवाह न किया हो और गंध गायब। क्या सौंदर्य उपचार है, क्या नैतिकता है हमारी पुरातनपंथी की।
महाभारत (शांतिपर्व) के मुताबिक सुलभा नमक एक ब्रह्मवादिनी स्त्री, जो वैदिककाल की कही जाती थी, वह सन्यासी कुमारी थी और योगधर्म के द्वारा इस पृथ्वी पर अकेली ही विचरण करती थी। उस ने योगशक्ति से अपना पहला शरीर त्याग कर दूसरा परम सुन्दर रूप धारण कर लिया। शायद इसीलिए हर योगी के चारोंओर बीसियों सुंदरियां दिख जाती हैं, पहले वे जरूर कुरूप रही होंगी और इच्छाधारी योगी जैसे के साथ योग शिक्षा लेने पर ही सुन्दर हुई होंगी।
मूर्खतापूर्ण नुस्खों की हद
यजुर्वेद में स्त्री के रूप सौंदर्या के लिये मन्त्रों को बताया गया है। 14वें अध्याय में श्लोक है, 'हे सुखदायिनी स्त्री, तेरी विद्वान् प्रशंसा करें। तू सुन्दर रूप, संपत्ति और विद्याधन को प्राप्त करें'।
(यजुर्वेद- चतुर्दश अध्याय-2)
आगे और मंन्त्र, 'हे स्त्री, स्तुतियों को जानने की इच्छुक, तू सुन्दर रूप एवं विपुल पदार्थ से युक्त हो। अश्विनी कुमार तुझे गृहस्थाश्रम में सुस्थापित करे।' (4)
इसी प्रकार विष्णुधर्मोत्तर पुराण में ब्रह्मवाक्य है : आरोग्यव्रत का अनुष्ठान भाद्रपद शुक्ल पक्ष के पश्चात आशिवन कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से ले कर शरद पूर्णिमा तक होता है। इस के लिये दिन में कमल तथा विभिन्न किस्मों के पुष्पों से अनिरुद्ध की पूजा, हवन आदि करें। व्रत की समाप्ति से पूर्ण 3 दिन का उपवास है। इस से स्वस्थ्य, सौंदर्य तथा समृद्धी की उपलब्धि होती है।
हर मंत्र के लिये किसी ब्रह्मण की तो आवश्यकता होगी ही न। उस को दान देने पर हिचकिचाएं न, क्योंकि ब्यूटीपार्लर जाने से कम है यह खर्च।
सप्तसुन्दर नाम के व्रत का जिक्र भी है। कहा गया है कि इस व्रत में पार्वती का 7 नामों से पूजन करना चाहिए, वे नाम हैं - कुमुदा, माधवी, गौरी, भवानी, पार्वती, उमा तथा अम्बिका। 7 दिन बाद 7 कन्याओं को भोजन कराना चाहिए। प्रतिदिन 7 नामों में से एक नाम उच्चारण करते हुए प्रार्थना की जाए, जैसे 'कुमुदा देवि प्रसीद।' उसी प्रकार क्रमश: अन्य नामों का 7 दिन तक प्रयोग किया जाना चाहिए, 7वें दिन समस्त नामों का उच्चारण कर के पार्वती का पूजनादि के लिये गंध, अक्षत आदि के साथ ताम्बूल, सिन्दूर तथा नारियल अर्पित किया जाए, पूजन के उपरान्त प्रत्येक कन्या को एक दर्पण प्रदान किया जाए, इस व्रत के आचरण से सौंदर्य और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। (विष्णु धर्मशास्त्र)
दान देने से सौंदर्य
सौभाग्यशयन व्रत नाम के व्रत में चैत्र शुक्ल तृतीया को गौरी तथा शिव का पंचगव्य तथा सुगन्धित जल से स्नान करा कर पूजन करना चाहिए। 3 दिन पश्चात स्वर्ण प्रतिमाओं का दान दिया जाए, व्रत के अंत में सज्जा की सामग्री, सुवर्ण का गौ तथा वृषभ का दान करना चाहिए। इस से सौंदर्य तथा सौभाग्य की प्राप्ति होती है। चलें सुनार के यहाँ सोने की 100 गायें बनवाने।
सौन्दर्य प्राप्ति का एक और अजूबा चमत्कार महाभारत में कुब्जा की कथा में बताया गया है। मथुरापति कंस की दासी का नाम कुब्जा था। वह कुबड़ी थी। वह कंस के लिये चन्दन, सुगंध, अनुलेपन आदि लाने ले जाने का काम करती थी। धनुषयज्ञ में आते समय कृष्ण ने उसे देखा और मांगने पर उस ने उन्हें बड़ी प्रसन्नता से अनुलेपन आदि दिए, जिस से प्रसन्न हो कर श्रीकृष्ण ने 3 जगह से टेढ़ी कुब्जा को सीधी करने का विचार किया।
भगवान ने अपने चरणों से कुब्जा के पैर के दोनों पंजे दबाए और हाथ ऊंचा कर के 2 उंगलियाँ उस की ठोड़ी पर लगाई तथा उस के शरीर को तनिक उचका दिया। उचकाते ही उस के सारे अंग सीधे और सुन्दर हो गए, प्रेम और भक्ति के दाता भगवान् के स्पर्श से वह तत्काल विशाल नितम्ब तथा पीनपयोधरों से युक्त एक खूबसूरत युवती बन गई। उसी क्षण कुब्जा रूप, गुण से संपन्न हो गई।
भगवत पुराण में ही सुदामा और उन की पत्नी की सम्पन्नता की कथा है। कथा के अनुसार गरीब सुदामा पत्नी के कहने पर अपने बालसखा श्रीकृष्ण से मिलने चावल की पोटली ले कर गए, श्रीकृष्ण से मिलकर लौटे तो उन की टूटीफूटी झोपडी की जगह भव्य महल खडा था और कुरूप दिखने वाली पत्नी कीमती वस्त्राभूषण धारण किये अत्यंत रूपवती नजर आने लगी थी।
अष्टांग संग्रह में सौंदर्य सामग्री का बेवकूफी भरा वर्णन भी है। आँखों में डालने वाले अंजन के बारे में लिखा है, मधुर अंजन के लिये स्वर्ण का, अम्ल के लिये चाँदी का, लवण के लिये भेड़ के सींग का बना, तिक्त अंजन के लिये कांसी का, कटु अंजन के लिये बिल्लौर या पत्थर का बना पत्र, कषाय अंजन के लिये ताम्बे या लोहे का पात्र बनाना चाहिए। नडसर, कमल, स्फटिक, शंख आदि के बने पात्र में शीतल अंजन रखना चाहिए। इस प्रकार के पात्रों में अंजन निर्दोष गुण वाला रहता है। बर्ती में घिसने के लिये शिला अति चिकनी, बीच में नीची, घिसने पर जो घिसे नहीं, 5 उंगल लम्बी और 3 उंगल चौड़ी होनी चाहिए। अंजन ले लिये शलाका 5 प्रकार की होती है। (अष्टांग संग्रह : सूत्रस्थानाम - अध्याय - 32)
इसी शास्त्र में सौंदर्य का एक और नुस्खा लिखा है, विधारे के फल का एक कर्ष, मधु और घृत भी एक कर्ष में ले कर पियें, ऊपर से गाय या भैंस का दूध पियें, फिर इच्छानुसार भोजन करें। 7 दिन सेवन करने से त्वचा रोगमुक्त हो कर सुन्दर होती है तथा रूप व बुद्धि बढ़ती है।
महाभारत में ब्रह्मण की पूजा करने से स्त्री को तप, बल, रूप व यश मिलने की बात लिखी है।
दीवाली से एक दिन पहले रूप चतुर्दर्शी के दिन महिलाएं शरीर में उबटन आदि लगा कर स्नान करती हैं। कहा जाता है कि इस दिन ऐसा करने से महिलाएं रूपवती हो जाती हैं।
सुन्दरता बढाने के लिये इस तरह के अनेक अंधविश्वासी नुस्खे प्रचलित हैं। धर्मग्रंथों के ये नुस्खे बेवकूफी की हद हैं। सवाल है कि क्या इस तरह व्रत, पूजा, अनुष्ठान, मन्त्रों से स्त्रियाँ अपना रूप संवार सकती हैं? क्या औरतों को सुन्दरता के लिये पूजापाठ, मन्त्रों में ही लीन हो जाना चाहिए? क्योंकि टेढ़े-मेढे अंगों को भगवन आ कर सीधा बना ही देंगे।
दरअसल, उस तरह के तरीके स्त्रियों में सुन्दर बनने व दिखने की इच्छा को भुनाने की कोशिशें हैं। सुन्दर नजर आना स्त्रियों की सदा से कमजोरी रही है। इसलिए आज भी सारे योगी व महंत सुन्दर स्त्रियों को अपने चारों ओर बनाए रखते हैं और वे सादगीपूर्ण नहीं चमचमाती नजर आती हैं।
असल बात तो यह है कि सौंदर्य बढाने के नाम पर धर्म के धंधेबाजों की यह चाल है ताकि औरतें रूपवती बनने के चक्कर में उन के शिकंजें में फंसी रहें। धर्मग्रंथों में सौंदर्य के नुस्खे सुन्दरता बढाने के लिये नहीं, औरतों के पर्स से पैसे निकलवाने के चालाकी भरे तौर-तरीके हैं।
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जवाब देंहटाएंवाकई हद है...
जवाब देंहटाएंise hee kaha jaata hai adhjal gagri chhalkat jaaye, jo vyakti nahi jaante ki nadi men snaan se kaise koi roopwan ho sakta hai to apne gyaan ko heen samjhana chahiye, jin striyon kee baat yahan kee gayee hai unke jeewan chahrit ko jaanana aur rahasy ko jaanana aapke bas men nahi,sabse dukh kee baat to ye hai ki bharat men sada rahasyon ko batane se guruon shastron nen mana kiya hai, isliye main bhee nahi bata sakta, lekin kam se kam bina saadhana kiye aur rahasy ko jaane us par teeka tippani karne waala vidvan nahi, hasy ka paatra hota hai, haalanki ismen koi doray nahi kee striyon ka is naam par shoshan bhee khoob huaa hai, par snaan, daan, mantra, yog, saadhana, sewa se bahut kuchh hota hai, mujhe naghi maloom kee aapki najar men saundarya kya hai? par men bhee bekaar hee bahas kar raha hun! kyonki trk dene waalon ka kya, kisi vishy par bhee tark karenge, par shaayad kai baar aisa hota hai ki registaan men jahaan paani dikhta hai wahan kuchh nahi hota, satya ko itani aasaani se yadi koi jaan paata wo bhee blaag likh kar to kai-kai saal tapsya aur swadhayaay karne kee kya jaroorat, darasal logon ko lagata hai ki mastishak se jo socha jaataa hai, jo niyam hamne bana rakhe hain wahi satya hain, aur kahin aapke lekh se brahamn virodhi boo aa rahi hai, ho sakta hai aap mahaan vicharak hon, par mera haath jod aagrah hai ki upri tathyon se nirnay na len, kya hamare granthkaar ye nahi jaante the ki aisa kuchh na likhen isse dhrm kee haani ho sakti hai? tab bhee likha gaya, chupaaya nahi! kyonki log laaj saken ki saty, parlar tak hee nahi prakriti ke beech hai.....khair phir bhee aapne dimaagi khujali ke liye behad sundar prayaas kiya, sarahniy hai, par ek tarpha w bhram poorn hai, kaash men hindu hota to jyaada achhi tarah jaanta, boudhh dhrm se juda hun par maine hindu granthon ko w dhrm drshan ko samjhane ka prayaas kiya hai, dukh hai ki hinduon nen hee apne dhrm ko samapt kar diya.
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जवाब देंहटाएंदेवे तीर्थे द्विजे मन्त्रे दैवज्ञे भैषजो गुरो |यादृशी भावना यस्य सिद्धिर्भवति तादृशी || अर्थ - देवता में, तीर्थ में, ब्राह्मण में, मंत्र में, ज्योतिष में, ओषधि में, और गुरु में जिसकी जैसी भावना होती है उसको वैसा ही फल मिलता है | ऊपर लिखे लेख में श्रीमान की श्रद्धा धर्म में है ही नहीं इनको अच्छाई में भी बुराई ही नजर आयेगी | आपने जो भी उदाहण दीये आपकी समझ से परे हैं | एक बरगी कोई पुस्तक पढ़ लिया और अर्थ का अनर्थ कर दिया |
जवाब देंहटाएंदेवे तीर्थे द्विजे मन्त्रे दैवज्ञे भैषजो गुरो |यादृशी भावना यस्य सिद्धिर्भवति तादृशी || अर्थ - देवता में, तीर्थ में, ब्राह्मण में, मंत्र में, ज्योतिष में, ओषधि में, और गुरु में जिसकी जैसी भावना होती है उसको वैसा ही फल मिलता है | ऊपर लिखे लेख में श्रीमान की श्रद्धा धर्म में है ही नहीं इनको अच्छाई में भी बुराई ही नजर आयेगी | आपने जो भी उदाहण दीये आपकी समझ से परे हैं | एक बरगी कोई पुस्तक पढ़ लिया और अर्थ का अनर्थ कर दिया |
वास्तव में वेवकूफी की हद --लेखक एवं उस जैसे आज का एकांगी सोच वाला मानव स्वयं है ----सौंदर्य, स्वास्थ्य का मूल अर्थ केवल शारीरिक सुन्दरता नहीं होती, काली अरूप स्त्री भी गुणों से सौन्दर्य का कीर्तिमान हो सकती है ..लता मंगेशकर की भाँति....--इन्हीं सब सौंदर्यों का वर्णन शास्त्रों में किया गया है --- इन कथाओं में गहन तात्विक दर्शन निहित है ....
जवाब देंहटाएंये पुरानों में वर्णित सभी अप्सराएं आज भी मौजूद हैं समाज में --ध्यान से देखें ....स्त्रियों का हर प्रकार का उद्धार आज भी पुरुष ही करते दिखाई देते हैं----यह शास्वत तथ्य व तत्व है कभी नहीं बदलेगा....
जवाब देंहटाएंये चूतियापा दे के क्या सिद्ध करने की कोशिश कर रहा है
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