रजनीगंधा आसानी से उगाया जाने वाला पौधा है। बस, इस बात का ध्यान रखें कि पौधे को भरपूर धूप मिले और जलनिकासी का उचित प्रबंध हो, फ़िर देखिए कैसे महकती है आप की बगिया रजनीगंधा के फ़ूलों से।
रजनीगन्धा के फूल को कहीं कहीं 'अनजानी', 'सुगंधराज' और उर्दू में गुल-ए-शब्बो' के नाम से पहचाना जाता है. अंगरेजी और जर्मन भाषा में रजनीगन्धा को 'टयूबेरोजा', फ़्रेंच में 'ट्यूबरेयुज' इतालवी और स्पेनिश में 'ट्यूबेरूजा' कहते हैं। इस का मूल उत्पत्ति स्थान मध्य अमेरिका माना जाता है, जहां से यह दूसरे देशों में पहुंचा।
यह कंद (बल्ब) से उगाया जाने वाला पौधा है और हर किस्म की साफ़ मिट्टी में आसानी से उगाया जा सकता है। विशेषकर यह बलुई-दोमट या दोमट मिट्टी में अधिक उगता है।
भूमि का चुनाव और तैयारी
रजनीगंधा के लिये भूमि का चुनाव करते समय 2 बातों पर विशेष ध्यान दें। पहला, खेत या क्यारी छायादार जगह पर न हो, यानी जहां सूर्य का प्रकाश भरपूर मिलता हो। दूसरा, खेत या क्यारी में जल निकास का उचित प्रबंध हो। सब से पहले खेत, क्यारी व गमले की मिट्टी को मुलायम व बराबर कर लें, चूंकि यह कंद बीज वाली किस्म है, अत: कंद के समुचित विकास के लिये खेत की तैयारी विधिवत होनी चाहिए। खासकर मिट्टी को खरपतवार रहित कर लें, अन्यथा निराई करने में बडी कठिनाई होगी।
कंदो की बुआई/रोपाई : इस फ़ूल के बीज, जिन्हें कंद, गांठ या बल्ब कहते हैं, रोपने का समय अप्रैल से मई-जून तक होता है। कंद का आकार 2 सेंटीमीटर व्यास का या इस से बडा होना चाहिए। हमेशा स्वस्थ और ताजे कंद ही इस्तेमाल करें।
रजनीगंधा की प्रजातियां : फ़ूल के आकारप्रकार, पत्तियों के रंग के अनुसार इसे 4 वर्गो में बांटा गया है:
सिंगल : इस वर्ग के फ़ूल सफ़ेद रंग के होते हैं तथा इन में पंखडियों की केवल एक ही पंक्ति होती है।
डबल : सफ़ेद फ़ूल तथा पंखडियों का ऊपरी सिरा हलका गुलाबी रंग लिए होता है। पंखडियां कई पंक्तियों में सजी होती हैं, जिस से फ़ूल का केंद्रबिंदु दिखाई नहीं देता।
अर्धडबल : यह डबल किस्म की तरह ही है, परंतु पंखडियों की संख्या कम, केवल 4-5 की पंक्ति होती है। इस की पंक्तियों के आकर्षक रंगो एवं विविधता के कारण ही इसे क्रमश: स्वर्णरेखा और रजतरेखा के नामों से जाना जाता है।
खाद और उर्वरक डालना : इस फ़ूल के पौधों में एक वर्गमीटर की क्यारी में 2 से 4 किलो कंपोस्ट, 20 ग्राम नाइट्रोजन, 20-40 ग्राम फ़ास्फ़ोरस और पोटाश डालना लाभदायक है। क्यारी बडी हो तो इसी अनुपात में खाद की मात्रा बढा लें। बराबर-बराबर मात्रा में नाइट्रोजन 3 बार देना चाहिए। एक तो रोपाई से पहले, दूसरी इस के करीब 60 दिन बाद तथा तीसरी मात्रा तब दें जब फ़ूल निकलने लगे। (लगभग 90 से 120 दिन बाद) कंपोस्ट, फ़ास्फ़ोरस और पोटाश की पूरी खुराक कंद रोपने के समय ही दे दें।
सिंचाई : पहले साल कंद रोपने के बाद से ले कर बारिश आने तक हर एक सप्ताह के अंतर से सिंचाई करें। दूसरे साल, गरमी के दिनों में, सप्ताह में 2 बार सिंचाई करें। बरसात के होने पर नमी की जरूरत के मुताबिक सिंचाई करें।
देखरेख के दूसरे तरीके : रजनीगंधा के पौधों के लिए खाद व उर्वरक का इस्तेमाल ठीक ढंग से करें। खेत, क्यारियों में खरपतवार दिखाई देते ही निकाल दें। निराई करने से पौधों के आसपास मिट्टी ढीली हो जाती है, जिस से उन में वायु संचार ठीक से होता है तथा कंद और जडों का विकास भी यही होता रहता है।
3 साल बाद हर पौधो से 25-30 छोटेबडे कंद भी प्राप्त होते हैं, डबल किस्म के स्पाइक (डंडियां) लगभग 75-95 सेंटीमीटर लंबे होते हैं, जिन से हर डंठल से 40-50 फ़ूल प्राप्त होते हैं। स्पाइक को यदि काटा न जाए तो 18 से 22 दिन तक उस पर फ़ूल खिलते रहते हैं। ऐसा देखा गया है कि सिंगल किस्म के फ़ूल लगभग हर मौसम में पूरी तरह खिल जाते हैं।
डबल किस्म के फ़ूल केवल जाडे के मौसम में ही पूरी तरह से खिलते हैं। फ़लस्वरूप बाकी समय इस फ़ूल के सुगंध बहुत कम या न के बराबर होती है। अत: व्यावसायिक दृष्टि से पैदावार के लिये सिंगल किस्म अधिक उपयुक्त पाई गई है।
फ़ूल सहित डंठल की बुडाई : रजनीगंधा के फ़ूल डंठल पर लगते हैं और जब इन फ़ूलों को माला, गजरा अथवा बुके बनाने के लिये चुनना यानी तोडना हो तो प्रात: का समय उपयुक्त रहता है। व्यावसायिक तौर पर उगाए गए फ़ूलों को यदि शाम को तोड कर दूसरे दिन सुबह बाजार भेजते हैं तो लगभग इस से प्रति फ़ूल 20-30 प्रतिशत वजन कम हो जाता है। एक व्यक्ति एक दिन में प्राय: 5 से 6 किलो तक फ़ूल तोड पाता है। कटे फ़ूल (कट्फ़्लावर) के रूप में इन के डंठल को 100-100 का बंडल बना कर बाजार में भेजा जाता है। यदि डंठल दूर भेजने हैं तो उस के नीचे खिलने वाले फ़ूलों को खिलने के पहले ही काट लें और यदि निकट बाजार के लिए हैं तो 2-3 फ़ूल खिलने पर डंठल को काट कर भेजना चाहिए। डंठल जितने लंबे होंगे मूल्य अधिक मिलेगा। अत: यथासंभव निचले भाग से तेज चाकू से काट कर तुरंत पानी भरी प्लास्टिक की बाल्टी में रखना चाहिए।
फ़ंगस से बचाव : रजनीगंधा में रोगों का प्रकोप प्राय: न के बराबर है लेकिन पानी से गीले होने वाले भाग पर फ़फ़ूंद (फ़ंगस) की बीमारी अकसर लग जाती है, जो पत्ती और फ़ूल दोनों को प्रभावित करती है। बचाव के लिए कीटनाशक दवा ’ब्रसीकोल’ (2 ग्राम प्रति लिटर पानी में घोल कर) का छिडकाव करें।
कीटों (कीडों) में खासतौर से थ्रिप्स (एक छोटा कीडा) तथा माइट (दीमक) का आक्रमण होता है, जोकि पत्ति और फ़ूल दोनों को प्रभावित करते है। थ्रिप्स से बचाव के लिये ’नूवान’ (2 ग्राम प्रति लिटर पानी में) या ’सेविन’ 0.4 प्रतिशत की दर से छिडकाव करना लाभकारी रहता है। कभी-कभी कैटर-पिल्लर भी पत्तियों, फ़ूल और डंठल को खा कर नुकसान पहुंचाते है।
अत: आक्रमण होने पर ’नुवान’ या ’रोजर’ दवाओं का छिडकाव 0.02 प्रतिशात की दर से करें, लाभ होगा।
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