मीरा कहै प्रभु हरि अविनासी, तन मन ताहि पटै रे।' मीरा कहती है कि मैं तुम्हें यह कह दूं कि मुझे जबसे यह अविनाशी मिला है, जबसे यह शाश्वत मिला है, तब से मेरा तन-मन, आत्मा सब एक हो गए हैं। वे द्वंद्व भीतर के गए; मैं निर्द्वंद्व हो गई हूं। वे जो भीतर खंड-खंड थे मेरे, वे सब समाप्त हो गए हैं; मैं अखंड हो गई हूं।
अखंड से जुड़ो तो अखंड हो जाओगे।
साधारणतः आदमी संसार में जीता है तो खंड-खंड रहता है, क्योंकि कितने खंडों से तुम जुड़े हो। एक हाथ पश्चिम जा रहा है, एक हाथ पूरब जा रहा है। एक पैर दक्षिण जा रहा है, एक पैर उत्तर जा रहा है। तुम कट गए। एक इच्छा कहती है - धन कमा लो; एक इच्छा कहती है - पद बना लो; एक इच्छा कहती है कि ज्ञान अर्जित कर लो; एक इच्छा कहती है यहीं संसार की चिंता में पडे+, थोड़ा स्वर्ग में भी इंतजाम कर लो, कभी कुछ दान-पुण्य भी कर लो। ऐसी हजार इच्छाएं हैं - और तुम हजार हो गए हजार इच्छाओं के कारण। और इन सबमें कलह है। ये इच्छाएं एक दिशा में भी नहीं जा रही हैं, क्योंकि अगर धन कमाना है तो पद न कमा पाओगे। अगर पद कमाना है तो धन गंवाना पड़ेगा। चुनाव लड़ना हो तो धन गंवाना ही पड़ेगा। और धन कमाना हो तो फिर चुनाव लड़ने से जरा बचना पड़ेगा। अगर स्वर्ग में कुछ पद-प्रतिष्ठा पानी हो, वहां सोने के महलों में वास करना और चांदी के रास्तों पर चलना हो, तो फिर आदमी को यहां भूखे मरना पड़े, उपवास करना पड़े - इत्यादि।
आकांक्षाएं विपरीत हैं। शरीर कहता है- भोजन करो। मन की आकांक्षाएं लोभ से भरी हैं; वह कहता है कि यहां क्या करना भोजन, स्वर्ग में ही कर लेंगे इकट्ठा। अभी कुछ दिन की बात है, गुजार लो; वहां शराब के चश्मे बह रहे हैं। मन कहता है - सुंदर स्त्री जा रही है, क्यों छोड़ दे रहे हो? एक मन कहता - इस स्त्री में उलझे तो फिर अप्सराएं नहीं मिलेंगी और खयाल रखना, फिर पछताओगे। अरे, यह तो दो दिन की बात है; एक दफा पहुंच गए स्वर्ग, तो अप्सराएं मिलेंगी। फिर भोगना सुख-ही-सुख अनंतकाल तक।
ऐसा मन अनेक-अनेक खंडों में बंटा है। इन खंडों के कारण तुम भी खंडित हो गए हो; तुम्हारी एकता टूट गई है।
सारे शास्त्रों का शास्त्र एक ही है कि तुम एक हो जाओ। लेकिन तुम एक कैसे होओगे; जब एक ही आकांक्षा रह जाए। उस एक आकांक्षा को ही हम राम कहते हैं। उस एक आकांक्षा का अर्थ ही यह है कि राम के सिवा कुछ भी नहीं पाना है। बाकी सब पाना उसी पर चढ़ा देना है; बस एक परमात्मा को पा लेना है।
जब एक ही आकांक्षा रह जाएगी तो तुम एक ही हो जाओगे। और कोई उपाय नहीं है। तुम्हारे भीतर योग साधने का और कोई उपाय नहीं है। जितनी आकांक्षाएं, उतने टुकड़े। यह बात तो तुम्हारी समझ में आ जाएगी कि जितनी आकांक्षाएं उतने टुकड़े हो जाते हैं। हर आकांक्षा एक टुकड़ा लेकर भागने लगती है। जब एक ही आकांक्षा रह जाएगी तो तुम अखंड हुए। वही है अर्थ - ÷मेरो मन रामहि राम रटै रे।' एक ही आकांक्षा बची है। बस एक ही को पाने की धुन सवार हुई है। सब धुनें खो गईं। सभी धुनें उसी में लीन हो गईं। जैसे सब छोटे-छोटे नदी-नाले आकर गंगा में सम्मिलित हो गए हैं, और गंगा सागर की तरफ - ऐसे ही सब छोटी-छोटी इच्छाएं एक विराट इच्छा बन गई हैं प्रभु को पाने की और सारी आकांक्षाएं उसी में सम्मिलित हो गई हैं। एक ही लक्ष्य बचा।
फिर ज्यादा देर तुम रुक न सकोगे। बहोगे अपने-आप, सागर तक पहुंच जाओगे। छोटे-छोटे नाले सागर तक नहीं पहुंच सकते; रास्ते में खो जाएंगे, मरुस्थलों में उड़ जाएंगे। लेकिन सब इच्छाएं मिल जाएं और एक अभीप्सा बन जाए... । अभीप्सा शब्द का यही अर्थ है। अभीप्सा का अर्थ होता है - सारी इच्छाएं एक इच्छा में निमज्जित हो गईं। छोटी-छोटी लपटें सब एक विराट लपट में खो गईं। तुम एक मशाल बन गए।
अब इस अविनाशी से लगन लग गई; अब तन और मन के बीच जो फासला था वह पट गया। अब कोई फासले नहीं रहे। अब कोई भेद नहीं रहे। अब कोई खंड नहीं रहे। मैं अखंड हो गई हूं।
23 जून 2010
प्रभु मिलन की आकांक्षा
Labels: अध्यात्म
Posted by Udit bhargava at 6/23/2010 02:09:00 pm
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