संत राजिंदर सिंह जी महाराज
हरेक इंसान की जिंदगी में ऊँच-नीच आता है। हर एक की जिंदगी में कुछ ऐसे मौके आते हैं, जिनमें की तकलीफें बढ़ जाती हैं। महापुरुष हमें समझाते हैं कि हर मौके पर धैर्य रखना है, प्रेम से काम करना है। ध्यान रखना है कि हम अपने छोटे से फायदे के लिए सिद्धांतों को न छोड़ दें।
एक बाँसुरी वाले की रोचक कहानी है। एक शहर में चूहे बहुत हो गए। लोग सड़कों पर जाएँ, तो वहाँ चूहे देखें और घरों में भी चूहे धमाचौकड़ी मचाते दिखें। जिधर देखो, चूहे ही चूहे। वहाँ बीमारी शुरू हो गई। एक दिन शहर के लोग मिल कर मेयर के पास गए और उससे कहा कि आप कुछ करिए। उसने भी अपनी तरफ से बड़ी तरकीबें कीं, पर चूहों की संख्या बढ़ती चली गई।
फिर मेयर ने घोषणा करवाई कि अगर कोई आदमी हमें वह नुस्खा बताए, जिससे चूहे यहाँ से चले जाएँ, तो हम उसे एक हजार फ्लोरेंस देंगे। वहाँ की मुदा का नाम फ्लोरेंस था। ऐलान के अगले ही दिन वहाँ एक आदमी कहीं बाहर से आया। उसने अजीब से कपड़े पहने हुए थे। उसने मेयर से पूछा कि अगर मैं इन चूहों को यहाँ से बाहर ले जाऊँगा, तो घोषणा के अनुसार क्या आप मुझे एक हजार फ्लोरेंस देंगे? मेयर ने कहा, हाँ, अगर सब चूहे चले गए, तो तुझे हजार फ्लोरेंस जरूर दे देंगे।
अगले दिन सुबह, वह आदमी पूरे शहर में घूम-घूम कर बाँसुरी बजाने लगा। उसकी आवाज चूहों को ऐसी लगी, जैसे खाने के डिब्बे खुल रहे हों। तो सारे चूहे उस आवाज के पीछे-पीछे जाने लगे। चलता-चलता वह शहर के बाहर आ गया। बाहर एक नदी बहती थी। बाँसुरी बजाता हुआ वह नदी के अंदर चला गया। तो उसके पीछे-पीछे सारे के सारे चूहे भी नदी के अंदर चले गए और डूब गए।
जब सारे चूहे डूब गए, तो वह वापस शहर आया और अपना मेहनताना माँगा। मेयर ने कहा, तुमने तो कुछ किया ही नहीं, सिर्फ बाँसुरी बजाई है। बाँसुरी बजाने के लिए हजार फ्लोरेंस कौन देता है?
बाँसुरी वाले ने कहा, देखो, अभी मुझे उस शहर में जाना है, वहाँ पर बिल्लियों को हटाना है। उसके बाद एक अन्य शहर में जा कर वहाँ से बिच्छुओं को हटाना है। तो आप जल्दी से मुझे पूरे पैसे दे दीजिए। पर मेयर ने कहा कि ये 50 फ्लोरेंस ले जाओ, तुमने तो खाली बाँसुरी बजाई है, और कुछ किया नहीं। हम तो मजाक में बोल रहे थे कि हजार फ्लोरेंस देंगे। यह सुनकर बाँसुरी वाला बड़ा दुखी हुआ।
अगले दिन उसने फिर से बाँसुरी बजानी शुरू की, किसी अलग तरह से और ऐसी बाँसुरी बजाई कि शहर में जितने भी बच्चे थे, सब खुश हो कर उसके पीछे-पीछे चलने लगे। फिर वह शहर से बाहर निकला और एक पहाड़ की गुफा में चला गया और सारे बच्चे उसके पीछे चले गए और उसके बाद गुफा का दरवाजा बंद हो गया।
इस कहानी से हमें कई चीजें समझने को मिलती हैं। एक तो यह है कि जब हम किसी से कुछ वादा करें, तो वह हमें अवश्य पूरा करना चाहिए, उसे निभाना चाहिए। हम सोचते हैं, हमारा काम हो गया, हम चालाकी कर लेते हैं। पर प्रभु की निगाह में किसी की कोई चालाकी नहीं चलती। हरेक बोल, हरेक कार्य, हरेक सोच का हमें भुगतान करना है। हम लोग काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार से घिरे हुए हैं; हमारी आत्मा सिकुड़ती जाती है और हम असलियत को नहीं जान पाते हैं। काल के दायरे में इतने फँस चुके हैं कि उसमें धँसते चले जाते हैं। वे लोग, जो अपनी जिंदगी में सदगुणों को ढालते हैं, वे अपनी मंजिल तक पहुँच जाते हैं।
जैसे बाँसुरी वाले ने बाँसुरी बजाई, ऐसे ही महापुरुष हमारे अंदर शब्द को शुरू कर देते हैं। प्रभु का 'शब्द' हम सबके अंदर चल रहा है, उसे सुन कर ,उसका प्रसाद ग्रहण कर हम आनंदित तो होते हैं, लेकिन उस आनंद को भोगने के लिए किया गया वाद नहीं निभाते।
स्वामी विवेकानंद जी कहते है -
बोध वाक्य "तुम्हारे भविष्य को निश्चित करने का यही समय है। इस लिये मै कहता हूँ, कि तभी इस भरी जवानी मे, नये जोश के जमाने मे ही काम करों। काम करने का यही समय है इसलिये अभी अपने भाग्य का निर्णय कर लो और काम में जुट जाओं क्योकिं जो फूल बिल्कुल ताजा है, जो हाथों से मसला भी नही गया और जिसे सूँघा ही नहीं गया, वही भगवान के चरणों मे चढ़ाया जाता है, उसे ही भगवान ग्रहण करते हैं। इसलिये आओं ! एक महान ध्येय कों अपनाएँ और उसके लिये अपना जीवन समर्पित कर दें "
25 जून 2010
बांसुरी वाले की कहानी और जिंदगी के वायदे
Posted by Udit bhargava at 6/25/2010 04:59:00 pm
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