किसी भी मांगलिक कार्य के पहले किस देवता का सर्वप्रथम पूजन हो, इसे लेकर देवताओं में गहरा मतभेद चल रहा था। कोई हल न सूझने पर वे प्रजापिता ब्रह्मा के पास पहुँचे। उनकी समस्या सुनकर ब्रह्माजी ने निर्णय दिया कि जो सारी पृथ्वी की परिक्रमा कर सबसे पहले उनके पास पहुँचेगा, वही प्रथम पूज्य का सम्मान पाएगा। इसके लिए सभी तैयार हो गए।
नियत समय पर दौड़ शुरू हुई। सभी अपने-अपने वाहनों को तेजी से दौड़ाने लगे, ताकि पहला स्थान पा सकें, लेकिन गणेश अपनी जगह पर ही खड़े थे। उनके साथ बड़ी दिक्कत थी। एक तो उनका भारी-भरकमशरीर और छोटे-छोटे पैर। ऊपर से उनका वाहन चूहा। वह बेचारा कितना जोर लगाता? अपनी कमजोरियों के मद्देनजर वे जीतने का कोई दूसरा उपाय सोच रहे थे।
अचानक वे कूदकर चूहे पर बैठे और कैलाश पर्वत पहुँचे। वहाँ उन्होंने शिव-पार्वती को एकसाथ बिठाकर उनकी सात बार परिक्रमा लगाई और सीधे ब्रह्मा के पास पहुँच गए। जब बाकी देवता वहाँ पहुँचे तो गणेश को देखकर उन्हें हैरानी हुई, तभी ब्रह्मा ने घोषणा की कि गणेश विजेता हैं। आज से सबसे पहले पूजा इनकी ही होगी। इस पर एक देवता बोला- गणेश कैसे जीत सकता है?
इसने तो पृथ्वी की परिक्रमा की ही नहीं है। ब्रह्मा- गणेश ने पृथ्वी की ही नहीं, बल्कि समस्त ब्रह्मांड की सात बार परिक्रमा की है। ये पृथ्वी स्वरूपा माता और ब्रह्मांड के स्वरूप पिता का चक्कर लगाकर आए हैं। ब्रह्मा की बात सुनकर सभी देवताओं ने गणेश को प्रथम पूज्य मान लिया।
दोस्तो, बुद्धि कौशल से व्यक्ति क्या नहीं पा सकता? फिर गणेशजी तो स्वयं बुद्धि के देवता हैं। वे तो इसका इस्तेमाल करेंगे ही। उन्होंने किया भी और इसी के बल पर वे प्रथम पूज्य बने। इसी तरह आप भी बुद्धि के बल पर सभी को पीछे छोड़ते हुए आगे निकल सकते हैं। वैसे गणेशजी का व्यक्तित्व गुणों की खान है। यदि आपने इन्हें जान-समझकर अपने अंदर उतार लिया तो फिर सफलता की दौड़ में आप भी कभी पीछे नहीं रहेंगे। उनकी तरह हर व्यक्ति को बड़े सिर का होना चाहिए।
यानी उसकी सोच का दायरा विस्तृत होना चाहिए, संकुचित या छोटा नहीं, तभी बिना भेदभाव के सबका भला सोचा और किया जा सकता है। गणेशजी के सूप जैसे बड़े कान बताते हैं कि सूप की ही तरह श्रेष्ठ बातों को ग्रहण करें और शेष को छिलके की तरह उड़ा दें। बड़े कान इस बात के भी प्रतीक हैं कि आप सुनें ज्यादा और बोलेंकम। इसलिए गणपति का मुख भी छोटा है। वैसे भी कम बोलना बुद्धिमानी की निशानी है।
गजानन की नाक यानी सूँड भी बड़ी है, जो दूर तक सूँघ सकती है। दूर तक सूँघना यानी दूरदर्शी होना। व्यक्ति को चाहिए कि वह आगे की पहले ही भाँप जाए। उनकी छोटी आँखें प्रतीक हैं सूक्ष्म दृष्टि की। यदि आपकी दृष्टि सूक्ष्म होगी तो कोई भी चीज आपकी नजर सेबच नहीं पाएगी। गणपति का पूरा दाँत श्रद्धा का और आधा दाँत प्रतिभा का प्रतीक है।
यदि प्रतिभा कम होगी तो भी चलेगा, लेकिन श्रद्धा पूरी होगी, तो आप जो भी कर रहे हैं, उसमें सफलता मिलेगी ही। उनका बड़ा उदर बताता है कि बातों को पचाना सीखें। इधर की बात उधर नकरें। गणपति के छोटे पैर प्रेरणा देते हैं कि उतावले मत बनो। संयम रखकर ही सफलता की राह पर आगे बढ़ा जा सकता है। इस तरह गणेशजी के व्यक्तित्व के हर पहलू में कोई न कोई संदेश छिपा है, जिसे हमें जानना-समझना चाहिए।
और अंत में, आज गणेश चतुर्थी पर घर-घर में गणेश मूर्ति की स्थापना कर उनकी पूजा-अर्चना की जाएगी, ताकि हमारे सारे काम निर्विघ्न संपन्ना होते रहें। काम की सफलता में उनके आशीर्वाद के साथ ही यह भी जरूरी है कि आपका गणपति ठिकाने पर रहे। यहाँ गणपति माने हमारा मन। शास्त्रों में इंद्रियों को गण और मन को उनका स्वामी या पति माना गया है, तो मन हुआ न गणपति।
इसलिए कोई भी काम करने से पहले सर्वप्रथम अपने मन रूपी गणपति का पूजन करें ताकि कोई विघ्न खड़ा न हो, क्योंकि यही किसी भी कार्य के दौरान हमारा ध्यान भंग कर, भटकाकर सबसे ज्यादा विघ्न डालता है। यदि आपका यह गणपति आराम से रहेगा, तभी आपके सभी कार्य निर्विघ्न होंगे। गणपति बप्पा मोर्या।
17 जनवरी 2010
तभी बने काम, जब गणपति करे आराम
Posted by Udit bhargava at 1/17/2010 10:19:00 pm
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