महान रसायन विज्ञानी फ्रेडरिक आगस्ट कैकुले सन् 1865 में कार्बनिक पदार्थ बैंजीन की संरचना की खोज में लगे थे। वे इस काम में इस तरह डूबे रहते कि उन्हें न दिन की खबर रहती, न रात की। यह समस्या उनके दिलो-दिमाग पर इस तरह हावी थी कि उन्हें इसके अलावा कुछ और सूझता ही नहीं था। इसके बावजूद उन्हें सफलता नहीं मिल पा रही थी।
सर्दियों में एक दिन प्रयोगशाला में काम करते-करते थक जाने पर वे कुछ देर आराम करने के इरादे से एक अँगीठी के पास कुर्सी लगाकर बैठ गए। थोड़ी ही देर में उनकी आँख लग गई और उन्हें एक सपना दिखाई दिया कि कार्बन के 6 परमाणु उनकी प्रयोगशाला की अँगीठी के ऊपर नाच रहे हैं।
नाचते-नाचते वे अचानक एक-दूसरे का हाथ पकड़कर एक वृत्ताकार संरचना में व्यवस्थित हो गए। तभी उनकी नींद टूट गई और वे सपने के बारे में सोचने लगो। कुछ देर के सोच-विचार के बाद वे इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि उनके सपने की ही तरह बैंजीन में कार्बन के 6 परमाणु एक-दूसरे से गोलाई में जुड़े रहते हैं।
इस निष्कर्ष के आधार पर उन्होंने प्रयोग शुरू किए और नतीजा सपने जैसा ही आया। इस प्रकार उनके सपने ने एक बहुत बड़ी समस्या हल कर दी।
दोस्तो, रूसी कहावत है कि सोती लोमड़ी सपने में मुर्गियाँ ही गिनती रहती है, क्योंकि जागते हुए वह इसी उधेड़बुन में लगी रहती है कि मुर्गियों को कैसे पकड़े। इसी तरह किसी काम या उलझन में होने पर व्यक्ति को उठते-बैठते, खाते-पीते, सोते-जागते उस काम के सिवाय कुछ नहीं सूझता।
वह बात उसके मन-मस्तिष्क पर इस तरह हावी रहती है कि उसे आसानी से नींद नहीं आती। यदि आती भी है तो वह उसी के बारे में सोचते-सोचते सोता है और एक झटके के साथ जागकर फिर से उस पर सोचना शुरू कर देता है।
ऐसे में उसके ख्वाब भी उस विषय से कैसे अछूते रह सकते हैं। वह सपने में भी अपने आपको उन्हीं परिस्थितियों में पाता है, जिनमें कि वह जागृत अवस्था में रहता है। तब कई बार उसके सपने उसे उस समस्या का हल भी सुझा देते हैं। जरूरत होती है सिर्फ उन्हें समझने की। लेकिन कहा जाता है कि सपनों के सहारे जिंदगी नहीं जी जाती, क्योंकि वे हकीकत से दूर होते हैं। यह बात पूरी तरह सही नहीं है।
कहते हैं कि मूर्खों के सपने मूर्खतापूर्ण होते हैं। तो फिर समझदारों के सपने भी समझदारीभरे होंगे। यानी महत्वपूर्ण यह है कि सपने देख कौन रहा है। इसलिए यदि आप अपने सपने पूरे करने के लिए सही राह पर चल रहे हैं, तो आपके सपने भी आपको गलत राह नहीं दिखाएँगे। मुसीबत में पड़ने पर वे आपको उससे निकलने की राह भी सुझाएँगे बशर्ते आप उनकी मानें, उन्हें पढ़ना जानें।
यदि आप भी कैकुले भी तरह अपने सपने में छिपे गूढ़ अर्थ को जान गए तो आपके भी सपने पूरे होंगे वर्ना वे सिर्फ सपने ही रह जाएँगे।
दूसरी ओर, कहावत है कि बिल्ली को छिछड़ों के ख्वाब। अकसर यह बात नकारात्मक सेंस में सामने वाले पर कटाक्ष में कही जाती है कि उसे किसी बात या कार्य विशेष के अलावा कुछ नहीं सूझता। इसमें कटाक्ष भले ही हो, लेकिन यह बात भी जानने की है कि हम जो पाना चाहते हैं, जब तक उसके सपने नहीं देखेंगे तो उसे पाएँगे कैसे। सपने होंगे तभी तो उन्हें हकीकत में बदलने की कोशिश करेंगे।
इसलिए खूब सपने सँजोओ ताकि उन्हें पूरा कर सको। फिर भले ही दिन हो या रात। दिन के सपने को लोग भले ही दिवास्वप्न कहकर नकार ही क्यों न दें, कैकुले के दिवास्वप्न ने ही तो इतनी बड़ी खोज को प्रकाश में लाने में मदद की।
और अंत में, कैकुले की 7 सितंबर को जन्मतिथि थी। एक बार अपने सपने पर किसी के द्वारा किए गए कटाक्ष के जवाब में उन्होंने कहा था- 'आओ चलो, अपने सपनों से सीखें श्रीमान। तब संभवतः हम हकीकतों से सीख पाएँगे।' इसलिए सपनों से सीखकर सपने पूरे करें। अरे भई, बिना कुछ किए ख्वाब पूरे होने वाले नहीं।
17 जनवरी 2010
सपनों को पूरा करने में मदद करते हैं सपने
Posted by Udit bhargava at 1/17/2010 10:55:00 pm
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