17 जनवरी 2010

दृड़ इरादों के आगे नहीं ठहरती अपंगता

पर्णा सचदेव रायपुर के कांगेर वैली अकादमी में सातवीं कक्षा में पढ़ती है। वह की-बोर्ड वाले वाघ यन्त्र बजाती है। वह पढ़ाई में बहुत तेज है और हर साल परीक्षा में 85 फीसदी या उससे ज्यादा अंक लेकर उत्तीर्ण होती है। वह स्कूल में होने वाली अन्य गतिविधियों में भी बहुत अच्छा परफार्म करती है। उससके माता-पिता उस पर बहुत ध्यान देते हैं और उसके स्कूली समय को छोड़कर बाकी पूरा समय उसके साथ ही जुगारते हैं। वे उसके हर पाठ को कम्पूटर पर उपलोड करने में मदद करते हैं। यहाँ तक कि उन्होनें उसके पठान-पाठन से जुड़े तमाम अध्यायों को कम्पूटर पर उपलोड किया है ताकि उसे पढने में आसानी हो।

अब आप पूछ सकते हैं कि इसमें क्या ख़ास बात है? यदि अपर्णा के माता-पिता कि तरह दुसरे बच्चों के माता-पिता भी उनके साथ पूरा समय गुजारें तो बच्चे सौ फीसदी अंक भी हासिल कर सकते हैं। आपका कहना सही है, लेकिन मैंने अभी अपर्णा के बारे में आपकी पूरी तरह नहीं बताया। अपर्णा आपकी ओर सीधा देखेगी। उसका ज्यादातर ध्यान इस बात पर होगा कि वह आपको गौर से सुन सके। ऐसा इसलिए क्योकिं उसकी आँखों में नब्बे फीसदी रोशनी नहीं है। उसके माता-पिता ने सभी विषयों के अध्यायों को कम्पूउतेर पर उपलोड कर दिया है इस तरह अब वह पढने के लिहाज से फांट साइज़ को अपने हिसाब से बढ़ा सकती है। यही कारन है कि उसे सौ फीसदी अंक नहीं मिलते, फिर भी वह बहुत अच्छे अंकों के साथ उत्तीर्ण होती है।

जब वह वार्षिक कार्यक्रमों के दौरान पुरस्कार लेने के लिए मंच पर जाती है, तब कोई भी नहीं कह सकता उसकी नज़र बेहद धुंदली है और उसकी आँखों में सिर्फ दस फीसदी रोशनी है। वह चस्मा नहीं पहन सकती और चिकित्सा जगत में उसकी इस व्याधि के लिए उपचार नहीं है, हालाकिं उसके अभिभावकों को पूरी उम्मीद हा कि आगामी कुछ वर्षों में इसका निदान मिल जाएगा। इस कारण से उसके अभिभावक चिकित्सा जगत में होने वाली हलचलों के रोज़ संपर्क में रहते हैं। अपर्णा के पिता हर उस बच्चे कि मदद के लिए हमेशा तैयार रहते हैं जो द्रिष्टिदोष से पीड़ित है। उन्होनें इसके बारें में काफी जानकारी जुटा ली है और इसे अलग-अलग श्रेणियों के मुताबिक वर्गीकृत कर दिया है। उन्हें जान्ने वाले लोग कहते हैं कि वह द्रिष्टिबाधिता के लिए चलता-फिरता एन्साइक्लोपीडिया है।