एक नया बस ड्राइवर शहर से दूर सुनसान इलाके में स्थित फैक्टरी से रात पाली के कर्मचारियों को शहर वापस ला रहा था। चूँकि कर्मचारी थके-हारे थे, इसलिए बस में बैठते ही सो गए। इससे बस में सन्नाटा छाया हुआ था।
रास्ता बहुत ऊबड़-खाबड़ था और ड्राइवर का भी यह पहला अनुभव था, इसलिए उसे रास्ते की गड्ढों की जानकारी नहीं थी। फिर भी वह गड्ढों की परवाह किए बिना निश्चिंत होकर गाड़ी चला रहा था। जब भी बस किसी गड्ढे के कारण उछलती तो कोई कर्मचारी पीछे से चिल्लाता- अबे, ठीक से चला। क्यों नींद खराब करता है। यह सुनकर वह घबरा जाता, लेकिन पीछे मुड़कर नहीं देखता।
जब सड़क का कुछ ज्यादा ही खराब हिस्सा आया तो गाड़ी झूलने लगी। इस पर सवारियाँ शोर मचाने लगीं। डर के मारे ड्राइवर ने गाड़ी की स्पीड बढ़ा दी। इससे गाड़ी और भी डाँवाडोल होने लगी। अचानक एक कर्मचारी उठा और उसके कंधे को झिंझोड़कर बोला- अबे, क्या बहरा है या पिए हुए है।
खुद तो मरेगा, हमें भी मरवा देगा। ठीक से चला। तब तक पसीना-पसीना हो चुका ड्राइवर जोर से चिल्लाया- बचाओ-बचाओ। इसके साथ ही पूरी ताकत से गाड़ी के ब्रेक लगा दिए। कुछ देर बाद उसने हिम्मत करके पीछे देखा और फिर जोर-जोर से हँसने लगा। दोस्तो, जानते हैं वह ड्राइवर जोर-जोर से क्यों हँसा? इसलिए कि इससे पहले वह शववाहिनी का ड्राइवर था और उसे यही भान था कि वह शववाहिनी में शव ले जा रहा है। जब भी कोई सवारी टोकती तो वह यह सोचकर घबरा जाता कि मुर्दा बोल कैसे रहा है। अंत में वास्तविकता समझ में आने पर वह अपनी ही सोच पर हँसने लगा।
दरअसल लगातार एक जैसा काम करते रहने से वह उसके दिलो-दिमाग पर छा जाता है। तब काम बदलने पर भी उसका वह रूटीन, उसकी आदत उसका पीछा नहीं छोड़ती और वह अवचेतन अवस्था में अतीत में चला जाता है। यही कारण है कि किसी नई संस्था में आने के बाद भी कई बार व्यक्ति के मुँह से वर्तमान संस्था के नाम की जगह पुरानी संस्था का नाम निकल जाता है।
तारीख डालने में पुराना महीना या साल लिख देना भी इसी तरह की आदत के चलते होता है। ऐसा वाकया होने पर व्यक्ति को हर बार एक जोर का झटका लगता है, जो उसे अतीत से निकालकर वर्तमान में लाता है और बताता है कि अब तुम्हारी दुनिया बदल गई है। तब वह भी अपनी मूर्खता पर उस ड्राइवर की तरह जोर से हँस या मुस्करा देता है और यही झटके उसे नए माहौल में ढालते जाते हैं।
इस प्रक्रिया में पुराने और नए अनुभव आपस में टकराते हैं। जिस व्यक्ति का दिमाग जितना ज्यादा खुला होता है, वह उतनी जल्दी नए माहौल में ढल जाता है। जिनके अंदर अस्वीकृति का भाव होता है, वे अतीत से बाहर नहीं निकल पाते।
नया माहौल उनमें घुटन पैदा करता है और वे उसके अनुसार अपने को ढाल नहीं पाते।यदि आप भी किसी भी तरह के बदलाव से गुजर रहे हैं या बदलाव चाहते हैं, तो आपको अपने सिर से अतीत के भूत को उतारना होगा। तभी आप खुद को बदलकर अपना भविष्य सँवार पाएँगे। जो लोग अतीत से चिपके रहते हैं, वे मुर्दों की तरह रहते हुए अतीत बन जाते हैं और किसी शववाहिनी के ड्राइवर की तरह अपना ही शव ढोते रहते हैं।
उनका वर्तमान बार-बार उनके कंधे पर हाथ रखकर चेताता भी है, लेकिन वे वर्तमान से इस तरह डरे रहते हैं कि वह उन्हें भूत की तरह लगता है और वे उसे देखने तक से कतराते हैं। और जो अतीत वाकई भूत हो चुका है, वही उन्हें रास आता है। इस कारण वर्षों से एक ही काम में लगे कई लोग नए काम की सुनकर ही सिहर उठते हैं, क्योंकि वे सोचते हैं कि वे कुछ और नहीं कर पाएँगे। इस डर से वे अपने प्रगति के अवसरों को गँवाकर अपना भविष्य अंधकारमय बनाते जाते हैं।
इसलिए व्यक्ति को लगातार एक जैसा काम नहीं करना चाहिए, ताकि वह उसकी आदत न बन जाए, क्योंकि कोई भी आदत आसानी से छूटती नहीं। यदि आप प्रगति चाहते हैं तो अपने क्षेत्र से जुड़े अन्य काम को भी करना सीखें।
इससे आपके सीखने की आदत भी जिंदा रहती है और आप टाइप्ड होने से बच जाते हैं। तब आपका बॉस भी आपको नए-नए काम देकर आगे बढ़ाता जाता है। अरे भई, रहे होगे कभी फन्नो खाँ। आज की बात करो।
17 जनवरी 2010
वर्तमान को समझोगे नहीं तो अँधेरे में रहेगा भविष्य
Posted by Udit bhargava at 1/17/2010 10:09:00 pm
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