1952 में एडमंड हिलेरी ने दुनिया के सबसे ऊंचे शिखर माउंट एवरेस्ट पर चढने की कोशिश की, पर वे विफल रहे। कुछ सप्ताह बाद उनसे इंग्लैंड में एक समूह को संबोधित करने को कहा गया। हिलेरी मंच पर आए और माउंट एवरेस्ट की तस्वीर की तरफ मुक्का तानते हुए बोले, 'माउंट एवरेस्ट, तुमने मुझे पहली बार तो हरा दिया, पर अगली बार मैं तुम्हें हरा दूंगा, क्योंकि तुम बढ नहीं सकते पर मैं प्रगति कर सकता हूं।' एक साल बाद 29 मई को एडमंड हिलेरी माउंट एवरेस्ट पर पहुंचने वाले पहले इंसान बन गए। बकौल हिलेरी, 'इंसान को पहाड को नहीं, खुद को जीतना पडता है।'
'दी सीक्रेट' की लेखिका रॉन्डा बर्न अपने जीवन के बारे में कहती हैं, 'मैं पूरी तरह हताश थी। शारीरिक, भावनात्मक और आर्थिक जीवन के तीनों महत्वपूर्ण मोर्चों पर पूरी तरह बिखर चुकी थी। अचानक ही मेरे पिताजी चल बसे। अब मुझे अपनी दुखी मां की चिंता भी सताने लगी। चारों ओर से मानो दुखों का सैलाब सा उमड पडा। मैं दिन-रात रोती थी... रोती थी और सिर्फ रोती थी। पर अचानक मेरे मन में आशा की एक तरंग-सी उठी। अब मैं अच्छी चीजों को अपने जीवन की ओर खींचने लगी थी। अच्छे की उम्मीद करते ही मैं स्वस्थ महसूस करने लगी। चमत्कार होने लगे। मैं स्वस्थ, धनवान और मशहूर होने लगी। यही 'दी सीक्रेट' की शुरूआत थी मेरे लिए। मैं एक बेस्टसेलर किताब की लेखिका बन गई क्योंकि मुझे यकीन था कि ऎसा होगा।'
नए साल पर हम सब मिलकर संकल्प करें कि सदा आशा का दामन थामे रहेंगे, फिर चाहे कोई भी परिस्थिति आ जाए, हम दुखी नहीं होंगे। अगर आप आशावान रहे, तो आपकी किस्मत भी पीछे-पीछे चलेगी। यूनिवर्सिटी ऑफ नॉर्थ कैरोलीना (यूएस) में मनोविज्ञान की प्रोफेसर बारबरा फ्रेड्रिक्सन ने अपने ताजा शोध में पाया है कि सकारात्मक भावनाएं जैसे- खुशी और कृतज्ञता, समस्याओं से निपटने की बेहतर क्षमता उत्पन्न करती है। इतना ही नहीं इनसे एकाग्रता और सीखने की क्षमता में भी इजाफा होता है। फ्रेड्रिक्सन कहती हैं, 'पिछले कुछ सालों में हमने पॉजिटिव सोच और खुशी के संबंध में कई दिलचस्प तथ्यों की जानकारी हासिल की है। इनसे पता चलता है कि सकारात्मक सोच से महत्वपूर्ण बदलाव हासिल किए जा सकते हैं।'
रॉन्डा बर्न कहती हैं, 'आप इस ब्रह्माण्ड के सबसे शक्तिशाली चुंबक हैं। आप जैसा सोचते हैं, वैसा पाते हैं। अच्छे की उम्मीद कीजिए, अच्छे में यकीन कीजिए... सब कुछ अच्छा ही होगा। अगर आप आशावादी हैं और किसी पॉजिटिव बात या विचार पर फोकस करते हैं, तो उस क्षण आप ब्रह्माण्ड से सकारात्मक चीजों को अपनी ओर खींच रहे होते हैं।'
जिंदगी से जोडती है आशा
'आशावादी लोग बीमार पडने पर भी रूटीन जिंदगी से जुडे रहते हैं। अगर आपको कोई बीमारी है और आप दिन-रात इसी पर फोकस करते हैं, लोगों से बार-बार इसी पर विचार-विमर्श करते हैं, तो पक्का मानिए आप ज्यादा बीमार कोशिकाएं पैदा कर रहे होते हैं। दिनभर में अपने आप से सौ बार कहिए, 'मैं स्वस्थ हूं, मैं फिट हूं, मुझे अच्छा महसूस हो रहा है। ऎसा कहकर खुद को ऊर्जा दीजिए और सामान्य जीवन से जुडे रहिए।' यह मानना है रॉन्डा बर्न का।
सेहत का सुरक्षा कवच
ऑप्टीमिज्म पर किए गए हालिया शोध बताते हैं कि आशावादियों का कार्डियोवैसकुलर सिस्टम और शरीर की रोगों से रक्षा करने वाली प्रणाली (इम्यून सिस्टम) निराशावादियों की तुलना में ज्यादा दुरूस्त होते हैं।
चिकित्सकों का भी मानना है कि अच्छे विल पॉवर और सकारात्मक सोच वाले रोगी, डरने वाले और नकारात्मक सोचने वाले रोगियों की तुलना में जल्दी ठीक हो जाते हैं। गर्भवती महिलाओं पर भी अच्छी-बुरी सोच के स्पष्ट प्रभाव देखे जा सकते हैं। तनावरहित और खुश रहने वाली महिलाओं में नॉर्मल डिलीवरी की संभावना अधिक रहती है और उनका बच्चा भी स्वस्थ होता है।
खुशी से हार्मोन प्लाज्मा फाइबारीनोजेन भी घटता है, जो कोरोनरी हार्ट डिजीज का संकेतक है। खुशी से हार्ट रेट भी कम होती है। उच्च हार्ट रेट जीवन को घटाने वाली मानी जाती है।
यूनिवर्सिटी ऑफ नेबारास्का मेडिकल सेंटर (ओमाहा-यूएस) में हैल्थ प्रमोशन के प्रोफेसर मोहम्मद सियापुश कहते हैं, 'पॉजिटिव साइकोलॉजी में हुए ताजा रिसर्च बताते हैं कि सकारात्मक सोच का सेहत पर सुरक्षात्मक प्रभाव पडता है।' सियापुश ने हाल ही ऑस्ट्रेलिया में करीब 10 हजार लोगों पर हुए अध्ययन का विश्लेषण किया और पाया कि एक खास समय खुशी महसूस करने वाले दो साल बाद ज्यादा स्वस्थ पाए गए। जाहिर बात है कि खुशी सिर्फ पॉजिटिव सोच वाले लोगों में ही पाई जा सकती है।
कैसे बनें आशावादी
माना सकारात्मक सोच और खुशी को हासिल करना इतना आसान नहीं, क्योंकि 50 फीसदी लोगों के जीन में पॉजिटिव और खुश रहने की क्षमता होती है। यही वजह है कि कुछ लोग कठिन हालात में भी सहजतापूर्वक खुश रहते हैं और उम्मीद रखते हैं। जबकि कुछ लोग सदा दयनीय, उदास और दीनहीन से ही बने रहते हैं। सदा मुंह लटकाकर रखने वालों को लोग पसंद नहीं करते और उनके हिस्से आती है- असफलता, बीमारी और गरीबी। कुछ बातों का ध्यान रखकर ऎसे लोग भी आशावादी बन सकते हैं-
सबसे पहले तय करें कि आप क्या हासिल करना चाहते हैं। फिर सोचें कि आपके पास ऎसे कौन से संसाधन, संबंध और उपाय हैं, जिन्हें आप उस चीज को हासिल करने में झोंक सकते हैं। यकीन करें, चीजें मिलती जाएंगी, रास्ता भी मिलता जाएगा और मंजिल भी मिल जाएगी।
इस बात को स्वीकार कर लें कि समस्या सामने है और इसका मुकाबला आपको ही करना है। समस्या से दूर भागेंगे, तो समस्या आपका पीछा करेगी। उदास होकर बैठेंगे, तो वह पनपकर विशाल रूप ले लेगी। फायदा इसी में है कि सिर उठाते ही उसे ठिकाने लगा दिया जाए।
सब सोच का कमाल है
'चिकन सूप फॉर द सोल' सीरीज के रचयिता जैक केनफील्ड इस किताब को लिखने से पहले भारी कर्ज में डूबे हुए थे। उम्मीद का दामन थामे रखने की सलाह देने वाले केनफील्ड की यह किताब दुनियाभर में 100 मिलियन कॉपियों की बिक्री के साथ सफलता का परचम लहरा चुकी है। केनफील्ड की सोच भी रॉन्डा से मिलती-जुलती है, 'आप जिन चीजों पर फोकस करते हैं, वो हर चीज आपके जीवन पर असर डालती है। सारा दारोमदार इस बात पर है कि हम कैसा महसूस करते हैं। हमारी फीलिंग्स यूनिवर्स में तरंग भेजती हैं और उसी स्तर पर ब्ा्रह्मांड में व्याप्त अन्य तरंगें जिंदगी की ओर खिंची चली आती हैं। अधिकतर लोग खराब या नकारात्मक बातें ज्यादा सोचते हैं। आप निगेटिव सोचेंगे, तो जिंदगी में नकारात्मकता रहेगी।'
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