04 जून 2010

10 की दुनिया ( 10 of the world )

धर्म के दस लक्षण हैं, तो जीवन की अवस्थाएं भी दस हैं। हमारे यहां दशकर्म या दस संस्कारों का चलन रहा है। हमारे शरीर के दस द्वार हैं। दिशाएं दस हैं, तो दसों दिशाओं की रक्षा करने वाले दस देवता भी हैं। रावण के दशमुख होने के कारण उसे दशानन, दशशिर और दशास्य जैसे नाम दिए गए तो रावण का संहार करने वाले श्रीराम को दशास्यजित, दशकंठारि, दशकंठजित आदि कहा गया। चांद्रमास के दोनों पक्ष की दसवीं तिथि दशमी कहलाती है। दशमी से कई पर्व जुडे हैं, जैसे विजय दशमी, सुगंध दशमी, गंगा दशहरा। जन्म कुंडली के दशम भाव से जीवन में मिलने वाले सम्मान, पद, व्यापार, कर्म, पिता और आज्ञा आदि का विचार किया जाता है।

दिशा, द्रव्य और अवस्था
पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, अग्नि, नैऋत्य, वायु, ईशान, अध: और उध्र्व दस दिशाएं हैं। पूर्व दिशा के देवता इंद्र, अग्निकोण के अग्नि, दक्षिण दिशा के यम, नैऋत्य कोण के नैऋत्य, पश्चिम दिशा के वरूण, ईशान कोण के ईश, उध्र्व दिशा के ब्ा्रह्मा और अध: दिशा के देवता अनंत हैं। इसी प्रकार वायु कोण के मरूत और उत्तर दिशा के देवता कुबेर हैं। शरीर के दस द्वार हैं- 2 कान, 2 आंख, 2 नासा छिद्र, 1 मुख, गुदा, लिंग और ब्ा्रह्मांड। दस सुगंधों के मेल से बनने वाला धूप, जो पूजा में जलाया जाता है, उसमें दस प्रकार के द्रव्य मिलाए जाते हैं। ये द्रव्य हैं- शिलारस, गुग्गुल, चंदन, जटामासी, लोबान, राल, खस, नख, भीमसैनी कपूर और कस्तूरी। मनुष्य का जीवन दस अवस्थाओं में बंटा है। ये अवस्थाएं हैं- गर्भवास, जन्म, बाल्य, कौमार, पोगंड यानी पांच से सोलह वर्ष तक की वय का बालक, यौवन, स्थाविर्य, जरा, प्राणरोध और नाश।

देवता और धर्म
जीवन और साहित्य से आगे धर्म की ओर जाएं, तो अनेक देवी-देवता दस के वर्ग में मिल जाएंगे। भगवान विष्णु के मुख्य अवतार दशावतार जाने जाते हैं। ये हैं- मत्स्य, कूर्म, वराह, नृसिंह, वामन, परशुराम, राम, बलराम, बुद्ध और कल्की। वे दस देव मूर्तियां जिनकी शाक्त लोग उपासना करते हैं, दशमहाविद्या कहलाती हैं। दशमहाविद्या ये हैं- काली, तारा, षोडसी, भुवनेश्वरी, भैरवी, छिन्न मस्ता, धूमावती, बगला, मातंगी और कमला। भगवान बुद्ध को दस बल प्राप्त थे, इसलिए वे दशबल कहलाए। ये बल हैं- दान, शील, क्षमा, वीर्य, ध्यान, प्रज्ञा बल, उपाय, प्रणिधि और ज्ञान। धृति, क्षमा, दम, अस्तेय, शौच, इंद्रिय निग्रह, घी, विद्या, सत्य और अक्रोध धर्म के दस लक्षण हैं।

संस्कार, वृक्ष और व्यसन
गर्भाधान संस्कार से लेकर विवाह तक दस संस्कारों का प्रचलन रहा है। इन संस्कारों को दशकर्म भी कहते हैं। दशकर्म हैं- गर्भाधान, पुंसवन, सीमंतोन्नयन, जातकरण, निष्क्रामण, नामकरण, अन्नप्राशन, चूडाकरण, उपनयन और विवाह। इसी तरह शास्त्रों में दस प्रकार के व्यसन बताए गए हैं। ये दशकाम-व्यसन कहलाते हैं। ये हैं- मृगया, द्यूत, दिवानिद्रा, परनिंदा, प्रमाद शक्ति, नृत्य, गीत, क्रीडा, वृक्ष भ्रमण और मद्यपान। तंत्र के अनुसार दस वृक्षों का कुल दशकुल वृक्ष कहलाता है। ये वृक्ष हैं- लिसोडा, करंज, बेल, पीपल, नीम, कदंब, गूलर, बरगद, इमली और आंवला।

औषधियां
दस औषधियां काढे के काम आती हैं- अडूसा, गुर्च, पितपापडा, चिरायता, नीम की छाल, जल भंग, हरड, बहेडा, आंवला और कुलथी। वैद्यक में दस वनस्पतियों की जडें दशमूल भी उपयोगी हैं। दशमूल हैं- सरिवन, पिठवन, छोटी कटाई, बडी कटाई, गोखरू, बेल, पाठा, गंभारी, ननियारी और सोना पाठा।