जिस घर में लडकियां हैं, पूरे घर में आपको प्यारी-सी महक मिलेगी। एक अनोखी किस्म की नजाकत और नफासत, जिसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता है। बेटियां घर को सजाती है, संवारती है और घर को संबंधों की ऊर्जावान डोर में बांध लेती हैं। बेटियां परिवार के लिए लक्ष्मी हैं। वे चाहे जहां रहें, हमेशा परिवार की चिंता उन्हें सालती रहती है। देश के विकास में अगर बेटियों का योगदान देखें, तो पता लगेगा कि आजादी और आजादी के बाद हर मोर्चे पर बेटियों ने अपना हुनर दिखाया है। लडकियों ने आसमान से लेकर समंदर की गहराइयों तक सफलता का परचम लहराया है। आज भी घर के बडे-बुजुर्ग कहते हैं कि लडकियां जिस घर में पैदा होती है, वहां बरकत आती है।
इन्हें देखकर लगता है कि कुदरत ने सारी ममता बेटियों की झोली में डाल दी है। आज भी समाज में ऎसी कई बेटियां हैं, जिन्होंने समाज और दुनिया के लिए खुद को जोखिम में डाला। सानिया मिर्जा और कल्पना चावला के पिता से बात करके देखिए, बेटियों के कमाल की बदौलत आज इनके परिवार को फख्र है।
कौन लेगा जिम्मेदारी
पंजाब जाकर देखिए, यह राज्य आज बहनों के लिए तरस रहा है। राखी के दिन वहां हजारों लडकों की कलाइयां सूनी रहती हैं। कारण साफ है। पंजाब में लडकियों की तादाद तेजी से घटती जा रही है। कन्या भ्रूण हत्या का ग्राफ बढता जा रहा है। नई रिपोट्र्स पर विश्वास करें, तो देश में कन्या भू्रण हत्या तेजी से बढ रही है। अब वो दिन दूर नहीं, जब आपको नवरात्रों पर जिमाने के लिए कन्या कहीं नजर नहीं आएंगी। बढती कन्या भ्रूण हत्या के लिए अनपढ या पिछडे लोगों की बजाय मॉडर्न और एजुकेटेड लोग ज्यादा जिम्मेदार हैं। उच्च मध्यवर्गीय परिवारों तक में लडकियों को दोयम दर्जा दिया जाता है। अगर यह चलन जारी रहा, तो वो दिन दूर नहीं जब नारी जाति के अस्तित्व पर ही खतरा होगा। इंस्टीट्यूट ऑफ डवलपमेंट एंड कम्युनिकेशन (आईडीसी) के सर्वे से इस बात का खुलासा हुआ है कि कन्या भ्रूण हत्या में पढे-लिखे लोगों की संख्या ज्यादा है। संस्था के मुताबिक 2002 में लिंग निर्धारण टेस्ट करवाने वालों में स्नातक या इससे अधिक पढे-लिखे लोग 45 फीसदी थे, जो 2006 में बढकर 49.6 फीसदी तक पहुंच गए। अध्ययन बताते हैं कि जहां पढे-लिखे लोग भ्रूण हत्या के लिए आधुनिक तरीकों जैसे अल्ट्रासाउंड तकनीक आदि का इस्तेमाल करते हैं, वहीं ग्रामीण लोग कन्या जन्म के बाद ऎसा करतेे हैं।
प्रयास जरूरी
कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए व्यक्तिगत स्तर पर प्रयास किए जाने की जरूरत है। सामाजिक चेतना के लिए कई संस्थाएं सालों से काम कर रही हैं, पर नतीजे सामने हैं। बजाय इन सारी बातों के, हर परिवार को सोचना होगा कि बेटी का क्या मोल है एक बेटी ही बहन है, पत्नी है, जननी है और एक मायने में सृष्टि की संचालक भी। हिमाचल सरकार की योजना काबिले तारीफ है। वहां पिछले दिनों 'बेटी अनमोल है' अभियान चलाया गया, जिसमें जागरूकता जत्थे के लोगों ने घर-घर जाकर बताया कि यदि कन्या शिशु दर गिरती रही, तो आने वाले बरसों में लडकियां ढूंढें नहीं मिलेंगी और समाज का संतुलन ही गडबडा जाएगा। हालांकि हिमाचल प्रदेश का लिंगानुपात अन्य राज्यों की तुलना में ठीक है, लेकिन फिर भी आंकडों के मुताबिक 2019 में इस दर से तीन लडकोंं पर एक लडकी और 2031 में सात लडकों पर एक लडकी रह जाएगी। ऎसी सार्थक पहल को सभी राज्यों में अमल किया जाना चाहिए। सरकार और कानून को सबसे ज्यादा जोर तो इस बात पर देना चाहिए कि किसी तरह से महिलाओं की आबादी बनी रहे, नहीं तो अनर्थ होने में देर नहीं लगेगी।
शर्मसार करते आंकडे
देश में हर 29वीं लडकी जन्म नहीं ले पाती है, वहीं पंजाब में हर पांचवी लडकी का कोख में कत्ल हो जाता है।
देश में हर 1000 पर 14 लडकियां कम हो रही हैं, वहीं पंजाब में हर एक हजार पर 211 लडकियां कम हो रही हैं।
इंस्टीट्यूट ऑफ डवलप मेंट एंड कम्युनिकेशन (आईडीसी) के सर्वे से इस बात का खुलासा हुआ है कि कन्या भ्रूण हत्या में पढे-लिखे लोगों की संख्या ज्यादा है। संस्था के मुताबिक 2002 में लिंग निर्धारण टेस्ट करवाने वालों में मैट्रिक से कम पढे-लिखे लोग 40 फीसदी थे, जबकि 2006 में यह घट कर 31.8 फीसदी रह गई। इसी तरह दसवीं से स्नातक के बीच शिक्षित 39 फीसदी लोगों ने जहां 2002 में लिंग निर्धारण टेस्ट करवाया था, वहीं 2006 में यह गिनती 32.9 फीसदी रह गई। इसके विपरीत 2002 में स्नातक या इससे अधिक पढे-लिखे लोग 45 फीसदी थे, जो 2006 में बढकर 49.6 फीसदी तक पहुंच गए।
2001 की जनगणना के मुताबिक देश में 1000 लडकों पर 927 लडकियां हैं।
देश में हर 1000 पर 14 लडकियां कम हो रही हैं, वहीं पंजाब में हर एक हजार पर 211 लडकियां कम हो रही हैं।
जवाब देंहटाएंबेटा - बेटा सब करे , बेटी करे ना कोए !
जवाब देंहटाएंअगर बेटी ना होए ,तो बेटा कहा से होए !!
मैं हूं एक लड़की/
जवाब देंहटाएंमैं भी इक इंसान/
मुझे जीने का अधिकार दो/
मुझे बेटे की तरह ह्रश्वयार दो/
मुझे पढ़ने का अधिकार दो/
... जिस देवी-दुर्गालक्ष्मी को पूजते हो/
उसका करते हो अपमान/
लड़की को लक्ष्मी कहते हो/
तो फिर क्यों लक्ष्मी को बोझ समझते हो?