मेरूदंडासन
मेरूदंडासन में दोनों पैर फैलाकर मेरूदंड को सीधा रखते हुए दोनों हाथों का जमीन पर दबाव डालते हुए सीधे बैठें। दीर्घ श्वास लेते हुए मूलबंध लगाते हुए घुटने की टोपी को ऊपर खींचें और श्वास छोडते हुए आगे छोडें। यह क्रिया 10 बार दोहराएं।
मेरूदंडासन
मेरूदंडासन में दोनों पैर फैलाकर मेरूदंड को सीधा रखते हुए दोनों हाथों का जमीन पर दबाव डालते हुए सीधे बैठें। दीर्घ श्वास लेते हुए मूलबंध लगाते हुए घुटने की टोपी को ऊपर खींचें और श्वास छोडते हुए आगे छोडें। यह क्रिया 10 बार दोहराएं।
पवनमुक्तासन
दोनों पैर मिलाकर सीधे लेट जाएं। बाएं पैर को ऊपर उठाते हुए घुटनों को मोडें। हाथों से ग्रिप बनाते हुए घुटनों का दबाव पेट पर डालें। श्वास भरते हुए सिर को ऊपर उठाते हुए नासिका को घुटने से लगाएं। श्वास रोकें (यथाशक्ति)। धीरे-धीरे सांस छोडते हुए सिर को नीचे रखें, पैर को सीधा रखें। दूसरे पैर से इसी क्रिया को दोहराएं। फिर दोनों पैरों से क्रिया को दोहराएं।
आहार
गर्म पानी का सेवन लाभप्रद है।
अंकुरित मूंग-मेथी, सब्जियां और फल शामिल करें।
फ्लेक्सीड और लिंसिड ऑयल प्रतिदिन 1 बडा चम्मच इस्तेमाल करें।
भीगे हुए बादाम, अखरोट और काली द्राक्ष बहुत उपयोगी है।
गाजर, चुकंदर, लौकी जूस या पेठे का जूस लें।
नीबू, आंवला, संतरा उपयोगी है।
ऑस्टियो आर्थराइटिस
संधियों के मध्य स्थित सायनोवियल द्रव कम होने से हडि्डयां घिस जाती हैं, जिससे संधियों को हिलाने पर घर्षण सुनाई देता है।
रूमेटॉयड आर्थराइटिस
यह ज्यादातर महिलाओं को होता है। इसमें पूरे शरीर के जोड प्रभावित होते हैं। पहले उनमें सूजन और दर्द होता है।
गठिया
प्रोटीन के चयापचय में गडबडी के कारण यूरिक एसिड रक्त में बढ जाता है तथा संधियों में जमा होकर गठिया करता है। इसी प्रकार कैल्शियम के चयापचय में गडबडी होने से कैल्शियम ऑक्जलेट बनता है, जो संधियों में जमा होता है।
जुवेनाइल आर्थराइटिस
यह 10 से 15 वर्ष के बच्चों में होता है।
वायु मुद्रा
तर्जनी अंगुली को अंगूठे की जड में लगाकर उसे अंगूठे से दबाने पर यह मुद्रा बनती है।
लाभ: इस मुद्रा से सभी प्रकार के वायु रोग, गठिया, कंपन, रेंगने वाले दर्द में लाभ
होता है।
अपान मुद्रा
मध्यमा और अनामिका को एक साथ मोडकर अंगूठे से स्पर्श करने पर बनती है।
उदर की वायु कम होने से जोडों के दर्द में लाभ होता है।
लिंग मुद्रा
दोनों हाथों की अंगुलियों को फंसाकर बाएं हाथ के अंगूठे को सीधा रखने पर बनती है।
संधियों पर दबाव बनने से इनमें रक्त-संचालन बढता है। इसके साथ ही नजला, जुकाम में भी लाभकारी है।
योगासन से उपचार
मणिबंध और करपृष्ठ शक्ति विकासक क्रियाएं : दोनों पैर मिलाकर खडे रहते हुए दोनों हाथों के अंगूठे मुटि्ठयों के भीतर रखते हुए हाथों को वक्षस्थल के सामने फैला दें। श्वास सामान्य रखते हुए मुटि्ठयों को ऊपर-नीचे करें। कोहनियों को मोडकर भी इस क्रिया को दोहराएं। मुट्ठी और कलाई को दस बार सीधे और दस बार विपरीत दिशा में घुमाएं। अंगुलियों को फैलाकर टाइपिंग की क्रिया जैसे करें। पैरों की संधियां घुमाने वाले आसन- पंजों की अंगुलियों को खोलना-बंद करना, टखना ऊपर-नीचे करना, टखने को घुमाना, घुटने को आंतरिक बल से खींचना और छोडना।
जोडों के दर्द के लिए: इसके अतिरिक्त मेरूदंड संचालन के आसन- भुजंगासन, शलभासन, चक्रासन, धनुरासन, गौमुखासन, भस्रिका, अनुलोम-विलोम, सूर्य भेदी प्राणायाम कर सकते हैं।
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