28 जनवरी 2010

चिता भस्म क्यों रमाते हैं शिव?


भगवान शिव अपने शरीर पर चिता की भस्म क्यों लगाते हैं। यह प्रश्न सभी के मन में होगा। शिव को प्रसन्न करने के लिए गाए गए श्री शिवमहिम्न स्तोत्र में भी उन्हें चिता की भस्म लेपने वाले कहा गया है। भस्म शरीर पर आवरण का काम करती है। इसके दार्शनिक अर्थ भी हैं और वैज्ञानिक महत्व भी है। शैव संप्रदाय के सन्यासियों में भस्म का विशेष महत्व है। श्चिताभस्मालेप: सृगपि नृकरोटिपरिकर: आदिशंकराचार्य ने शिवपञ्चाक्षर स्तोत्र में कहा है।
भस्मागराकाय महेश्वराय। पुराणों के अनुसार ब्रह्मा सृष्टिकर्ता, विष्णु पालनकर्ता तथा शिव संहारकर्ता हैं। मृत्यु जो शाश्वत सत्य है। उसके ही स्वामी शिव हैं इसलिए कहते भी है सत्यं शिवं सुंदरम्। अर्थात् सत्य शिव के समान सुंदर है। संसार में सत्य केवल मृत्यु ही है और उसके ईश्वर भगवान शिव हैं।
शिव का शरीर पर भस्म लपेटने का दार्शनिक अर्थ यही है कि यह शरीर जिस पर हम गर्व करते हैं, जिसकी सुरक्षा का इतना इंतजाम करते हैं। इस भस्म के समान हो जाएगा। शरीर क्षणभंगुर है और आत्मा अनंत। शरीर की गति प्राण रहने तक ही है। इसके बाद यह श्री हीन, कांतिहीन हो जाता है। कई सन्यासी तथा नागा साधु पूरे शरीर पर भस्म लगाते हैं।
यह भस्म उनके शरीर की कीटाणुओं से तो रक्षा करता ही है तथा सब रोम कुपों को ढंककर ठंड और गर्मी से भी राहत दिलाती है। रोम कूपों के ढंक जाने से शरीर की गर्मी बाहर नहीं निकल पाती इससे शीत का अहसास नहीं होता और गर्मी में शरीर की नमी बाहर नहीं होती। इससे गर्मी से रक्षा होती है। परजीवी (मच्छर, खटमल आदि) जीव भी भस्म रमे शरीर से दूर रहते हैं।