पतझड़ में पेड़ों से पुराने पत्तों का गिरना और इसके बाद नए पत्तों का आना बसंत के आगमन का सूचक है। बसंत जीवन में सकारात्मक भाव, ऊर्जा, आशा और विश्वास जगाता है। यह भाव बनाए रखने के लिए ज्ञान की आवश्यकता होती है। यही कारण है कि ज्ञान और विद्या की देवी की पूजा के साथ बसंत ऋतु का स्वागत किया जाता है। माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी बसंत पंचमी के रूप में मनाई जाती है। 20 जनवरी को मनाया जाने वाला यह पर्व जीवन में उत्सव का प्रतीक है। यह बसंत ऋतु के आगमन का प्रथम दिन माना जाता है। यह दिन सरस्वती की जयंती के रूप में मनाया जाता है। इसे श्री पंचमी भी कहते हैं। इस दिन ज्ञान की प्राप्ति के लिए देवी सरस्वती की पूजा की परंपरा है।
इस दिन माता सरस्वती, भगवान कृष्ण और कामदेव व रति की पूजा की परंपरा है। पंचमी ज्ञान और भोग दोनों का पर्व है। जीवन में भोग हो लेकिन विवेकपूर्ण हो, इसलिए सरस्वती आवश्यक है। जीवन में सारे कर्म ज्ञान और विवेक के जरिए हों, ऐसा होता है तो जीवन में बसंत आता है जो नई आशाओं, सफलताओं का प्रतीक है।
इस दिन विद्या की देवी सरस्वती के जन्म हुआ था। धार्मिक मान्यता है कि बसंत पंचमी के दिन ही ब्रrा के मानस से सरस्वती पैदा हुई थी। माता सरस्वती को बुद्धि, ज्ञान, संगीत और कला की देवी माना जाता है। पुरातन काल में भी ऋषि-मुनियों के आश्रम एवं गुरुकुल में बालकों को विद्या प्राप्ति के लिए प्रवेश कराया जाता था। यह सिखाती है बसंत पंचमी बसंत पंचमी को सरस्वती मां की पूजा की जाती है। सरस्वती ज्ञान और विद्या की देवी है। सरस्वती की आराधना से विद्या आती है, विद्या से विनम्रता, विनम्रता से पात्रता, पात्रता से धन और धन से सुख मिलता है। बसंत में वामदेव और शनि की पूजा की भी परंपरा है। सनातन धर्म में काम को पुरुषार्थ कहा गया है। कामदेव की पूजा कर इसी पुरुषार्थ की प्राप्ति की जाती है। पंचमी बसंत ऋतु के आगमन का प्रथम दिन होता है। कृष्ण ने गीता में स्वयं को ऋतुओं में बसंत कहा है। जिसका अर्थ है बसंत की तरह उल्लास से भरना । बसंत ऋतु फूलों का मौसम है, फूलों की तरह मुस्कुराहट फैलाएं। बसंत श्रृंगार की ऋतु है। जो व्यक्ति को व्यवस्थित रखने और सजे-धजे रहने की सीख देती है। बसंत का रंग बासंती होता है। जो त्याग का, विजय का रंग है, अपने विकारों का त्याग करें एवं कमजोरियों पर विजय पाएं। उल्लास से भरे हुए रहें। वसंत में सूर्य उत्तरायण होता है। जो संदेश देता है कि सूर्य की भांति हम भी प्रखर और गंभीर बनें।
प्राकृतिक दृष्टि से बसंत को ऋतुओं का राजा कहा गया है। क्योंकि बसंत एकमात्र ऐसी ऋतु है जिसमें उर्वरा शक्ति यानि उत्पादन क्षमता अन्य ऋतु की अपेक्षा बढ़ जाती है। वृक्षों में नए पत्ते आते हैं, फसल पकती है और सृजन की क्षमता बढ़ जाती है। मौसम न ज्यादा ठंडा न ही ज्यादा गरम होता है, जो कार्यक्षमता बढ़ाता है। बसंत पंचमी के साथ ही शीत ऋतु की विदाई होती है । इसके बाद गर्मी शुरू होती है। इसलिए कहा गया है बसंत में गर्म वस्तुओं को सेवन नहीं करना चाहिए । पंचमी को रक्त विकारों से बचाव के लिए आम के बोर भी खाए जाते हैं।
28 जनवरी 2010
जीवन का रंग हो जाए बसंती
Posted by Udit bhargava at 1/28/2010 09:52:00 pm
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