ले ही आपके पास कितने ही डिग्रीयां एवं योग्यताएं हों यदि आपमें आत्मविश्वास नहीं है तो सब बेकार है। आत्मविश्वास आपका जीवन ही नहीं बनाता बल्कि आपके व्यक्तित्व को दुगना बल भी देता है। कुछ लोगों में आत्मविश्वास की कमी बचपन से ही होती है, तो कुछ में समय के बदलते फेर तथा जिन्दगी के खट्टे अनुभवों के कारण हो जाती है। इसलिए आत्मविश्वास जगाने के लिये जरूरी है कुछ बातें।
सकारात्मक सोच और आशावादी दृष्टिकोण
आत्मविश्वास जगाने के लिये सबसे जरूरी है सकारात्मक सोच एवं आशावादी दृष्टिकोण जो आपको आपके आस-पास के वातावरण से मिलता है इसलिए हमेशा ऐसे लोगों के संपर्क में रहें जिनके साथ कुछ सीखने को मिलता हो। अच्छी पुस्तकें पढ़ें तथा उन पुस्तकों की महत्वपूर्ण सीख, उर्जावान एवं प्रेरणादायक पंक्तियों आदि को काटकर या लिखकर, ऐसी जगह लगाएं जहाँ बार-बार आपकी नजर जाए। साथ ही अच्छा एवं सकारात्मक संगीत सुने।
खुद में आत्मविश्वास जगाने के लिये जरूरी है हमारी सोच सही हो और सही सोच वही होती है जो सकारात्मक होती है। भले ही हम कैसे भी हालातों में हो, लेकिन हमें घबराना नहीं चाहिए, एक उम्मीद, एक भरोसा रखना चाहिए। इस बात की आशा रखनी चाहिय की आज नहीं तो कल सब ठीक हो ही जाएगा। क्योंकि अगर हम ऐसा नहीं सोचेंगे तो सदा भयभीत रहेंगे। हममें आगे चलने या बढ़ने की हिम्मत नहीं रहेगी, जिससे हमारा मनोबल घटेगा, विश्वास कमजोर होगा और हमारे आत्मविश्वास में कमी आएगी।
बोलने की कला सीखें
बोली का हमारी व्यक्तित्व पर बड़ा प्रभाव पड़ता है। किसी को आकर्षित करने के लिये हमारी बातें, बातों का ढंग बहुत मायने रखता है। इससे न केवल हम लोगों का दिल जीतते हैं बल्कि अपने भीतर एक आत्मविश्वास को भी पातें हैं। यदि भीड़ से भय लगता है तो शीशे के सामने खुद से बातें करें, झिझक खोलें आत्मविश्वास जगाएं। सही समय पर हाँ-ना कहना सीखें ताकि बाद में पछताना न पड़े। बोल-चाल एवं वातावरण में कमी एक कारण है जिसकी वजह से हम बोलने तथा औरों के सामने अपने विचार या भाव व्यक्त करने से शर्माते या घबराते हैं, जिसकी वजह से आत्मविश्वास का स्तर और नीचा होने लगता है। इसके लिये आपको चाहिए की आप जिस विषय पर बोलना चाहते हैं उस विषय से सम्बंधित जानकारी एवं सामग्री का पूरा ज्ञान रखें। खूब पढ़ें, अपना सामान्य ज्ञान बढाएं। भाषा, व्याकरण एवं बोलने के ढंग पर गौर करें तथा दूसरों को सुनें, एक अच्छा श्रोता बनें फिर स्वयं बोलने की कोशिश करें और व्यवहार में अपनाएं।
बन-ठन के रहें
हमारा आत्मविश्वास हमारे ओढने-पहनने, सजने-संवारने से भी बनता है। यदि हम इच्छानुसार स्वयं को अच्छे ढंग से रखते हैं तो खुद-ब-खुद अंदर से एक ताजगी महसूस करते हैं। हमें लोगों के सामने से न केवल गुजरने का मन करता है बल्कि उनके समक्ष खड़े होने का हौंसला भी मिलता है। हम खुद को खुद से बेहतर और औरों से अलग पाते हैं। खुद को अच्छा प्रस्तुत कर सकते हैं।
भले ही हमारा रंग-रूप, कद-काठी हमारे हाथ में नहीं हैं परन्तु शरीर का रख-रखाव एवं-श्रृंगार तो हमारे हाथ में हैं जिससे हम अपने शरीर एवं चेहरे को सुन्दर एवं आकर्षक बना सकते हैं तथा सौंदर्य सम्बंधित आत्मग्लानि से उबार सकते हैं। इसलिए समय के साथ-साथ बदलते फैशन तथा ट्रेंड के अनुरूप स्वयं को ढालने का प्रयत्न करें। यदि कोई शारीरिक अक्षमता है तो कास्मेटिक सर्जरी का सहारा लें। शारीरिक स्वच्छता का ख़याल रखें। सुगन्धित परफ्यूम आदि का प्रयोग करें। भले ही आपके पास कुछ जोड़ी कपड़ें ही क्यों न हों पर जब भी पहने तो ध्यान रखें की वह धुले एवं स्त्री किये हुए हों। हो सके तो ब्रांड वाली वस्तुओं का उपयोग करें इससे आप अपने भीतर आत्मविश्वास को पनपता हुआ पाएंगे तथा स्वयं को भीड़ से जोड़ सकेंगे।
अपना हुनर पहचानें
कोई भी मनुष्य परिपूर्ण नहीं होता, इसलिए अपने भीतर छुपी अच्छाइयों को उजागर करें। हाँ अपनी कमियों एवं गलतियों में सुधार व संशोधन अवश्य करें लेकिन उन कमियों व गलतियों को अपने जीवन का केंद्र बिंदु न बनने दें।
हर इंसान में कोई न कोई हुनर अवश्य होता है, यदि इंसान अपने उस छिपे हुए को खोज ले तो उसे जीने में आनंद आने लगता है। उस हुनर के जरिये वह लोगों के दिलों एवं समाज में जगह बना सकता है, इसलिए स्वयं के गुणों को खोजें। जो आपके पास है, जो आपको मिला हुआ है यदि आप इस पर नजर रखेंगे तो ही संतुष्ट को पायेंगे और यही संतुष्टि आपके आत्मविश्वास में कारगर सिद्ध होगी।
अच्छे दिन व उपलब्धियों को याद करें
समय कभी एक-सा नहीं रहता। याद करें उन दिनों को जब आप बहुत खुश और संतुष्ट थे। सोचिये क्या थे खुशी के कारण?, कैसी और क्यों थी आपकी मनःस्थिति और सोच? क्या नकारात्मक था आपमें? कैसे प्राप्त किया था मैंने उस स्थिति को? आदि। वही शक्ति, वही विश्वास को फिर पैदा करें। यह भी सोचें जब अच्छे दिन हमेशा नहीं रहे तो बुरे दिन भी हमेशा नहीं रहेंगे।
बीते समय में यदि आपकी कुछ उपलब्धियां है तो उन पर नजर जरूर डालें समय-समय पर उन पुरस्कारों, इनामों आदि का ध्यान करें। सकारात्मक ऊर्जा को बनाएं एवं खोई हुई ऊर्जा तथा आत्मविश्वास को पुनः जाग्रत करें।
अच्छी संगत अपनाएं
कहते हैं जैसी सांगत वैसी रंगत। हम जैसे लोगों के संपर्क में आते हैं वैसे ही लोगों की तरह हो जाते हैं। यदि हमारे आसपास सकारात्मक, उर्जावान, आत्मविश्वासी व्यक्ति होंगे तो हम भी उनके जैसा बनने का प्रयास करें। क्योंकि सामने वाले से हमें सदा प्रेरणा मिलती रहेगी। हमारे अंदर उत्साह जगाता रहेगा इसलिए वरिष्ठ एवं अनुभवी लोगों के साथ बैठें, उनके विचारों को सुनें तथा उन्हें अपने जीवन में उतारने का प्रयत्न करें।
किस तरह उन्होंने जीवन में संघर्ष किया व मुसीबतों का सामना किया, उन बातों से सबक लें। जिस तरह उनके बुरे दिन हमेशा नहीं रहे, उसी तरह आपके भी बुरे दिन हमेशा नहीं रहेंगे इस बात को समझ लें और अपनी नकारात्मक सोच को सकारात्मक बनाकर, आत्मविश्वास द्वारा भविष्य को और उज्जवल बनाएं।
किस तरह उन्होंने जीवन में संघर्ष किया व मुसीबतों का सामना किया, उन बातों से सबक लें। जिस तरह उनके बुरे दिन हमेशा नहीं रहे, उसी तरह आपके भी बुरे दिन हमेशा नहीं रहेंगे इस बात को समझ लें और अपनी नकारात्मक सोच को सकारात्मक बनाकर, आत्मविश्वास द्वारा भविष्य को और उज्जवल बनाएं।
बाँडी लैंग्वेज सुधारें
आत्मिश्वास को जगाने में हमारी बाँडी लैंग्वेज का भी बहुत योगदान होता है। हम कैसे उठते-बैठते हैं। चलते-फिरते हैं, खड़े होते हैं आदि सब हमारे अंदर आत्मविश्वास को दर्शाती हैं इसलिए जब भी बैठें सीधे बैठें, कन्धों को नीचा या आगे की ओर झुकाकर नहीं बैठें। सीना सीधा रखें, पूरी कुर्सी पर बैठें, गर्दन को सीधा रखें, नजर चुराकर नहीं नजर मिलाकर बात करें। सीधा, तानकर, तेज गति से चलें।
चलने में या भीड़ का सामना करने में आपको घबराहट होती है तो अपने दोनों हाथों को खाली न रखें, पैन, डायरी, रजिस्टर, रूमाल या मोबाइल आदि को हाथ में रखें फिर देखें आपके अंदर स्वतः ही विश्वास पैदा होने लगेगा।
कार्य को पूरा करें
पूरा कार्य हमें आत्मविश्वास देता है तथा आधे-अधूरे कार्य हमें निराशा देते हैं और यदि ऐसा लगातार होता रहता है की हमारे सारे या अधिकतर कार्य अधूरे रह जाते हैं तो हमारी यह सोच बन जाती है की 'मुझसे कोई काम पूरा नहीं होता, मैं कुछ नहीं कर सकता।' एक बार यदि हमारे खुद के प्रति यह धारणा बन जाती है तो हमारा स्वयं के प्रति विश्वास भी लडखडाने लगता है। हम स्वयं को कमजोर और हारा हुआ समझते हैं। आगे के लिये भी हमारी सोच नकारात्मक होने लगती है और हमारा पूरा नजरिया एवं व्यक्तित्व नकारात्मक होने लगता है। इसलिए किसी भी कार्य को शुरू करने से पहले उसको अच्छी तरह से समझ लें। अपनी क्षमताओं को ठीक से तौल लें। फिर किसी कार्य को हाथ में लें। और यदि कार्य को किसी परिस्थितिवश, चाहे अनचाहे जिम्मेदारी में लेना पड गया है तो उसे बोझ या सिरदर्दी न समझें। सोचें, जब यह कार्य आपको ही करना हो तो जी क्यों जलाना? खुशी खुशी स्वीकार करें।
कुछ अलग करके देखें
एक तरह का कार्य न केवल हमें बोरियत देता है बल्कि हमारी काबीलियत एवं क्षमताओं को भी कम करता है, जिससे हमारा आत्मविश्वास कम होने लगता है। इसलिए कुछ नया, कुछ अलग करने की कोशिश जरूर करें जिसको सोचकर ही आप में जोश और स्फूर्ति आ जाए, आपके मष्तिस्क में विचार आने लगे। चुनौतियां आपको कुछ अलग करने के लिये उकसाती रहें। ऐसा करके आपको अपने भीतर छिपे हुनर एवं क्षमताओं का पता चलेगा। आपको एहसास होगा की आपकी शक्ति आपके विचार, आपकी क्षमताएं फैलने व मजबूत होने लगी हैं। आपके अनुभव आपको और भी दक्ष व कुशल बना रहे हैं, जिससे आत्मविश्वास का स्तर बढ़ने लगा है।
अपनी क्षमताओं को बढाएं
जीवन विस्तार और फैलाव का नाम है, इसलिए जीवन को एक यात्रा कहते हैं क्योंकि इसी यात्रा में हम न केवल दूरी तय करते हैं बल्कि हमारा विकास भी होता है, इसलिए जो भी हमें जन्म के साथ मिला उसको बढाना चाहिए, उसमें वृद्धि होनी चाहिए, तभी हममे आत्मविश्वास जागेगा।
इंसान को चाहिए कि अपनी क्षमताएँ बढाए फिर वह धैर्य हो या किसी को माफ़ करना, सुनना हो या सहना, सबको विस्तार दें अपनी सोच को सीमित न रखें, परम्पराओं और अंधविश्वास में बंधकर न रहें।
खुद का सम्मान करें
अधिकतर लोग स्वयं को कम ही आंकते हैं, जितना हमें सामने वाला अच्छा व प्रिय लगता है उतना हम खुद को पसंद नहीं कर पाते। हम दूसरे को तो प्यार करते हैं पर स्वयं को नकार देते हैं। हमें लगता है खुद को तवज्जो देना, खुद की तारीफ़ करना या खुद के बारे में सोचना या प्राथमिकता देना गलत है। ऐसा करना अहंकार के लक्षण हैं इसलिए जितना सम्मान हम सामने वाले को या उसके विचारों को देते हैं, उतना खुद को नहीं देते। सामने वाले को सम्मान देना गलत नहीं लेकिन स्वयं को नजरअंदाज करना, स्वयं के प्रति हीनता या ग्लानी का भाव रखना गलत है। ऐसी सोच हमें हमारे प्रति सही नहीं सोचने देती। हम खुद को प्यार नहीं कर पाते जिसके कारण हम चिडचिड़े व अतृप्त रहने लगते हैं, यही स्थिति व सोच हमारे तनाव के स्तर को बड़ा कर आत्मविश्वास के स्तर को घटा देती है। यह स्तर इतना घाट जाता है कि हम स्वयं को ठीक से प्रस्तुत भी नहीं कर पाते। इसलिए स्वयं की भी क़द्र करें, खुद को भी प्यार करें, अपने जीवन, भावनाओं एवं जरूरतों का भी सम्मान करें।
भय को भगाएं
जहाँ भय है वहां आत्मविश्वास नहीं हो सकता। भय के चलते ही हमारा आत्मविश्वास लडखडाने लगता है और हमारा पूरा व्यक्तित्व प्रभावित होता है। इसलिए कलम और कागज़ लें और उन पर एक-एक करके अपने भय लिखें, जैसे- मंच पर बोले से भय, नए लोगों के सामने जाने से भय, लोग क्या कहेंगे इस बात का भय, आदि। उस भय पर विचार करें और किसी एक पर विजय पाना चालू करें। पूरी योजना सहित प्रयास करें, फिर दूसरे को चुने। ऐसे एक-एक करके अपने मन से भय को निकालें, फिर वह भय स्कूटर चलाने या अँग्रेजी बोलने का ही क्यों न हो। आप पायेंगे कि आपका भय जाने लगा है और आत्मविश्वास आने लगा है। साथ ही जिन चीजों से आपको भय लगता है उससे बचने के बजाय उन्हें बार-बार करें। ऐसा करके भय भागेगा और आत्मविश्वास आयेगा।
किसी एक कार्य में प्रवीण बनें
सर्वगुण संपन्न कोई नहीं होता। इन्सान चाहे भी तो न तो सारे काम कर सकता है न ही सभी का दिल जीत सकता है। आत्मविश्वास के लिये यह जरूरी नहीं कि आप हर चीज या क्षेत्र में उत्तीर्ण होंगे, तभी वह जागेगा। हम अपनी ऐसी पहचान बनाने में जुटेंगे तो एक भी पहचान नहीं बन पायेगी। नाम बनाने की बजाय बिगड़ और जायेगा।
इसलिए किसी एक कार्य को चुनें। उसी में अपनी कुशलता या दक्षता दिखलाएं। उसे ही अपने नाम एवं आत्मविश्वास की सीढी बनाएं। कोई भी एक कार्य ही हमारे अंदर आत्मविश्वास जगाने और बढाने के लिये काफी है।
लक्ष्य निर्धारित करें
बिना लक्ष्य के जीना यानी वक्त, ऊर्जा और धन को व्यर्थ गंवाना है। इससे न केवल इन तीनों का नुक्सान होता है बल्कि हम स्वयं को औरों से पीछे और हारे हुए पाते हैं। बिना उद्देश के, नियम के जिन्दगी खाली एवं बोझिल लगने लगती है जो आत्मविश्वास को खोखला कर देती है। इसलिए अपनी दिनचर्या को नियमबद्ध करें। अधिक से अधिक समय क सदुपयोग करें। कुछ भी करें तुरंत उसे करने के पीछे अपने लक्ष्य व उद्देश को जरूर निर्धारित करें। जिन विषयों में आपकी रुचि हो उनसे सम्बंधित अनुभवी लोगों से बातचीत करें और अपने जानकारी के दायरे को विस्तार प्रदान करें। हो सके तो अपना कोई रोल माँडल जरूर चुनें व बनाएं, जो आपको समय-समय पर ऊर्जावान बनाने के साथ-साथ मार्गदर्शन भी प्रदान करें।
मनोरंजन को जीवन में शामिल करें
जीवन में कुछ बनने के लिये अपना लक्ष्य जरूर बनाएं परन्तु उस लक्ष्य को पाने के लिये स्वयं को जरूरत से ज्यादा भी न उलझाएँ। ऐसा न हो कि आपका सामजिक व निजी जीवन से तारतम्य टूट जाए, जो कि बेहत जरूरी है। लक्ष्य प्राप्ति के साथ-साथ अपना कुछ समय मनोरंजन के लिये भी निकालें। मन एवं विचारों को अपने भीतर कैद न होने दें बल्कि उसका उपयोग करें। जीवन को जरूरत से ज्यादा संजीदगी से भी न लें। लोगों से मिलें, घूमने जाएं, मन की रूचियों को पूरा करें, अपने अंदर का बच्चा तलाशें, उसके जैसे हो जाएं। जीवन को तनाव के साथ नहीं मस्ती के साथ जीयें। जरूरत से जयादा औपचारिकताओं, नियमों, सिद्धान्तों आदि में न बंधें। खुद को स्वतंत्र रखें। जीवन का आनंद लें, इस बात से स्वयं को आश्वत रखें कि आप कुछ अपने लिये भी करते हैं। आपके जीने का भी कोई मतलब है। जब आपको लगेगा कि आपका जीवन आपका है तो आपको संतुष्टि होगी, जिससे भीतर आत्मविश्वास का जन्म होगा।
ध्यान और योग का सहारा लें
आत्मविश्वास को जगाने, बढ़ने व बनाए रखने में ध्यान और योग का बड़ा हाथ है। इससे न केवल आत्मविश्वास का बल्कि पूरे व्यक्तित्व का विकास होता है। इंसान इन्द्रियों और मन से मिलकर बना है यदि यह दोनों ही बस में हो जाएं तो आत्मविश्वास क्या आत्मरूपांतरण तक हो सकता है। ध्यान और योग से मन शांत और एकाग्रचित होता है। जीवन में संतुष्टि का पर्दापर्ण होता है। तब हमें न केवल अपनी कमियाँ नजर आती हैं, बल्कि इन कमियों को दूर करने की शक्तियां भी मिलने लगती है। भय साहस में बदलने लगता है, भटकाव स्थिरता में बदलने लगता है। ध्यान एवं योग को दिनचर्या में नियमित शामिल करें और आत्मविश्वास को पैदा करें।
बहुत ही श्रेष्ठ आलेख है लेकिन कुछ लम्बा हो गया है यदि इसे दो बार में दिया जाता तो पठनीय बना रहता।
जवाब देंहटाएंसही कहा.
जवाब देंहटाएंक्या आप ब्लॉग संकलक हमारीवाणी.कॉम के सदस्य हैं?
यह बात तो सही हॆ परन्तु इसमे होता कि हम लोगॊ से किस ढंग से बात करे तो ओर भी अच्छा होता।
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