रघुनाथ मंदिर में श्रद्धालुओं को प्रवचन सुनाते हुए पंडित माधवानंद ने कहा - कि वाणी के सही इस्तेमाल करने पर ही व्यक्ति के व्यक्तित्व की सही पहचान होती है। इसी के माध्यम से कोई संत-महात्मा बन जाता है और कोई डाकू-लुटेरा।
उन्होंने कहा कि मनुष्य को मन, वचन व कर्म से नि:स्वार्थ भाव से सेवा करनी चाहिए। मन मे किसी के प्रति द्वेष भाव नहीं रखना चाहिए तथा अपनी वाणी से किसी को कठोर शब्द नहीं कहने चाहिए। उन्होंने कहा कि मनुष्य के बोलचाल के ढंग से ही उसके व्यक्तित्व का निर्माण भी होता है। इसी के माध्यम से कोई संत-महात्मा बन जाता है। यह मनुष्य के ऊपर निर्भर करता है कि वह अपने भाषा और शब्दों का कैसे उपयोग करता है।
उन्होंने कहा कि भाई चारा व मैत्री संबंधों को लोग भूलते जा रहे है। इसलिए आज कोई भी छोटा हो या बडा किसी अनजान या परिचित व्यक्ति की भावनाओं को ठेस पहुंचाने से नहीं चुकता। अब जान बूझ कर ऐसे कटू शब्दों का व्यवहार कर बैठता है जिससे किसी अन्य का हित व भावनाएं आहत हो जाती है। हमे ऐसा नहीं करना चाहिए। मैत्री व बंधुंत्व की भावना का आदर करते हुए दूसरों के प्रति अपना व्यवहार मृदुल बनाए रखना चाहिए। प्राय: देखा जाता है कि लोग अपनी शक्ति का उपयोग एक-दूसरे को नीचा दिखाने के लिए करते है जबकि उन्हें अपनी शक्ति का उपयोग आपस में लडने की बजाय अन्याय व दूसरी बुराईयों से लडने के लिए करना चाहिए। मनुष्य में भक्ति भावना व संस्कार ग्रहण करने की प्रवृति गायब होती जा रही है, जिसके चलते हमारे समाज में निरन्तर बुराइयों को अपनाने की प्रवृति को बढावा मिल रहा है। बुराइयों पर विजय प्राप्त करने पर ही मनुष्य का सर्वागीण विकास संभव है।
उन्होंने कहा कि मानव सेवा ही सबसे बडा धर्म है इसलिए मनुष्य को अपनी शक्ति का उपयोग मानव सेवा करते हुए जीवन व्यतीत करना चाहिए। उन्होंने कहा कि जो व्यक्ति मानव सेवा में लीन रहते हैं वे मनुष्य सदैव बुराईयों से दूर रहते हैं। जिसके कारण उन्हें मानव सेवा करने पर अत्यन्त खुशी महसूस होती है। उन्होंने कर्म के संदर्भ में कहा कि मनुष्य द्वारा किया गया कर्म ही उसका भाग्य विधाता होता है अच्छे कर्मो से ही अच्छे भविष्य का निर्माण होता है।
30 अगस्त 2010
मानव सेवा ही सबसे बड़ा धर्म: माधवानंद ( Human Services as the largest religion : Maadhavanand )
Labels: प्रवचन
Posted by Udit bhargava at 8/30/2010 06:22:00 am
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