1950 में केरल के मलप्पुरम में नाल्पत परिवार में पैदा हुईं निरूपमा राव ने 1973 बीच की अखिल भारतीय सिविल सेवा परीक्षा में सर्वोच्च स्थान प्राप्त करने के बाद भारतीय विदेश सेवा में भी सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया। निरूपमा राव की माँ उस जमाने में, जब लड़कियों के लिये शिक्षा कठिन थी, विश्वविद्यालय की दहलीज लांघ चुकी थीं।
बढ़ते कदम
70 के दशक के मध्य तक विएना में भारतीय दूतावास से इन की यात्रा शुरू हुई। 1981-83 तक श्रीलंका में पहली बार वे भारतीय उच्चायुक्त की प्रथम सचिव बनीं। विदेश मंत्रालय में काफी समय तक रहते हुए उन्होंने भारतचीन के पारस्परिक संबंधों पर विशेषज्ञता हासिल की। इस के बाद 1988 में राजीव गांधी के साथ वे विशेष प्रतिनिधिमंडल के साथ चीन गईं। 1993 में वाशिंगटन और 1998 में मास्को में भारतीय दूतावास में काफी समय तक काम करने के बाद हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर इंटरनैशनल अफेयर्स ने उन्हें एशिया पेसिफिक सिक्योरिटी की फैलोशिप के लिये चुना। 1998 में पेरू में वे पहली बार राजदूत बना कर भेजी गईं। इस के बाद 2004 में वे श्रीलंका की उच्चायुक्त बनने के बाद 2006 में चीन में राजदूत बना कर भेजी गईं।
निरूपमा चूंकि अँग्रेजी साहित्य की स्नातक रही हैं, इसीलिये साहित्य के प्रति उन का लगाव हमेशा से रहा है। यही नहीं, शौकिया तौर पर वे कवयित्री भी हैं। 'रेन रेसिंग' उन की कविताओं का पहला संग्रह है।
2 बच्चों की माँ निरूपमा राव देश के लिये विदेशी मोर्चा और अपने परिवार के लिये घरेलू मोर्चा बखूबी संभाल रही हैं।
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