तनाव को दूर भगाने के लिए सबसे बढिया तरीका है दान देना।
आप भी सोचेंगे यह क्या बेहूदी बात हुई। दान देने से तनाव का क्या लेना देना? लेकिन लेना-देना है और बहुत गहरा लेना देना है। जिनके पास कुछ नहीं है क्या आपने कभी उतना तनावग्रस्त देखा है जितना उन्हें जिनके पास बहुत कुछ है। आप अध्ययन कर लीजिए जिसकी पाने की मानसिकता होती है वह हमेशा तनाव में रहता है। लेकिन जो कुछ पाना ही नहीं चाहता उसे कभी तनाव नहीं होता। कबीरदास कहते हैं-
चाह गयी चिंता मिटी मनुवा बेपरवाह
जिनको कछु न चाहिए, सोई शंहशाह।
बात बहुत साधारण है। पाने की मानसिकता हमारे दुख का कारण है। जो जितना पाना चाहता है वह उतना ही दुखी रहता है। फिर आप सोचेंगे कि पाना न हुआ तो जीवन कैसे चले? फिर हमारे होने का मतलब क्या है? यह बात सही है इच्छा का विस्तार होता है तो संसार बनता है। और जब संसार बनता है तो दुख औऱ तनाव तो आयेंगे ही।
फिर इससे बचने का रास्ता क्या है? तनाव से बचने का एक ही रास्ता है आप चुपचाप दान करना शुरू कर दें। जिंदगी पाने और देने के समन्वय से चलती है। केवल पाते गये तो बहुत संकट हो जाएगा। भरते भरते आदमी खुद एक भार हो जाता है। इसलिए भरने के साथ साथ खाली होने की प्रकृया भी चलनी चाहिए। जितना मिल रहा है उसका एक निश्चित हिस्सा हमारे हाथ से लोगों तक पहुंचना भी चाहिए। आज हो यह रहा है कि हमारी पाने की प्रवृत्ति तो बनी हुई है लेकिन देने की मंशा खत्म हो गयी है।
आप एक प्रयोग करिए। रोज कुछ दान करना शुरू करिए। अपनी कमाई का एक निश्चित हिस्सा। बस देना शुरू करिए। ज्यादा तर्क-वितर्क मत करिए। कुछ दिनों का प्रयोग मानकर इसे शुरू कर दीजिए। मान लीजिए कि यह आपकी साधना है। यही आपकी आराधना है। यही रामजी की पूजा है। एक सप्ताह ऐसा करके देखिए। आपको अपने व्यक्तित्व में क्रांतिकारी परिवर्तन नजर आयेगा। आप देखेंगे कि आपके दुख अपने आप कम होने लगे। आपको अब उतना तनाव भी नहीं रहता। अब आप अपनी समस्याओं को लेकर इतने परेशान भी नहीं रहते। मन में अंदर से एक आनंद प्रस्फुटित होना शुरू हो जाएगा।
ऐसा हो तो एक सप्ताह के प्रयोग के बाद इसे अपने जीवन का अनिवार्य हिस्सा बना लीजिए। यह मत सोचिए कि आप कितना कमाते हैं। 100 रूपया रोज कमानेवाला भी महादानी हो सकता है और 100 हजार रूपये रोज कमानेवाला भी महा कंजूस। सवाल पैसे का नहीं है। सवाल है आपकी मानसिकता का। आपको अपनी मानसिकता का इलाज करना है। बुद्धि को वह अभ्यास करवाना है जिसे वह भूल चुका है। और इसी कारण उस बुद्धि ने आपके लिए तनाव के हजार रास्ते बना रखे हैं। इसलिए आप कितना पैसा दान करते हैं यह महत्वपूर्ण नहीं है। आप दान करते हैं यह महत्वपूर्ण है और आपके अपने लिए जरूरी भी।
वैसे तो नियम है कि आप अपनी कमाई का 10 प्रतिशत दान दें लेकिन आपकी अपनी जरूरते शायद ज्यादा होंगी। इसलिए अपनी कमाई का एक प्रतिशत दान करना शुरू करिए। ध्यान रखिए यह नित्यप्रति होना चाहिए क्योंकि आप नित्यप्रति के हिसाब से ही कमाते हैं। अपनी कमाई का एक प्रतिशत समाज के कमजोर और निसहाय लोगों की मदद में खर्च करना शुरू करिए। कोई हल्ला नहीं। कोई प्रचार नहीं। क्योंकि यह काम आप अपने इलाज के लिए कर रहे हैं। क्या आप अपने इलाज का प्रोपोगंडा करते हैं क्या? आप खुद अनुभव करेंगे कि आप अंदर से कितने बड़े हो गये हैं। तनाव तो खोजे नहीं मिलेगा।
कहते हैं राजा रन्तिदेव के पास जब कुछ नहीं रह गया था तो उन्होंने शुद्ध हृदय से केवल जल का दान किया था। अन्यायपूर्वक प्राप्त हुए द्रव्य के द्वारा महान फल देने वाले ब़ड़े-ब़ड़े दान करने से धर्म को प्रसन्नता नहीं होती। धर्म देवता तो न्यायोपार्जित थो़ड़े से अन्न का श्रद्धापूर्वक दान करने से ही संतुष्ट होते हैं। राजा नृग ने विद्वानों (ब्राह्मणों) को हजारों गाएँ दान की थीं, किंतु एक ही गौ उन्होंने दूसरे को दान कर दी जिसे अन्यायतः प्राप्त द्रव्य दान करने के कारण उन्हें नरक में जाना प़ड़ा।
उशीनगर के राजा शिबि ने श्रद्धापूर्वक अपने शरीर का मांस देकर पुण्यात्माओं की गति प्राप्त की। न्यायपूर्वक एकत्रित किए हुए धन का दान करने से जो लाभ होता है वह बहुत-सी दक्षिणा वाले अनेक यज्ञ का अनुष्ठान करने से भी नहीं होता। यही कारण है कि संसार में अनेक लोग न्यायपूर्वक प्राप्त की हुई वस्तु प्राप्त होने के बाद भी प्रसन्नता से दान कर अमर हो गए हैं।
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