सूत जी बोले, द्घापर युग के अन्त समय में पृथ्वी का भार बहुत बढ़ा गया । नाना प्रकार के अत्याचारोसे पीड़ित पृथ्वी तब दुखी होकर ब्रहृ की शरण में गयी । ब्रहृ से उसने अपने सम्पूर्ण दुखो का रो-रोकर निवेदन किया । तब ब्रहृजी उसे अपने साथ लेकर भगवान विष्णु शयन- काल में थे । उनको शयन करते हुए सतयुग और त्रेतायुग बीत गये थे । भगवान विष्णु के पास जाते समय ब्रह के पास देवादि एवं समस्त मुनिगण भी संग हो गये । सबने वहां जाकर सामूहिक प्रार्थना की । भगवान विष्णु की निंद्रा टूटी । उन्होंने सबके आने का कारण पूछा । तब ब्रहृ ने उनको पृथ्वी का सारा दुख बतलाया । इस पर विष्णु भगवान सबके साथ सुमेरु प्रवत पर आये । तब वहाँ पर दिव्य-सभा हुई । इस सभा में पृत्वी ने अपने सारे दुखों का वर्णन किया ।
परमपिता ब्रहृ ने तब भगान विष्णु से पृथ्वी के दुख हरण करने की प्रार्थना की । उनसे निवेदन किया कि पृथ्वी पर आकर अवतार ग्रहण करें ।
ब्रहृ की इस प्रार्थना पर विष्णु बोले, आज से काफी समय पहले मैंने पृथ्वी को भयमुक्त करने का निश्चय कर लिया है । मैंने समुद्र को राजा शान्तनु के रुप में पृथ्वी पर भेज दिया है । मैं पहले ही जानता था कि पृथ्वी का भार बढ़ेगा । इस कारण पूर्व में ही मैंने शान्तुन के वंश की उत्पत्ति कर दी है । गंगा के पुत्र भीष्म भी वसु ही है । वह मेरी आज्ञा से ही गये है । महाराज शान्तुन की द्घितीय पत्नी से विचित्रवीर्य नामक पुत्र उत्पन्न हुआ है । इस समय उनके दोनो पुत्र धृतराष्टर् और पांडु भूमि पर है । पांडु की दो पत्नियां है । कुन्ती और माद्री । धृतराष्ट्र की पत्नी है गांधारी । एतएव देवतागण शान्तुवंश में जन्म लें । तत्पश्चात् मैं भी जन्म लूंगा । भगवान विष्णु के इस कथन पर समस्त देवतागणों, वसुगणों, आदित्यों, अश्विनीकुमारों ने पृथ्वी पर अवतार ग्रहण किये । सबने भरतवंश में जन्म लिया । सूतजी बोवे, मुनिवरों । इस प्रकार धर्म ने युधिष्ठिर, इन्द्र ने अर्जुन, वायु ने भीम, दोनों अश्विनी कुमारों ने नकुल, सहदेव, सूर्य ने कर्ण, वृहस्पति ने द्रोणाचार्य, वसुओं ने भीष्म, यमराज ने विदुर, कलि ने दुर्योधन, चन्द्रमा ने अभिमन्यु, भूरिश्रवा ने शुक्राचार्य, वरुण ने श्रृतायुध, शंकर ने अश्वत्थामा, कणिक ने मित्र, कुबेर ने धृतराष्ट्र और यक्षों ने गंधर्वों, सर्पों ने देवक, अश्वसेन, दुःशासन आदि के रुप में पृथ्वी पर अवतार ग्रहण किये । इस प्रकार समस्त देवगण अवतार लेकर पृथ्वी पर आ गये । नारद जी को जब यह पता चला तो वह विष्णु जी के पास आये और कुपति होकर बोले, जब तक नर-नारायण जन्म न लेंगे, तब तक पृत्वी का भार कैसे हल्का होगा । नर तो अवतार लेकर पृथ्वी पर चले गये । नारायण रुपी भगवान विष्णु आप यहीं विराजमान है । आखिर आप क्या कर रहे है ।
नारद की इस बात पर भगवान विष्णु बोले, हे नारद, इस समय में मैं विचार कर रहा हूँ कि कहां और किस वंश में जन्म लूँ । अभी तक मैं इसका निर्णय नहीं कर सका हूँ । मुनिवरों । भगवान विष्णु के इस कथन पर नारदजी ने उनको कश्यप का वर्णन करते हुए कहा कि वह महात्मा वरुम से गायें मांगकर ले गये, बाद में वापस नहीं की । इस पर वरुण मेरे पास आया । तब मैनें कश्यप को ग्वाला हो जाने का शाप दे दिया । इस समय कश्यप वासुदेव के रुप मे मेराश्राप भोग रहे है । उनकी दोनों पत्नियां देवकी और रोहिणी के रुप में उनके साथ है । वह पापी कंस के अधीन रह कर बड़ा दुख पा रहे है । वरुण के साथ विश्वासघात करने और मेरे श्राप का फल पा रहे है । मेरा तो यह सुझाव है कि आप उनके यहां ही अवतार लें । नारद का यह प्रस्ताव भगवान विष्णु ने स्वीकार कर लिया । व श्रीर सागर में स्थित उत्तर दिशा में अपने निवास में चले गए । फिर मेरु पर्वत की पार्वती गुफा में प्रवेश कर अपनी दिव्य देह त्यागकर वासुदेव के यहां जन्म ग्रहण करने के लिये चले गये ।
15 सितंबर 2010
पृथ्वी का दुख वर्णन
Posted by Udit bhargava at 9/15/2010 09:10:00 am
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