सी ने ठीक ही कहा है 'इस संसार में कोई भी चीज permanent नहीं है। सफलता या असफलता सभी एक timeperiod से बंधी हुई हैं। कुछ समय के पश्चात उसमें बदलाव जरूर होता है।
जो चीज आज सफल दिख रही है, कुछ समय के पश्चात उसको कोई पूछने वाला भी नहीं होगा, इसी तरह जो आज असफल दिख रही है, वह भविष्य में सफलता की गगनचुम्बी ऊंचाइयों पर होगी।
उदहारण के लिये जयपुर-इंदौर आदि शहरों में यदि हम नजर दौडाएं तो पायेंगे कि यहाँ पर अन्य बड़े शहरों की तरह शाँपिंग माल और कांरपोरेट वर्ल्ड के big रिटेल आउटलैट खुल रहे हैं। ये अपनी आकर्षक मार्केटिंग योजनाओं के माध्यम से ग्राहकों को [खासतौर पर युवा वर्ग को ] अपनी तरफ झुका रहे हैं। अच्छे वातावरण, एयरकंडीशंड सुविधाएं, स्मार्ट सेल्समैन एवं सेल्सवुमैन, good product collection, बेहद बढ़िया विज्ञापनों एवं अच्छे इवेंट मार्केटिंग की बदौलत इन्होने वो कर दिखाया, जो जयपुर जैसे शहरों के परम्परागत बाजार पिछले पचास वर्षों में नहीं कर सके। अभी तो परिस्थितियाँ ऐसी हो चुकी हैं कि परम्परागत बाजारों के लोग अपनी दुकान सुपरमाल आदि में खोलने लगे हैं। सवाल यह उठाता है कि इन पारंपरिक बाजारों का भविष्य में क्या होगा? अभी हाल ही में पता चला है कि सन 2001-2002 में जो दुकानदार बड़े थे, जो अखवारों में फुल पेज के साइज के अनेकों बार विज्ञापन देते थे, आज 2010 में उनकी हैसियत यह हो गई है कि वे बहुत ही छोटे विज्ञापन देने में हांफ जाते हैं।
मैनेजमेंट विशेषज्ञों के अनुसार 'यदि किसी शहर का बहुत तेजी से विकास हो रहा है, तो शाँपिंग माल इत्यादि traditional बाजारों को पीछे जरूर छोड़ेगी। उनके अनुसार भविष्य के 10-15 वर्षों में पारंपरिक बाजारों में ग्राहकों की अत्यधिक कमी आयेगी। वे सिंगापुर का उदहारण देते हैं, जहाँ पर भीड़-भरे छोटी-छोटी दुकानों वाले बाजारों को आधुनिक सुपर माल आदि के कारण बहुत दिक्कतों का सामना करना पडा। अतः मैनेजमेंट विशेषज्ञ ये सल्लाह देने से नहीं चूकते कि पारंपरिक बाजारों को अपने आपको संगठित कर लेना चाहिए। अपना एक USP विकसित कर लेना चाहिए। सिंगापुर की तर्ज पर सरकार से सहयोग लेना चाहिए और अपने एक-एक ग्राहक के लिये fight करनी चाहिए। अन्यथा शहर तो बड़ा हो जायेगा पर ये दुकानदार छोटे होकर भीड़ में गम जायेंगे।
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