चिड़िया की जाँ लेने में इक दाना लगता है
पालन कर के देखो एक जमाना लगता है ॥1॥
अंधों की सरकार बनी तो उनका राजा भी
आँखों वाला होकर सबको काना लगता है ॥2॥
जय-जय के नारों ने अब तक कर्म किये ऐसे
हर जयकारा अब ईश्वर पर ताना लगता है ॥3॥
कुछ भी पूछो, इक सा बतलाते सब नाम-पता
तेरा कूचा मुझको पागलखाना लगता है ॥4॥
दूर बजें जो ढोल सभी को लगते हैं अच्छे
गाँवों का रोना, दिल्ली को गाना लगता है ॥5॥
कल तक झोपड़ियों के दीप बुझाने का मुजरिम
सत्ता पाने पर, अब वो परवाना लगता है ॥6॥
टूटेंगें विश्वास, कली से मत पूछो कैसा
यौवन देवों को देकर मुरझाना लगता है ॥7॥
जाँच समितियों से करवाकर कुछ ना पाओगे
उसके घर में शाम-सबेरे थाना लगता है ॥8॥
जय हिन्द !!
- धर्मेन्द्र कुमार सिंह ’सज्जन’
पालन कर के देखो एक जमाना लगता है ॥1॥
अंधों की सरकार बनी तो उनका राजा भी
आँखों वाला होकर सबको काना लगता है ॥2॥
जय-जय के नारों ने अब तक कर्म किये ऐसे
हर जयकारा अब ईश्वर पर ताना लगता है ॥3॥
कुछ भी पूछो, इक सा बतलाते सब नाम-पता
तेरा कूचा मुझको पागलखाना लगता है ॥4॥
दूर बजें जो ढोल सभी को लगते हैं अच्छे
गाँवों का रोना, दिल्ली को गाना लगता है ॥5॥
कल तक झोपड़ियों के दीप बुझाने का मुजरिम
सत्ता पाने पर, अब वो परवाना लगता है ॥6॥
टूटेंगें विश्वास, कली से मत पूछो कैसा
यौवन देवों को देकर मुरझाना लगता है ॥7॥
जाँच समितियों से करवाकर कुछ ना पाओगे
उसके घर में शाम-सबेरे थाना लगता है ॥8॥
जय हिन्द !!
- धर्मेन्द्र कुमार सिंह ’सज्जन’
मेरी रचना को अपने ब्लॉग पर स्थान देने के लिए धन्यवाद
जवाब देंहटाएंइसके रचनाकार के स्थान पर मेरा नाम लिख दें तो आभारी रहूँगा मेरी ये रचना सर्वप्रथम हिंदयुग्म की मासिक प्रतियोगिता में 02 मई 2011 को प्रकाशित हुई थी जिसका लिंक निम्नवत है आप स्वयं देख सकते हैं।
जवाब देंहटाएंhttp://kavita.hindyugm.com/2011/05/blog-post.html
धर्मेन्द्र कुमार जी अपने विचार के मंच पर आपका सादर अभिनंदन है। ’अंधों की सरकार बनी’ शीर्षक काव्य-व्यंग रचना के संबन्ध में जो त्रुटि हुई थी। आपके अनुरोध को पुन: स्वीकारते हुए रचना को आपका नाम लिख दिया गया है।
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