सतरंगी मौसम में
किसी की प्रीति लिए,
नयनों में नीर भरे
दिल की आवाज लिए,
चेहरे पर भाव भरे
होंठों पर मुसकान लिए,
प्रीति सागर हिलोरें ले रहा है
आज मन कुछ गा रहा है।
भंवरी का मन विकल क्यों है
भंवरे से मिलने के लिए,
गगन क्यों झुक रहा है
धरा के चुंबन के लिए?
तार मन के बजते हैं
प्रिय की सांसों में बसने के लिए,
कौन स्वप्नों में हलचल मचा रहा है,
आज मन कुछ गा रहा है।
यहांवहां लक्ष्य की तलाश में
क्षणक्षण गुजरता दीर्घ श्वास में,
मन घूमता आस में, विश्वास में
चपला का कोलाहल लिए हुए,
बादलों की महफ़िल व्योम में,
मिलन आकांक्षा को मन में लिए,
प्रतीक्षारत पलपल गुजार रहा है,
आज मन कुछ गा रहा है।
- नीता माहेश्वरी
किसी की प्रीति लिए,
नयनों में नीर भरे
दिल की आवाज लिए,
चेहरे पर भाव भरे
होंठों पर मुसकान लिए,
प्रीति सागर हिलोरें ले रहा है
आज मन कुछ गा रहा है।
भंवरी का मन विकल क्यों है
भंवरे से मिलने के लिए,
गगन क्यों झुक रहा है
धरा के चुंबन के लिए?
तार मन के बजते हैं
प्रिय की सांसों में बसने के लिए,
कौन स्वप्नों में हलचल मचा रहा है,
आज मन कुछ गा रहा है।
यहांवहां लक्ष्य की तलाश में
क्षणक्षण गुजरता दीर्घ श्वास में,
मन घूमता आस में, विश्वास में
चपला का कोलाहल लिए हुए,
बादलों की महफ़िल व्योम में,
मिलन आकांक्षा को मन में लिए,
प्रतीक्षारत पलपल गुजार रहा है,
आज मन कुछ गा रहा है।
- नीता माहेश्वरी
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