मित्र के बीच का अपनापन कहाँ चला गया, काका-भतीजे के एक साथ नहीं बैठे, मित्र-मित्र एक-दूसरे पर संदेह करते हैं और सबसे बड़ी बात तो यह है की पति-पत्नी के बीच का प्रेम अनुराग समाप्त हो गया। ये परिवार ठीक नहीं हैं। ये सब करने के लिए प्रयास करना पड रहा है। जो स्वयं होना चाहिए आदमी को प्रयास करना पड रहा है की मैं उससे प्रेम करूं, मैंने उससे विवाह किया है तो मेरे जीवनसाथी के प्रति स्नेह प्रदर्शित करूं। वह तो स्वभाव का विषय है और आदमी के व्यवहार में उतर गया। बार-बार भागवत चेतावनी दे रहा है। मैं आपको फिर आगाह कर रहा हूँ, भागवत स्वभाव का विषय है। इसे केवल व्यवहार से न सुन लीजिये। जब आप बैठे, भागवत सुनें तो अपने भीतर स्थापित करीए और स्वयं भी स्थापित होइए।
अंतिम बात, आपका निजी जीवन पवित्रता पर टिकेगा। हर एक का निजी जीवन होता है। कितने ही सार्वजनिक, कितने सामाजिक और पारिवारिक हो जाएं, पर आपका जो निजीपन है, निजी जीवन है, आप ही जानते हैं और निजी जीवन में पवित्रता बनाए रखियेगा। पवित्रता परमात्मा की पहली पसंद है। परमात्मा हमारे जीवन में तभी उतरेंगे जब हमारा निजी जीवन पवित्र होगा और बड़े अफसोस की बात है की आज बड़े-बड़े लोगों का एकांत दुर्गन्ध मार रहा है, हम लोग समाज में रहते हैं, बहुत सुशील, सभी आचरणशील और बहुत ही भद्र नजर आते हैं। पर अपने कलेजे पर हाथ रख कर देखिये। जैसे ही हम एकांत में होते हैं, अपने चिंतन में, अपने आचरण में पशु से भी अधिक पतित हो जाते हैं।
- पं. विजय शंकर मेहता
अंतिम बात, आपका निजी जीवन पवित्रता पर टिकेगा। हर एक का निजी जीवन होता है। कितने ही सार्वजनिक, कितने सामाजिक और पारिवारिक हो जाएं, पर आपका जो निजीपन है, निजी जीवन है, आप ही जानते हैं और निजी जीवन में पवित्रता बनाए रखियेगा। पवित्रता परमात्मा की पहली पसंद है। परमात्मा हमारे जीवन में तभी उतरेंगे जब हमारा निजी जीवन पवित्र होगा और बड़े अफसोस की बात है की आज बड़े-बड़े लोगों का एकांत दुर्गन्ध मार रहा है, हम लोग समाज में रहते हैं, बहुत सुशील, सभी आचरणशील और बहुत ही भद्र नजर आते हैं। पर अपने कलेजे पर हाथ रख कर देखिये। जैसे ही हम एकांत में होते हैं, अपने चिंतन में, अपने आचरण में पशु से भी अधिक पतित हो जाते हैं।
- पं. विजय शंकर मेहता
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