ऐ खाकनशीनों उठ बैठो, वह वक्त करीब आ पहुंचा है,
जब तख्त गिराए जाएंगे, जब ताज उछाले जाएंगे।
अब टूट गिरेंगी जंजीरें, अब जिंदानों की खैर नहीं,
जो दरिया झूम के उट्ठे हैं, तिनकों से न टाले जाएंगे।
दरबार-ए-वतन में जब इक दिन सब जाने वाले जाएंगे,
कुछ अपनी सजा को पहुंचेंगे, कुछ अपनी सजा ले जाएंगे।
ऐ जुल्म के मारों लब खोलो, चुप रहने वालों चुप कब तक,
कुछ हश्र तो इनसे उट्ठेगा, कुछ दूर तो नाले जाएंगे।
दरबार-ए-वतन में जब इक दिन सब जाने वाले जाएंगे,
कुछ अपनी सजा को पहुंचेंगे, कुछ अपनी सजा ले जाएंगे।
कटते भी चलो, बढ़ते भी चलो, बाजू भी बहुत हैं,सर भी बहुत,
चलते भी चलो कि अब डेरे, मंजिल पे ही डाले जाएंगे।
~ Kanwrajsingh Rathore
जब तख्त गिराए जाएंगे, जब ताज उछाले जाएंगे।
अब टूट गिरेंगी जंजीरें, अब जिंदानों की खैर नहीं,
जो दरिया झूम के उट्ठे हैं, तिनकों से न टाले जाएंगे।
दरबार-ए-वतन में जब इक दिन सब जाने वाले जाएंगे,
कुछ अपनी सजा को पहुंचेंगे, कुछ अपनी सजा ले जाएंगे।
ऐ जुल्म के मारों लब खोलो, चुप रहने वालों चुप कब तक,
कुछ हश्र तो इनसे उट्ठेगा, कुछ दूर तो नाले जाएंगे।
दरबार-ए-वतन में जब इक दिन सब जाने वाले जाएंगे,
कुछ अपनी सजा को पहुंचेंगे, कुछ अपनी सजा ले जाएंगे।
कटते भी चलो, बढ़ते भी चलो, बाजू भी बहुत हैं,सर भी बहुत,
चलते भी चलो कि अब डेरे, मंजिल पे ही डाले जाएंगे।
~ Kanwrajsingh Rathore
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