कल रास्ते मे मुझे मिला एक आदमी हट्टा - कट्टा नौजवान लेकिन चेहरे से परेशान।
घबराया हुआ सहमा हुआ मिट्टी में कुछ टटोल रहा था, इधर- उधर डोल रहा था,
मन ही मन कुछ बोल रहा था।
मैंने पूछा - कुछ गुम हो गया क्या ?
हाँ , बहुत ही कीमती चीज।
रूपया पैसा?
नहीं, उससे भी कीमती चीज
सोना चांदी ?
नहीं, उससे भी कीमती चीज
हीरे मोती ?
नहीं, उससे भी कीमती चीज !
यह कीमती चीज क्या हो सकती है सोच-सोच कर मैं हैरान थी,
और खोज- खोज कर वह परेशान था।
मैने कहा – कुछ तो बतलाओ, पहेलियां मत बुझाओ।
वह बोला - कैसे बतलाऊं ?
मेरी तो जुबान ही सुन्न हो गई है क्योंकि मेरे ही घर से मेरी मां गुम हो गई है।
'मां' का नाम सुनते ही मैं स्तब्ध रह गई।
मूर्ति की भांति वहीं जमीन में गढ़ी रह गई।
सचमुच मां तो बहुत ही अमूल्य है, इसका न कोई तुल्य है।
मैने पूछा- अब घर में और कौन कौन हैं ?
वह बोला - मेरी सौतेली मां और स्वार्थी बहन-भाई।
मेरे ही घर में इन्होंने विदेशी औरत को जगह दिलाई।
इतना ही नहीं - मेरी बूढ़ी मां की खिल्ली भी उड़ाई ।
उसे तो बडों का आदर सम्मान ही नहीं छोटों को भी you (तुम) और बडों को भी you (तुम) कहती है।
मामा हो या चाचा, मौसी हो या बुआ, सभी को अंकल-आंटी कहती है।
मेरी मां तो बहुत तहजीब वाली है, उसकी तो हर बात निराली है।
छोटों को भी आप, बड़ों को भी आप कहती है।
धनवान हो या फकीर, सबके साथ मिलजुल कर रहती है।
मैने कहा अच्छा अब यह तो बताओ तुम्हारी मां दिखने में कैसी है ?
उसका नाम क्या है ? और उसकी पहचान क्या है ?
वह बोला मेरी मां भले ही बूढ़ी है, लेकिन अभी भी खूबसूरत है,
हिंदुस्तान को उसकी बहुत ही जरूरत है, उसके माथे पे गोल बिन्दी है।
वह हम सबकी राष्ट्रभाषा है और उसका नाम हिन्दी है।
(लक्षविन्दर जी की एक कविता)
~ Janmejai Pratap Singh
घबराया हुआ सहमा हुआ मिट्टी में कुछ टटोल रहा था, इधर- उधर डोल रहा था,
मन ही मन कुछ बोल रहा था।
मैंने पूछा - कुछ गुम हो गया क्या ?
हाँ , बहुत ही कीमती चीज।
रूपया पैसा?
नहीं, उससे भी कीमती चीज
सोना चांदी ?
नहीं, उससे भी कीमती चीज
हीरे मोती ?
नहीं, उससे भी कीमती चीज !
यह कीमती चीज क्या हो सकती है सोच-सोच कर मैं हैरान थी,
और खोज- खोज कर वह परेशान था।
मैने कहा – कुछ तो बतलाओ, पहेलियां मत बुझाओ।
वह बोला - कैसे बतलाऊं ?
मेरी तो जुबान ही सुन्न हो गई है क्योंकि मेरे ही घर से मेरी मां गुम हो गई है।
'मां' का नाम सुनते ही मैं स्तब्ध रह गई।
मूर्ति की भांति वहीं जमीन में गढ़ी रह गई।
सचमुच मां तो बहुत ही अमूल्य है, इसका न कोई तुल्य है।
मैने पूछा- अब घर में और कौन कौन हैं ?
वह बोला - मेरी सौतेली मां और स्वार्थी बहन-भाई।
मेरे ही घर में इन्होंने विदेशी औरत को जगह दिलाई।
इतना ही नहीं - मेरी बूढ़ी मां की खिल्ली भी उड़ाई ।
उसे तो बडों का आदर सम्मान ही नहीं छोटों को भी you (तुम) और बडों को भी you (तुम) कहती है।
मामा हो या चाचा, मौसी हो या बुआ, सभी को अंकल-आंटी कहती है।
मेरी मां तो बहुत तहजीब वाली है, उसकी तो हर बात निराली है।
छोटों को भी आप, बड़ों को भी आप कहती है।
धनवान हो या फकीर, सबके साथ मिलजुल कर रहती है।
मैने कहा अच्छा अब यह तो बताओ तुम्हारी मां दिखने में कैसी है ?
उसका नाम क्या है ? और उसकी पहचान क्या है ?
वह बोला मेरी मां भले ही बूढ़ी है, लेकिन अभी भी खूबसूरत है,
हिंदुस्तान को उसकी बहुत ही जरूरत है, उसके माथे पे गोल बिन्दी है।
वह हम सबकी राष्ट्रभाषा है और उसका नाम हिन्दी है।
(लक्षविन्दर जी की एक कविता)
~ Janmejai Pratap Singh
॥ जय हिन्द ॥ जय जय माँ भारती ॥ वन्दे मातरम् ॥
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