20 जनवरी 2011

भारतीय संस्कृति

भारतीय संस्कृति
भारत की सांस्कृतिक धरोहर बहुत सम्पन्न है। यहां की संस्कृति अनोखी है, और वर्षों से इसके कई अवयव अबतक अक्षुण्ण हैं। आक्रमणकारियों तथा प्रवासियों से विभिन्न चीजों को समेटकर यह एक मिश्रित संस्कृति बन गई है। आधुनिक भारत का समाज, भाषाएं, रीति-रिवाज इत्यादि इसका प्रमाण हैं। भारतीय समाज बहुधर्मिक, बहुभाषी तथा मिश्र-सांस्कृतिक है। प्राचीन भारत की सिंधु घाटी की सभ्यता से लेकर आजतक सांस्कृतिक मूल्यों का अद्यतनीकरण हो रहा है।





प्राचीन धरोहर
सम्राट अशोक के बनाए अशोक स्तम्भ तथा संगम साहित्य इसाकालीन भारतीय संस्कृति की अमूल्य धरोहर है। इसी समय के आसपास चीनी पर्यटक ह्वेन सांग तथा यवन दूत मेगास्थनीज़ के यात्रा वृतांत उस समय के भारत के बारे में जानकारी देते हैं। वैदिक काल में स्त्रियों की दशा में आई गिरावट अब तक जारी है।
ग्रीक आक्रमण के बाद भारतीय स्थापत्य कला, सिक्कों में परिवर्तन आया। 11वीं सदी में चोल सम्राट राजाराजा चोल द्वारा बनाया गया वृहद्देश्वर मंदिर उस समय की दक्षिण भारतीय शैली का सुन्दरतम नमूना है। मध्यकाल में इस्लामी शासन का प्रभाव यहां के स्थापत्य कला पर जोर शोर से हुआ। ताजमहल, बुलन्द दरवाजा, गोल गुम्बज, लालकिला तथा चारमीनार इसके सुन्दरतम उदाहरण हैं। भारतीय साहित्य में मध्यकाल में अधिक प्रगति नहीं हुई। हंलांकि हिन्दी तथा उर्दू जैसी भाषाओं के साथ ही अन्य क्षेत्रीय भाषाओं का उदय इसी समय हुआ। बांग्ला, तेलगु, कन्नड़, असमी, पंजाबी, गुजराती, अवधी, मैथिली तथा मलयालम जैसी भाषओं का विकास आरंभ हुआ।

१७वीं सदी से लेकर 20 सदी के मध्य तक यूरोपीय शक्तियों, खासकर ब्रिटेन के अधीन रहने के कारण भारतीय संस्कृति पर यूरोपीय प्रभाव भी पड़ा। इसी समय भारतीय समाज सुधारको ने भी यूरोपीय शैली के सामाजिक जीवन के अच्छे पहलुओं को भारतीय समाज के अंग बनाने में अहम भूमिका निभाई। राजा राम मोहन राय, स्वामी दयानन्द सरस्वती, स्वामी विवेकानन्द आदि कई लोगो ने भारतीय समाज की कई प्रथाओं को कुरीति कह कर समाज से उनके बहिष्कार की मांग की। इनमें जाति प्रथा, बाल हिवाह, सती प्रथा, दहेज प्रथा इत्यादि शामिल थे। अंग्रेजी शासन का प्रभाव हमारी शिक्षा पद्धति, स्थापत्य, साहित्य तथा अन्य कलाओं पर भी पड़ा। १९४७ में स्वाधीनता प्राप्ति के बाद भारतीय संस्कृति कई नेताओं तथा विचारकों के अनुरूप ढली। महात्मा गांधी, विनोवा भावे, जयप्रकाश नारायण इत्यादि जैसे लोगों ने जनमानस को अपना रास्ता दिखाया। 1990 के दशक में भारत को एक खुली अर्थव्यवस्था बनाए जाने के बाद भारतीय समाज फिर से यूरोपीय संस्कृति(मुख्य रूप से) से प्रभावित हो रहा है। भारतीय समाज में सुख की शीर्ष अनुभूति के आयाम यूरोपीय ढंग से बदल रहे हैं। इसका प्रभाव मुख्यतः नगरों में हुआ है।

वर्तमान
आज की भारतीय संस्कृति यूरोपीय, हिन्दू, इस्लामी तथा अन्य कई चीजों से प्रभावित होकर एक मिश्रित संस्कृति का रूप ले चुकी है। भारतीय समाज की यह बहुरूपीय छवि कई पश्चिमी देशों के लिए प्रेरणास्रोत बन गई है। कुछ विद्वान भारत की धार्मिक सहिष्णुता को लोगों की अकर्मण्यता से जोड़ते हैं पर ऐसे कई लोग है जो इसके विपरीत सोचते हैं। प्रायः मध्यम वर्ग में भारतीय संस्कृति के बदलते स्वरूप को लेकर बहुत क्षोभ है पर कई लोग इसका समर्थन भी करते हैं।

जनजीवन
आधुनिक भारतीय जीवन में सिनेमा, क्रिकेट (तथा कुछ अन्य खेल), राजनीति तथा देश प्रेम एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

पर्व त्यौहार
बहुधर्मी होने के कारण भारत में पर्व त्यौहारों की कमी नहीं है। होली, दिवाली, दशहरा, ईद, ओणम, क्रिसमस, पोंगल, बीहू, मुहर्रम, बकरीद, गुड फ्रायडे, ईस्टर इत्यादि प्रमुख पर्व है। आम भारतीय समाज में धीरे धीरे जन्मदिन तथा विवाह की वर्षगांठ मनाने का प्रचलन भी बढ़ रहा है। शहरों में वेलेन्टाइन्स डे, फादर्स डे, मदर्स डे तथा अन्य पश्चिमी मूल के उत्सव भी लोकप्रिय हो रहे हैं।

भाषा
भाषाविदों का कहना है कि भाषिक विविधता से परिपूर्ण इस देश में कोई 300 भाषा बोली जाती है। भारत के संविधान में कुल 22 भाषाओं को मान्यता देता है। हिन्दी सबसे ज्यादा बोले जाने वाली भाषा है पर फिर भी किसी एक भाषा को शत प्रतिशत लोग नही समझते हैं। अन्य बोलचाल की भाषाओं में उर्दू, बांग्ला, अंग्रेजी तथा तमिल प्रमुख हैं। हिन्दी को राष्ट्रीय भाषा बनाने का प्रावधान संविधान में किया गया था। इसके अनुसार भारतीय गणराज्य के उन राज्यों को 15 वर्षों की अवधि हिन्दी शिक्षण के लिए दी गई जिनकी प्रमुख भाषा हिन्दी नहीं थी। तब तक वे अंग्रेजी में भी पत्राचार (केन्द्र से) कर सकते थे। इसके बाद 1965 में हिन्दी को सरकारी कामकाज की एकमात्र भाषा बनाने का विचार था। पर 1965 में दक्षिणी राज्यो (खासकर तमिल नाडु) ने हिन्दी में कामकाज करने में अपनी अक्षमता को कारण बताकर हिन्दी को राष्ट्रभाषा से हटाने की मांग की। हिन्दी के राष्ट्रभाषा घोषित किये जाने पर तमिलनाडु में विरोध प्रदर्शन हुए और लोगों ने केन्द्रीय सरकार के संस्थानों जैसे रेलवे, राष्ट्रीय बैंक इत्यादि के पट से हिन्दी के अक्षरों को काले रंगो से पोत दिया। इसके बाद से अंग्रेजी तथा हिन्दी दोनो ही सरकारी कामकाज में प्रयुक्त होती है।

भारत की भाषाओं को अभ्युदय के आधार पर मुख्यतः तीन वर्गों में बांटा जा सकता है। हिन्द आर्य भाषा, द्रविड़ भाषा तथा तिब्बती बर्मी भाषा समूह। हिन्द आर्य भाषाओं के अन्तर्गत हिन्दी, उर्दू, पंजाबी, गुजराती, मराठी, बांग्ला, असमी, नेपाली, उड़िया के साथ अंग्रेजी भी आती है। द्रविड़ भाषाओं में दक्षिण भारत की तमिल, तेलगु, मलयालम, कन्नड़ तथा तुलु का नाम लिया जा सकता है। तिब्बती बर्मी समूह में उत्तर पूर्व की भाषाओं का स्थान आता है - बोडो, मिजो तथा पूर्वी राज्यों में वोले जाने वाली कई बोलियां।

संगीत
भारतीय संगीत की लोकप्रियतम धारा फिल्म संगीत है, हंलांकि भारत में संगीत की अन्य परंपराए सदियों पहले से चली आ रही है। पारंपरिक संगीत को दो मुख्य भागों में बांटा जा सकता है - हिन्दुस्तानी संगीत तथा कर्णाटक संगीत। इन दोनो ही शास्त्रीय संगीत विधाओं में गायन तथा वाद्ययंत्रों का अंतर है। हाल मे पाश्चात्य संगीत ने भी भारतीय विधा पर अपनी छाप छोड़ी है।

गायन विधाओं मे सामान्य गीतों के अतिरिक्त गजल, भजन, देशभक्ति गीत, कव्वाली इत्यादि प्रमुख हैं। इसके अतिरिक्त वाद्यवादन को भी चाव से सुना जाता है।

धर्म
यहा कई धर्मों का संगम होता है। भारत खुद कई धर्मों का जनक भी रहा है। इसमें हिन्दू, बौद्ध, जैन तथा सिक्ख धर्म का नाम लिया जाता है। इन धर्मों को धार्मिक धर्म कहते हैं। इसके अलावा इस्लाम, इसाई तथा पारसी धर्म प्रमुख हैं। हिन्दू धर्म को विश्व का प्राचीनतम धर्म भी कहा जाता है।
भारत में समय समय पर साम्प्रदायिक दंगे भी होते रहते हैं। इनमें हिन्दू मुस्लिम दंगों का स्वरूप सबसे विस्तृत होता है। हंलांकि इतना होने के बाद भी भारत की धार्मिक अखंडता अक्षुण्ण है।