जनीति में अपनी जगह व पहचान बना पाने में कामयाब उमा भारती मध्य प्रदेश के पिछड़े इलाके बुंदेलखंड के गाँव बड़ा मलहरा में 3 मई, 1955 को जन्मी थीं। उमा का बचपन कितने अभावों में बीता होगा, इस का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है की उन्हें औरचारिक स्कूली शिक्षा भी हासिल नहीं ही। बचपन से ही उन का रूझान धर्म की तरफ था। लिहाजा वे रामचरितमानस बांचने लगीं।
किशोरवय तक आते आते उन्हें ग्रन्थ पूरा कंठस्थ हो गया था। जल्द ही वे प्रवचन भी करने लगीं और भगवा कपडे पहन कर संन्यास भी ले लिया।
हिन्दूवाद की हिमायती
भाजपा की दिग्गज नेत्री राजमाता के नाम से मशहूर विजयराजे सिंधिया की नजर उमा पर पडी तो वे उन की प्रवचनशैली से खासी प्रभावित हुई और उन्हें राजनीति में ले आएं। इस के बाद तो उमा के तेवर इतने बदले की समाज का भलाबुरा छोड़ वे उग्र हिन्दूवाद की हिमायती हो गईं। पहली दफा 1984 में खजुराहो लोकसभा सीट से चुनाव हारने के बाद आगामी 5 चुनाव उन्होंने लगातार जीते और भोपाल लोकसभा सीट भी भारी अंतर से जीती।
केंद्रीय मंत्री बनने के बाद उन्होंने मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की कुर्सी संभाली और प्रदेश की पहली महिला मुख्यमंत्री बनीं।
कर्नाटक में साम्प्रदायिकता फैलाने के आरोप में मुख्यमंत्री रहते वारंट निकला तो उन्होंने पद से त्यागपत्र दे दिया और कुर्सी अपने भरोसेमंद बाबूलाल गौर के हवाले कर दी। उमा को उम्मीद थी की जब वे इस मामले से फारिग हो कर वापिस आएँगी तो उन्हें अपनी कुर्सी ज्यों की त्यों मिल जाएगी।
मगर उन की यह खुसफहमी जल्द ही दूर हो गई, जब भाजपा आलाकमान ने गौर को भी हटाते हुए शिवराज सिंह चौहान को मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री बना डाला। आहात और तिलमिलाई उमा ने भाजपा छोड़ अपनी नई पार्टी 'भारतीय जनशक्ति पार्टी' बना ली। उन का यह मुगालता भी दूर हो गया की भाजपा का वजूद उन से है और पार्टी उन की मुहताज है। अब निराश, हताश उमा भाजपा में बगैर किसी शर्त के वापस आने के लिये तैयार हैं।
वापसी की उम्मीद
मगर यह बात ज्यादा उल्लेखनीय है की पिछड़े वर्ग की एक निर्धन परिवार की जुझारू महिला देन्द्र तक पहुँची और कई विवादों के बाद भी घबराए नहीं। उमा अपना घर नहीं बसा पाई। भाई स्वामी लोधी से भी उन के विवाद काफी हलके स्तर पर सार्वजनिक हुए। 1993 में विवादित ढांचा ढहाने में अग्रणी रही हिंदुत्व की राह दोबारा पकड़ रही उमा इसे कामयाबी का मंत्र मान बैठी हैं।
भाजपा में वापसी की उम्मीद देख उमा ने अपनी ही पार्टी के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। बहरहाल, उन का भविष्य अब क्या होगा, इस का अंदाजा कोई नहीं लगा पा रहा।
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