दंब का वृक्ष अपने अनुपम नैर्सर्गिक सौंदर्य से सब को लुभाता है। यह बरसात के मौसम की सौन्दर्य का पताका है। इस का वानस्पतिक नाम 'नियोल्मार्किया कदंब' है। इसे संस्कृत में कादम्बः और कुत्सिताडगः कहते हैं। यह वृक्ष भारत के उष्ण इलाकों में पाया जाता है। वृन्दावन व गोकुल में कदंब बहुतायत में पाया जाता है। यह नेपाल, मयंमार व श्रीलंका में भी पाया जाता है।
व्रजभूमि में बहुधा पाए जाने वाले कदंब को 'मित्रागायना पार्वीफोलिया' कहते हैं, जो आज लुप्त होने की कगार पर है। इस का संरक्षण जरूरी है।
कदंब की ऊंचाई 20 से 25 फुट तक होती है। इस के पत्ते महुए की तरह गहरे हरे रंग के चमकदार होते हैं। शाखाएं लंबीलंबी होती हैं।
कदंब के बीजों को पीस कर तेल निकला जाता है। पीले कदंब की लकड़ी के खिलौने भी बनाए जाते हैं। कदंब की लकड़ी पानी में जल्दी नहीं गलती है।
सुगन्धित फूलों से फूलतेझूलते कदंब के वृक्ष अति लुभावने दिखाईए देते हैं। इस के फूलों की भीनीभीनी महक से आसपास का वातावरण सराबोर हो उठता है। बरसात में कदंब पर केसरिया रंग के गेंद के आकार के गोलगोल फूल आते हैं। कदंब के फूल शाखाओं पर बड़ी संख्या में लदे होते हैं।
पत्तियाँ शाख पर जहाँ जुडी होती हैं वहीं से एक शाखा निकलती है, उसी पर फूल निकलता है। कदंब का फूल कलियों का एक समूह गोल आकृति लिये हुए होता है, जो शुरू में हरे रंग का, बाद में सफ़ेद और पीला हो जाता है। तभी इस में से मादक खुशबू निकलती है।
इस का संवर्धन बीजों और कलम लगा कर होता है। बागबगीचों तथा घर के लॉन में लगाने के लिये यह उपयुक्त वृक्ष है।
कदम्ब के फूलों से बचपन में खेला करते थे. अब तो दिखाई ही नहीं देती.सुन्दर जानकारी. आभार.
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