वाटर गार्डनिंग यानी कि पानी में बागबानी का अपना अलग ही महत्त्व है। आप भी अपने घर में वाटर गार्डनिंग कर के ठंडक एवं ताजगी से भरा खूबसूरत माहौल बना सकते हैं।
ह गार्डनिंग की एक प्राचीन और बुद्ध के समय की एक प्रचलित कला है। उन दिनों मंदिरों के आसपास कमल के तालाबों का इतिहास में उल्लेख किया गया है। वाटर गार्डन में गर्मी के मौसम का अपना एक अनोखा महत्त्व होता है। आसपास ठंडक एवं ताजापन का एहसास कराने वाले खुशनुमा माहौल को महसूस किया जा सकता है। झाडियों और फ़ूलों की परछाई पानी में देख कर देखने वाले का मन मोहित हो जाता है। रात में पानी के अंदर चंद्रमा का प्रतिबिंब बागवानी के सौंदर्यीकरण में चार चांद लगा देते हैं। आकाश के बादलों की परछाई भी पानी में खूबसूरत तसवीर बनाती है। बागवानी प्रेमी बगीचे में इस का आनंद ले सकते हैं।
स्थान का चुनाव : वाटर गार्डन के लिए निम्न बिंदुओं पर विचार कर लेना जरूरी होता है:
1. तालाब में दिन के समय पूर्ण धूप आनी चाहिए,
2. पानी की नियमित सप्लाई की व्यवस्था सुनिश्चित हो।
3. छायादार वृक्षों के निकट तालाब न हो।
वाटर गार्डन के लिए तालाब का निर्माण : तालाब का आकार और प्रकार बाग के आकार के मुताबिक रखा जाता है। आमतौर पर फ़ारमल और इनफ़ारमल 2 तरह के तालाब हो सकते हैं। फ़ारमल वाटर गार्डन कंकरीट एवं सीमेंट से पक्का बनाया जाता है, जबकि इनफ़ारमल गार्डन का आकार वर्गाकार, आयताकार या अंडाकार किसी भी तरह का हो सकता है। सब से पहले उस क्षेत्र को 1 से डेढ मीटर गहरा खोदा जाता है। नीचे की सतह को ठोस बनाया जाता है। यह कंकरीट, मोटा बालू डाल कर तैयार किया जाता है, किंतु पानी के निकास के लिए पाइप को पहले ही फ़िक्स कर लिया जाता है। निकासी के पानी का उपयोग पौधों की सिंचाई के लिए किया जाता है। तालाब दी दीवारें ईंटों से निर्मित होनी चाहिए। तालाब के नीचे की सतह को 1 भाग सीमेंट और 3 भाग महीने रेत के मिश्रण से तैयार करवा लेनी चाहिए।
आमतौर पर तालाब की गहराई 60 सेंटीमीटर रखनी चाहिए। किंतु कमल या वाटर लिली जैसे पौधों के लिए कम से कम 1 मीटर से डेढ मीटर गहराई होनी चाहिए। जिस तालाब की गहराई 180 से 250 सेंटीमीटर रखी जाती है। तालाब का पानी साल में एक या 2 बार निकालते रहें।
पौधों को लगाने का तरीका : पानी के पौधों को पूरे साल में कभी भी लगाया जा सकता है। कमल या वाटर लिली के राइजोम को कंपोस्ट की टोकरी में भर कर लगाया जाता है, किंतु पक्के बनाए गए तालाब की तली में सब से पहले कंपोस्ट एवं मिटटी का मिश्रण 15 से 25 सेंटीमीटर मोटाई में बिछा देते हैं। इस के बाद ही पौधे लगाते हैं।
वाटर गार्डन की देखभाल : तालाब की सतह एवं किनारों की दीवारों पर काई के नियंत्रण के लिए 30 ग्राम पोटेशियम मेटाबाई सल्फ़ेट नामक रसायन प्रति लिटर पानी में घोलते हैं ध्यान रहे, पौधों का रोपण करते समय तालाब में मछली नहीं छोडनी चाहिए, मछली 3 सप्ताह बाद ही छोडें। रगीन गोल्ड फ़िश, इस के लिए उपयुक्त हैं।
पौधों का चुनाव : वाटर गार्डन के लिए पौधों का चुनाव गार्डन के प्रकार, उपयोग में लाने वाले पात्रों के आधार पर करना चाहिए। मुख्य पौधे निम्न प्रकार से हैं:
कमल : यह बडे तालाब के लिए उपयुक्त है, क्योंकि इस के पत्ते का आकार बडा होता है। फ़ूल भी बडे खुशबूदार सफ़ेद, गुलाबी, लाल आदि रंगों के होते हैं।
अमेरिकन कमल ( नीलंबा ल्यूटिया) : इस के फ़ूल पीले खुशबूदार होते हैं।
कुमुदनी : इस के फ़ूल भी बडे आकार के होते हैं। पत्तियों का रंग सफ़ेद, गुलाबी व लाल होता है। इस के खुशबू नहीं होती है।
वाटरलिली : इस का प्रसारण ट्यूबर या कंदो (बल्ब) द्वारा होता है।
वाटर टेप ग्रास (वैलिस्नेरिया स्पाइरैलिस) : यह आक्सीजन पैदा करने वाला पौधा है। इस से तालाब की सफ़ाई में मदद मिलती है।
सैजिटेरिया : वाटर हायसिंथ (आएशर्निया क्रैसिटेस) पत्तियों की खूबसूरती के लिए उगाया जाता है। यह तैरने वाला पौधा ।है
अंबेला पाम : यह तालाब के किनारे खाली भूमि पर उगाया जा सकता है। इस के अलावा अन्य पौधे दलदली स्थानों पर उगाए जा सकते हैं। उन पर फ़ूल आते हैं, जिन में प्रमुख रूप से आइरिस, सैजिटेरिया एवं टाइफ़ा आदि हैं।
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