कई लोग जाप किया करते हैं लेकिन उन्हें उसका फल नहीं मिलता। कोई शिव, कोई विष्णु, कोई राम तो कोई कृष्ण के नाम का जाप करता रहता है लेकिन उसे वैसा आनंद नहीं मिलता। कारण यह है कि हम जप तो करते हैं लेकिन ध्यान नहीं लगा पाते, यानी जुबान से जो भगवान का नाम ले रहे हैं वह दिल में नहीं उतर पाता इस कारण भगवान तक वे जाप नहीं पहुंच पाते। जब हृदय से जप होने लगे तो यह तत्काल भगवान तक पहुंचता है, इसका असर सीधा हमारे व्यक्तित्व पर भी दिखाई देता है। इसका सबसे श्रेष्ठ उदाहरण एक कथा के जरिए दिया जा सकता है। रामायण ग्रंथ के रचियता वाल्मीकि जो कि एक डाकू थे उनके मुंह से मरा मरा शब्द निकला जो कि राम की उलटा ही होता है, फिर भी मरा-मरा बोलते-बोलते ही उनका ध्यान लग गया और मुंह से राम-राम निकलने लगा, बस फिर तो वाल्मीकि को श्रीराम की कृपा प्राप्त हो गई वे परम ज्ञानी और श्रीराम भक्त वाल्मीकि हो गए। आज कलयुग में हम पूजा-तप और ऐसी कोई भक्ति करने की सोच भी नहीं सकते क्योंकि हमने हमारे चारों ओर मोह-माया की कभी ना टूटने वाली दीवार खड़ी कर ली है।04 मई 2010
जप कोई भी हो, जरूरी है कि ध्यान लगे
कई लोग जाप किया करते हैं लेकिन उन्हें उसका फल नहीं मिलता। कोई शिव, कोई विष्णु, कोई राम तो कोई कृष्ण के नाम का जाप करता रहता है लेकिन उसे वैसा आनंद नहीं मिलता। कारण यह है कि हम जप तो करते हैं लेकिन ध्यान नहीं लगा पाते, यानी जुबान से जो भगवान का नाम ले रहे हैं वह दिल में नहीं उतर पाता इस कारण भगवान तक वे जाप नहीं पहुंच पाते। जब हृदय से जप होने लगे तो यह तत्काल भगवान तक पहुंचता है, इसका असर सीधा हमारे व्यक्तित्व पर भी दिखाई देता है। इसका सबसे श्रेष्ठ उदाहरण एक कथा के जरिए दिया जा सकता है। रामायण ग्रंथ के रचियता वाल्मीकि जो कि एक डाकू थे उनके मुंह से मरा मरा शब्द निकला जो कि राम की उलटा ही होता है, फिर भी मरा-मरा बोलते-बोलते ही उनका ध्यान लग गया और मुंह से राम-राम निकलने लगा, बस फिर तो वाल्मीकि को श्रीराम की कृपा प्राप्त हो गई वे परम ज्ञानी और श्रीराम भक्त वाल्मीकि हो गए। आज कलयुग में हम पूजा-तप और ऐसी कोई भक्ति करने की सोच भी नहीं सकते क्योंकि हमने हमारे चारों ओर मोह-माया की कभी ना टूटने वाली दीवार खड़ी कर ली है।
Posted by Udit bhargava at 5/04/2010 08:41:00 am
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