धीरज, धर्म, मित्र अरु नारी।
आपद काल परखिए चारी।
अत: विपत्ति का ही वह समय होता है जब हम अपने धीरज, धर्म, मित्र और पत्नी की परीक्षा कर सकते हैं। सुख में तो सभी साथ देते हैं। जो दुख में साथ दे वही हमारा सच्चा हितेशी है।
कलयुग में थोड़ा ही दुख पहाड़ के समान दिखाई देता है और दुख के वश अधिकांशत: धर्म और धीरज का साथ छुट जाता है। और धर्म और धीरज का साथ छुटते ही शुरू होता है और भी ज्यादा बुरा समय। ऐसे में दुख के भंवर में फंसे उस व्यक्ति के मित्र और उसकी पत्नी साथ दे दे तब ही वह बच सकता है। परंतु ऐसा होता बहुत ही कम है। अत: यह समय ही परीक्षा का समय होता है उस दुखी व्यक्ति के धर्म और धीरज की परीक्षा और परीक्षा उसके मित्र और पत्नी की।
धर्म की परीक्षा
दुख या विपत्ति के समय हमें यह देखना चाहिए कि हम किसी भी तरह अधर्म के मार्ग पर ना जाए। अधर्म का मार्ग अर्थात् रिश्वत, बेइमानी, दुराचार, व्यभिचार आदि। हमें इन जैसे अधार्मिक और नैतिक पतन के मार्ग पर चलने से बचना चाहिए।
धीरज की परीक्षा
हमारा धीरज ही हमें समाज में मान-सम्मान के शिखर तक पहुंचा सकता है। कोई परेशानी यदि आती है तो ऐसे में धैर्य धारण करते हुए सही निर्णय लेना चाहिए ना कि गुस्से में अन्य लोगों पर दोषारोपण किया जाए।
मित्र की परीक्षा
मित्र ही होते है जो आपको किसी भी मुश्किल से आसानी से निकाल सकते हैं। मित्र ही सुखी और खुशियों भरा अमूल्य जीवन जीने की प्रेरणा देते हैं। आपत्ति के समय जो मित्र सहयोग करते हैं वे ही सच्चे मित्र होते हैं। रामायण में राम ने कहा है हमें मित्रों के छोटे से दुख को पहाड़ के समान समझना चाहिए और हमारे स्वयं के दुख को धूल के समान।
पत्नी की परीक्षा
ऐसा कहा जाता है कि पत्नी अगर अच्छी हो तो वह पति को सफलता की ऊंचाइयों तक पहुंचा सकती है और इसके विपरित बुरी पत्नी राजा को भी भिखारी सा जीवन जीने पर मजबूर कर सकती है। अत: विपरित परिस्थिति में भी जो पत्नी पति के हर कदम पर साथ चले और उसका मनोबल ना टूटने दे, गरीबे के समय भी पति को यह एहसास ना होने दे कि उसे किसी भी प्रकार दुख है। ऐसी पत्नी पूजनीय है।
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