बाला जी मंदिर में प्रवचन सुनाते हुए महंत गोपालदास ने कहा कि ईश्वर माता-पिता, बंधु तथा सखा है। वह दयालु है। सब की सहायता करता है। वेदों में कहा है कि त्वामेव प्रत्यक्षं ब्रह्म वदिष्यामि अर्थात हे ईश्वर मै तुम्हें प्रत्यक्ष ब्रह्म कहूंगा क्योंकि तू सर्वव्यापक है और नित्य प्राप्त है।
उन्होंने कहा कि दुख विपदा के समय सब साथ छोड देते हैं लेकिन ईश्वर हमारे साथ रहता है। प्रभु में सच्चे मन ध्यान लगाने से वह हर जन्म में साथ निभाता है। जैसे आत्मा-परमात्मा के बिना नहीं रह सकती वैसे ही भगवान भक्त के बिना नहीं रह सकता।
उन्होंने कहा कि मनुष्य की त्रासदी यह है कि वह अपने जीवन के अधिकतर समय में उसको भुलाए रहता है और जिनका संबंध सांसारिक, अस्थाई और स्वार्थ से परिपूर्ण रहता है उनके साथ लिप्त अहंकार, ईश्वर के पति अश्रद्धा और मानसिकता का भाव जन्म ले लेता है जो उसके विनाश का कारण बनता है।
साथ ही उन्होंने पंच यज्ञों के बारे में बताते हुए कहा कि यज्ञ में पंच महा यज्ञों को करने से पारिवारिक उन्नति होती है और मोक्ष का मार्ग खुलता है।
उन्होंने कहा कि जगत कल्याण व आत्मिक शांति के लिए पंच महायज्ञ करना श्रेष्ठ उपाय है। पंच यज्ञों में प्रथम यज्ञ यानी ब्रह्म यज्ञ के करने से मनुष्य को ब्रह्म की प्राप्ति होती है। द्वितीय यज्ञ में श्रद्धा पूर्वक देव यज्ञ करने से चेतन आत्माओं का आशीर्वाद मिलता है और जड-देवता अर्थात वायु , अग्नि आदि देवता हमारे अनुकूल रहते हैं। बलि वैश्य देव यज्ञ करने से सभी प्राणियों को हार्दिक शांति की अनुभूति होती है और सभी को आपसी प्रेम प्राप्त होता है। जिससे वैर भाव व वैमनस्य का खात्मा होता है। पितृ यज्ञ करने से मनुष्य को माता-पिता व बुजुर्गो जो कि हमारे पितृ बन चुके है, का स्नेह व आशीर्वाद मिलता है। अंतिम यज्ञ के बारे में बताते हुए स्वामी जी ने कहा कि अतिथि यज्ञ करना मनुष्य के लिए अति हितकारी व जरूरी होता है क्योंकि यह यज्ञ करने से मनुष्य को अतिथि की सेवा करने का अवसर उपलब्ध होता है।
21 फ़रवरी 2010
विपदा में साथ रहते है ईश्वर: गोपालदास
Labels: प्रवचन
Posted by Udit bhargava at 2/21/2010 08:28:00 am
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