22 फ़रवरी 2010

यूं बनता है देश का बजट

देश की आर्थिक दिशा तय करने और आय-व्यय का ब्योरा पेश करने के लिए देश की सरकार हर वर्ष संसद में बजट पेश करती है। पर इससे पहले काफी विस्तार से बजट पर चर्चा भी की जाती है। ताकि कोई चूक न हो जाए।
हर साल देश की आय-व्यय की विस्तृत जानकारी देने के लिए सरकार संसद में एक दस्तावेज प्रस्तुत करती है, जिसमें चालू वित्त वर्ष के दौरान हुई प्राप्तियों और खर्चों का ब्योरा दर्ज होता है। भारतीय संसद के दोनों सदनों में रखे जाने वाले एक वित्त वर्ष के इसी 'वित्तीय विवरण ’ को केंद्रीय बजट कहा जाता है। बजट के दो मुख्य पहलू होते हैं, रेवेन्यू यानी आमद और दूसरा एक्सपेंडिचर यानी खर्च। देश के आम बजट को फरवरी माह में संसद पटल पर प्रस्तुत किया जाता है। आइए जानते हैं बजट निर्माण की चरणबद्ध प्रक्रिया :

बजट डिविजन की स्थापना
सितंबर माह में वित्त मंत्री बजट डिविजन का गठन करते हैं, जो बजट की संपूर्ण तैयारी करने के लिए उत्तरदायी है। वित्त सचिव की अध्यक्षता में गठित बजट डिविजन में व्यय सचिव, राजस्व सचिव एवं केंद्रीय उत्पाद एवं सीमा शुल्क बोर्ड के चेयरमैन के साथ-साथ मंत्रालय के मुख्य आर्थिक सलाहकार भी शामिल होते हैं। बजट डिविजन राजस्व प्राप्ति और अनुदान मांगों को दस्तावेजों के रूप में तैयार करता है।

राजस्व आकलन
सितंबर के उत्तरार्ध में राजस्व का आकलन किया जाता है। केंद्र सरकार विभिन्न करों और सार्वजनिक इकाइयों (पीएसयू) से प्राप्त राजस्व का आकलन करती है। इसमें वल्र्ड बैंक और एडीबी द्वारा प्राप्त आमद शामिल है। यह एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है, जिसके आधार परखर्च का खाका तैयार होता है। केंद्रीय टैक्स की आमद का आकलन राजस्व विभाग द्वारा किया जाता है, जबकि पीएसयू की आमद के आकलन के लिए विभिन्न कंपनियों के सीएमडी और वित्त निदेशक बुलाए जाते हैं। राजस्व विभाग और पीएसयू से प्राप्त राजस्व की जानकारी वित्त सचिव को भेजी जाती है, जो इसे 'डिपार्टमेंट ऑफ एक्सपेंडिचर ’(व्यय विभाग) के सचिव को सौंपते हैं। यह विभाग कुल राजस्व आमद का आकलन करके आंकड़े बजट डिविजन को भेजते हैं, जिसका उल्लेख बजट दस्तावेजों में किया जाता है।

विचार-विमर्श
अक्तूबर से दिसंबर तक सरकारी विचार-विमर्श और समानांतर बैठकें होती हैं। बजट डिविजन के सदस्य सभी मंत्रालयों और विभागों के वित्त सचिवों के साथ बैठक करते हैं। दूसरी ओर सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के प्रतिनिधि भी बजट डिविजन के साथ बैठक करते हैं। बजट डिविजन इन सभी से बजट प्रस्ताव प्राप्त कर सकल बजटीय सहायता के निर्धारण के लिए योजना आयोग को देता है। जीबीएस में मंत्रालयों के संचालन खर्च के अलावा नई और पुरानी योजनाओं (क्षेत्रीय, सामाजिक विकास संबंधी) के लिए धन की मांग शामिल होती है। इसके तुरंत बाद बजट डिविजन उद्योग जगत, निजी और गैर-सरकारी कंपनियों, अर्थशास्त्रियों, ट्रेड यूनियनों, कृषि संगठनों और कॉरपोरेट जगत के प्रतिनिधियों से विचार-विमर्श करता है। इसी दौरान विभिन्न क्षेत्रों से वित्त मंत्री को बजट सुझाव मिलते हैं। खर्चो और योजनाओं से संबंधित सुझाव व्यय विभाग को, जबकि करों से जुड़े सुझाव वित्त मंत्रालय की टैक्स रिसर्च यूनिट को भेज दिए जाते हैं। संयुक्त सचिव स्तर के अधिकारी की अध्यक्षता में दोनों यूनिट बजट सुझावों और प्र्रस्तावों का आकलन कर अपनी अनुशंसा बजट डिविजन को भेजती हैं। सभी क्षेत्रों से सलाह-मशवरे के बाद बजट डिविजन वित्त मंत्री और वित्त मंत्री आरबीआई के गवर्नर के साथ भी विमर्श करते हैं, ताकि देश की मौद्रिक स्थिति का पता चले।

व्यय की रूपरेखा
जनवरी में वित्त मंत्री बजट डिविजन और योजना आयोग के उपाध्यक्ष के साथ मिलकर योजनागत व्यय का खाका तैयार करते हैं। बैठक में केंद्रीय करों व अन्य स्रोतों से आमद और आगामी वित्त वर्ष में प्रस्तावित खर्च के बीच तालमेल बिठाया जाता है। राजस्व और खर्च के जोड़-घटाव के साथ ही वित्त मंत्री को यह ध्यान रखना होता है कि राजकोषीय घाटा कम हो। इसके लिए रकम उगाही के लिए कुछ नए कर लगाने या करों का दायरा बढ़ाने पर भी विचार होता है। बैठक में आर्थिक प्राथमिकताएं और ब्याज दरों के साथ-साथ मूल्य व्यवस्था संबंधी दिशा-निर्देश तय किए जाते हैं। बैठक में बजट की संपूर्ण रूपरेखा तय होने के बाद उसे दस्तावेजों का रूप देने के लिए बजट डिविजन को सौंप दिया जाता है।

- बजट की सबसे पहली अवधारणा का श्रेय फ्रांस के वित्त अधिकारी विलियम लाउंडेस (1675) को जाता है। उनके प्रयासों से ही फ्रांस मेंं दुनिया का पहला बजट पेश किया गया।

- भारत में आजादी के बाद पहला बजट 26 नवंबर 1947 को वित्त मंत्री आर के षणमुखन चेट्टी ने पेश किया था।