रथ में मूर्छा भंग होने पर जब लक्ष्मण फिर विलाप करने लगे तो सुमन्त ने उन्हें धैर्य बँधाते हुये कहा, "वीरवर! आपको सीता के विषय में संताप नहीं करना चाहिये। यह बात तो दुर्वासा मुनि ने स्वर्गीय राजा दशरथ जी को पहले ही बता दी थी कि श्रीराम सदैव दुःख उठायेंगे। उन्हें प्रियजनों का वियोग उठाना पड़ेगा। मुनि के कथनानुसार दीर्घकाल व्यतीत होने पर वे आपको तथा भरत और शत्रुघ्न को भी त्याग देंगे। यह बात उन्होंने मेरे सामने कही थी, परन्तु स्वर्गीय महाराज ने मुझे आदेश दिया था कि यह बात मैं किसी से न कहूँ। अब उचित अवसर जानकर आपसे कह रहा हूँ। आपसे अनुरोध है कि आप यह बात भरत और शत्रुघ्न के सम्मुख कदापि न कहें।"
सुमन्त की बात सुनकर जब लक्ष्मण ने किसी से न कहने का आश्वासन देकर पूरी बात बताने का आग्रह किया तो सुमन्त ने कहा, "एक समय की बात है, दुर्वासा मुनि महर्षि वशिष्ठ के आश्रम में रहकर चातुर्मास बिता रहे थे। उसी समय महाराज दशरथ वशिष्ठ जी के दर्शनों के लिये पहुँचे। बातों-बातों में महाराज ने दुर्वासा मुनि से पूछा कि भगवन्! मेरा वंश कितने समय तक चलेगा? मेरे सब पुत्रों की आयु कितनी होगी? कृपा करके मेरे वंश की स्थिति मुझे बताइये। इस पर उन्होंने महाराज को कथा सुनाई कि देवासुर संग्राम में पीड़ित हुये दैत्यों ने महर्षि भृगु की पत्नी की शरण ली थी। भृगु की पत्नी द्वारा दैत्यों को शरण दिये जाने पर कुपित होकर भगवान विष्णु ने अपने चक्र से उसका सिर काट डाला। अपनी पत्नी के मरने पर भृगु ने क्रुद्ध होकर विष्णु को शाप दिया कि आपने मेरी पत्नी की हत्या की है, इसलिये आपको मनुष्य के रूप में पृथ्वी पर जन्म लेना पड़ेगा और वहाँ दीर्घकाल तक पत्नी का वियोग सहना पड़ेगा। शाप की बात बताकर महर्षि दुर्वासा ने रघुवंश के भविष्य सम्बंधी बहुत सी बातें बताईं। उसमें आप लोगों को त्यागने की बात भी बताई गई थी। उन्होंने यह भी कहा था कि रघुनाथजी सीता के दो पुत्रों का अभिषेक अयोध्या के बाहर करेंगे, अयोध्या में नहीं। इसलिये विधाता का विधान जानकर आपको शोक नहीं करना चाहिये।" ये बातें सुनकर लक्ष्मण का संताप कुछ कम हुआ।
केशिनी के तट पर रात्रि बिताकर दूसरे दिन दोपहर को लक्ष्मण अयोध्या पहुँचे। उन्होंने अत्यन्त दुःखी मन से श्रीराम के पास पहुँचकर सीता के परित्याग का सम्पूर्ण वृतान्त जा सुनाया। राम ने संयमपूर्वक सारी बातें सुनीं और अपने मन पर नियन्त्रण रखते हुये राजकाज में मन लगाया।
25 फ़रवरी 2010
रामायण – उत्तरकाण्ड - लक्ष्मण की वापसी
Posted by Udit bhargava at 2/25/2010 06:08:00 am
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