02 दिसंबर 2009

स्वर को पहचानें सिद्ध करें मनोरथ


सूर्य, चंद्रमा एवं अन्य ग्रह नियमित रूप से चराचर जगत को प्रभावित करते हैं। इन्हीं से निर्देशित होकर नाड़ियां हमारे शरीर, मन एवं भविष्य में होने वाली तात्कालिक घटनाओं को प्रभावित करती हैं। इसी तरह वाम एवं दक्षिण स्वर क्रमश: मन एवं आत्मा के प्रतीक हैं।
कई बार ऐसे अवसर आते हैं, जब कार्य अत्यंत आवश्यक होता है, लेकिन स्वर विपरीत चल रहा होता है। ऐसे समय में स्वर की प्रतीक्षा करने पर उत्तम अवसर हाथों से निकल सकता है, अत: स्वर परिवर्तन के द्वारा अपने अभीष्ट की सिद्धि के लिए प्रस्थान करना चाहिए या कार्य प्रारंभ करना चाहिए। स्वर विज्ञान का सम्यक ज्ञान आपको सदैव अनुकूल परिणाम प्रदान करवा सकता है।

संकेत नाड़ियों के
मानव शरीर में स्थित लगभग सात हजार दो सौ नाड़ियां समस्त ब्रrांड के ग्रह-नक्षत्रों की प्रभाव क्षमता को स्पष्ट कर देती हैं। नाभि में एक नाड़ी कुंडली के आकार में है, जिसमें से इड़ा, पिंगला, सुषुम्ना, गांधारी, हस्तजिह्वा, पूषा, यशस्विनी, अलंगुषा, कुहू और शंखिनी नामक दस नाड़ियां निकलती हैं।
इनमें से प्रारंभिक तीन इड़ा, पिंगला एवं सुषुम्ना प्रधान होती हैं। इड़ा को ही चंद्र कहते हैं और मन पर नियंत्रण एवं प्रिय-अप्रिय का बोध इसके कारण होता है। इसका परीक्षण बाएं नथुने से किया जाता है। पिंगला को सूर्य कहते हैं। यह दाएं नथुने में होती है।
सुषुम्ना को वायु कहते हैं जो दोनों नथुनों के मध्य में होती है। हमारी श्वास निर्बाध गति से जिस नथुने से आ रही हो तो चंद्र स्वर तथा दाहिना नथुना सही काम कर रहा हो तो सूर्य स्वर चलता हुआ होता है। जिस समय स्वर परिवर्तन होता है, उस समय वायु तत्व प्रभावी होता है तथा सुषुम्ना नाड़ी चलती है।

कब करें कौन सा काम
ग्रहों को देखे बिना स्वर विज्ञान के ज्ञान से अनेक समस्याओं, बाधाओं एवं शुभ परिणामों का बोध इन नाड़ियों से होने लगता है, जिससे अशुभ का निराकरण भी आसानी से किया जा सकता है।चंद्रमा एवं सूर्य की रश्मियों का प्रभाव स्वरों पर पड़ता है। चंद्रमा का गुण शीतल एवं सूर्य का उष्ण है।
शीतलता से स्थिरता, गंभीरता, विवेक आदि गुण उत्पन्न होते हैं और उष्णता से तेज, शौर्य, चंचलता, उत्साह, क्रियाशीलता, बल आदि गुण पैदा होते हैं। किसी भी काम का अंतिम परिणाम उसके आरंभ पर निर्भर करता है। शरीर व मन की स्थिति, चंद्र व सूर्य या अन्य ग्रहों एवं नाड़ियों को भलीभांति पहचान कर यदि काम शुरु करें तो परिणाम अनुकूल निकलते हैं।
स्वर वैज्ञानिकों ने निष्कर्ष निकाला है कि विवेकपूर्ण और स्थायी कार्य चंद्र स्वर में किए जाने चाहिए, जैसे विवाह, दान, मंदिर, जलाशय निर्माण, नया वस्त्र धारण करना, घर बनाना, आभूषण खरीदना, शांति अनुष्ठान कर्म, व्यापार, बीज बोना, दूर प्रदेशों की यात्रा, विद्यारंभ, धर्म, यज्ञ, दीक्षा, मंत्र, योग क्रिया आदि ऐसे कार्य हैं कि जिनमें अधिक गंभीरता और बुद्धिपूर्वक कार्य करने की आवश्यकता होती है।
इसीलिए चंद्र स्वर के चलते इन कार्यो का आरंभ शुभ परिणामदायक होता है। उत्तेजना, आवेश और जोश के साथ करने पर जो कार्य ठीक होते हैं, उनमें सूर्य स्वर उत्तम कहा जाता है। दाहिने नथुने से श्वास ठीक आ रही हो अर्थात सूर्य स्वर चल रहा हो तो परिणाम अनुकूल मिलने वाला होता है।

दबाए मानसिक विकार
कुछ समय के लिए दोनों नाड़ियां चलती हैं अत: प्राय: शरीर संधि अवस्था में होता है। इस समय पारलौकिक भावनाएं जागृत होती हैं। संसार की ओर से विरक्ति, उदासीनता और अरुचि होने लगती है। इस समय में परमार्थ चिंतन, ईश्वर आराधना आदि की जाए, तो सफलता प्राप्त हो सकती है। यह काल सुषुम्ना नाड़ी का होता है, इसमें मानसिक विकार दब जाते हैं और आत्मिक भाव का उदय होता है।

अन्य उपाय
यदि किसी क्रोधी पुरुष के पास जाना है तो जो स्वर नहीं चल रहा है, उस पैर को आगे बढ़ाकर प्रस्थान करना चाहिए तथा अचलित स्वर की ओर उस पुरुष या महिला को लेकर बातचीत करनी चाहिए। ऐसा करने से क्रोधी व्यक्ति के क्रोध को आपका अविचलित स्वर का शांत भाग शांत बना देगा और मनोरथ की सिद्धि होगी।
गुरु, मित्र, अधिकारी, राजा, मंत्री आदि से वाम स्वर से ही वार्ता करनी चाहिए। कई बार ऐसे अवसर भी आते हैं, जब कार्य अत्यंत आवश्यक होता है लेकिन स्वर विपरीत चल रहा होता है।ऐसे समय स्वर बदलने के प्रयास करने चाहिए।
स्वर को परिवर्तित कर अपने अनुकूल करने के लिए कुछ उपाय कर लेने चाहिए। जिस नथुने से श्वास नहीं आ रही हो, उससे दूसरे नथुने को दबाकर पहले नथुने से श्वास निकालें। इस तरह कुछ ही देर में स्वर परिवर्तित हो जाएगा। घी खाने से वाम स्वर और शहद खाने से दक्षिण स्वर चलना प्रारंभ हो जाता है।