हिंदू संस्कृति में सोलह संस्कार हैं जिसमें विवाह संस्कार मुख्य है। विवाह का सौभाग्य सभी को प्राप्त नहीं होता है। दांपत्य सुख के अभाव के कई कारण हो सकते हैं। इनमें से हम मुख्य ज्योतिष कारणों का ही वर्णन कर रहे हैं।
< स्त्री या पुरुष की जन्म कुंडली में सप्तम भाव और सप्तमेष का पापी ग्रहों जैसे- राहु, मंगल, शनि और केतु से युक्त।
< सप्तमेष का ६वें, ८वें या १२वें भाव में
< पुरुष की कुंडली में शुक्र और स्त्री की कुंडली में गुरु ग्रह का दूषित होना।
< मंगल दोष का निवारण न होना।
< गुण मिलान के अंतर्गत १८ गुण से कम होना।
< नाड़ी दोष, गण दोष, नुपूर दोष।
< हस्त रेखा के अंतर्गत बुध पर्वत के निकट सबसे लंबी रेखा को विवाह रेखा कहते हैं। इसका दूषित होना जैसे: विवाह रेखा आगे चलकर हृदय रेखा से मिल जाए तो संबंध विच्छेद हो सकता है।विवाह रेखा आगे चल द्विशाखीत हो जाए तो तलाक हो जाता है।विवाह रेखा बुध पर्वत के मूल में मुड़ जाए तो जातक का कभी विवाह नहीं होता।विवाह रेखा पर काला तिल, क्रॉस होना अशुभ लक्षण है।पूर्व जन्म में पत्नी पर किए गए अत्याचार भी दांपत्य दुख का कारण बनते हैं।सप्तम भाव में अकेला गुरु ग्रह हानिकारक होता है।
उपाय
< स्त्री जातक पुखराज और पुरुष जातक हीरा या ओपल रत्न धारण करें।
< सप्तमेष और सप्तम भाव में स्थित पापी ग्रहों की शांति करवाएं।
< पुरुष जातक निम्न मंत्र का जाप करें:-
पत्नीं मनोरमां देहि मनो वृत्तानुसारिणीम्।
तारिणीं दुर्गसंसार सागस्य कुलोद् भवाम
स्त्रियां भगवान शंकर और माता पार्वती की संयुक्त तस्वीर रखकर मंत्र का जाप करें।
हे गौरि! शंक्डरार्धाड्रि यथा त्वं शंकरप्रिया।
तथा मां कुरू कल्याणि! कान्त कान्तां सुदुर्लभाम्।।
या
ऊँ कात्यायनी देवीय नम:।
02 दिसंबर 2009
ताकि सुखमय हो दांपत्य
Posted by Udit bhargava at 12/02/2009 09:17:00 pm
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