निष्काम कर्मयोग क्या है? कौन से काम करने लायक हैं और कौन से करने लायक नहीं हैं? जिन लोगों ने उचित काम किए, उनको क्या परिणाम मिला और जो अनुचित मार्ग से गए उनको क्या परिणाम मिला।
तीसरी बात इसमें जीवन का व्यवहार है जो बहुत आवश्यक है। आज जिन प्रसंगों में हम प्रवेश कर रहे हैं, इनमें जीवन के व्यवहार के अनेक पक्ष आएँगे। हम जिस तरह का जीवन जीते हैं, इसमें चार तरह के व्यवहार होना हैं। हमारा पहला जीवन होता है सामाजिक, दूसरा व्यावसायिक व्यावहारिक जीवन कह लें प्रोफेशन, तीसरी बात हमारा पारिवारिक जीवन और चौथी हमारा निजी जीवन। हमारा सामाजिक जीवन जो होता है वह पारदर्शिता पर टिका है। व्यावसायिक जीवन परिश्रम पर टिका है। पारिवारिक जीवन प्रेम पर टिका है और निजी जीवन पवित्रता पर टिका है। ये चार बातें ध्यान रखियेगा। हमारे जीवन के ये चार हिस्से भागवत के प्रसंगों में बार-बार झलकते मिलेंगे। परिवार में, समाज में, निजी जीवन में, व्यवसाय में कैसे रहें, अनेक प्रसंग इसमें आने वाले हैं। पहली बात हमारा महत्वपूर्ण जीवन जो भागवत के प्रसंग से अब हम जानने का प्रयास करेंगे। हमारे व्यावसायिक जीवन में परिश्रम हो, लेकिन परिश्रम के अर्थ समझिएगा। परिश्रम नशा न बन जाए। परिश्रम बीमारी न बन जाए कितना परिश्रम करते हैं लोग आज? पर परिश्रम होना चाहिये तन का और विश्राम मिलना चाहिये मन को। होता उलटा है। जितना परिश्रम हम तन से करते हैं, उससे तिगुना परिश्रम मन करने लगता है। इससे आदमी या तो थक जाता है, चिडचिडा हो जाता है, बैचेन हो जाता है, बीमार हो जाता है। परिश्रम का अर्थ समझिये। आज के परिश्रम ने इतना दौड़ा दिया है आदमी को बाहर से और भीतर से की उसकी जितनी भी प्रतिभा थी वह सब प्रचंडता में बदल गई। उसकी योग्यता थी वह छीना-झपटी में बदल गई और आदमी आक्रामक हो गया, जिसको निवेदक होना था। विनम्रता ढूंढें नहीं मिलाती। तो इस परिश्रम को समझिये। देह खूब परिश्रम करे, देह के तीव्रता होनी चाहिये। लेकिन मन उसी क्षण बहुत विश्राम में रहे तब आप इस परिश्रम का आनंद उठा पायेंगे। इसी परिश्रम को पूजा कहा गया है।
- पं. विजय शंकर मेहता
तीसरी बात इसमें जीवन का व्यवहार है जो बहुत आवश्यक है। आज जिन प्रसंगों में हम प्रवेश कर रहे हैं, इनमें जीवन के व्यवहार के अनेक पक्ष आएँगे। हम जिस तरह का जीवन जीते हैं, इसमें चार तरह के व्यवहार होना हैं। हमारा पहला जीवन होता है सामाजिक, दूसरा व्यावसायिक व्यावहारिक जीवन कह लें प्रोफेशन, तीसरी बात हमारा पारिवारिक जीवन और चौथी हमारा निजी जीवन। हमारा सामाजिक जीवन जो होता है वह पारदर्शिता पर टिका है। व्यावसायिक जीवन परिश्रम पर टिका है। पारिवारिक जीवन प्रेम पर टिका है और निजी जीवन पवित्रता पर टिका है। ये चार बातें ध्यान रखियेगा। हमारे जीवन के ये चार हिस्से भागवत के प्रसंगों में बार-बार झलकते मिलेंगे। परिवार में, समाज में, निजी जीवन में, व्यवसाय में कैसे रहें, अनेक प्रसंग इसमें आने वाले हैं। पहली बात हमारा महत्वपूर्ण जीवन जो भागवत के प्रसंग से अब हम जानने का प्रयास करेंगे। हमारे व्यावसायिक जीवन में परिश्रम हो, लेकिन परिश्रम के अर्थ समझिएगा। परिश्रम नशा न बन जाए। परिश्रम बीमारी न बन जाए कितना परिश्रम करते हैं लोग आज? पर परिश्रम होना चाहिये तन का और विश्राम मिलना चाहिये मन को। होता उलटा है। जितना परिश्रम हम तन से करते हैं, उससे तिगुना परिश्रम मन करने लगता है। इससे आदमी या तो थक जाता है, चिडचिडा हो जाता है, बैचेन हो जाता है, बीमार हो जाता है। परिश्रम का अर्थ समझिये। आज के परिश्रम ने इतना दौड़ा दिया है आदमी को बाहर से और भीतर से की उसकी जितनी भी प्रतिभा थी वह सब प्रचंडता में बदल गई। उसकी योग्यता थी वह छीना-झपटी में बदल गई और आदमी आक्रामक हो गया, जिसको निवेदक होना था। विनम्रता ढूंढें नहीं मिलाती। तो इस परिश्रम को समझिये। देह खूब परिश्रम करे, देह के तीव्रता होनी चाहिये। लेकिन मन उसी क्षण बहुत विश्राम में रहे तब आप इस परिश्रम का आनंद उठा पायेंगे। इसी परिश्रम को पूजा कहा गया है।
- पं. विजय शंकर मेहता
badhiya rachna ...
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અતિ સુંદર
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