आपको फिल्म 'सारांश' में अनुपम खेर का मर्मस्पर्शी अभिनय याद ही होगा, जिसमें उन्होंने युवा बेटे के असामयिक निधन से टूट चुके पिता की भूमिका निभाई थी। फिल्म में अनुपम का किरदार मुख्यमंत्री के सामने दुखी होते हुए कहता है की वह कोई वीडियो या रेफ्रिजरेटर नहीं मांग रहा है, बल्कि अपने मृत बेटे की अस्थियाँ पाना चाहता है।
मध्यप्रदेश के उज्जैन जिले में रहने वाले सेवानिवृत्त बैंक कर्मचारी एम.एस. श्रीवास्तव का भी कुछ ऐसा ही हाल है। वह अपने बच्चों के सोनी इरिक्सन मोबाइल T -100 की बैटरी बदलवाना चाहते थे, जिसे सात साल पहले खरीदा गया था। उनके लिए यह उपकरण अपने प्रिय बच्चों की आख़िरी निशानी है, जिनकी एक दुखद दुर्घटना में अकाल मौत हो गयी। एम.एस. श्रीवास्तव की दो बेटियाँ और एक बेटा था। जून 2003 में उनकी बेटी ने अपने भाई के लिए एक सोनी मोबाइल हैंडसेट खरीदा। श्रीवास्तव की बड़ी बेटी, जो शादी के बाद सूरत में सैटल हो चुकी थी, ने जुलाई 2004 में उन्हें अपने घर बुलाया। श्रीवास्तव के भाई का लड़का भी उनके साथ वहां गया।
श्रीवास्तव के दामाद के साथ चारों बच्चे सूरत के निकट सुवाई बीच पर पिकनिक मनाने के लिए गए। सुर्भाग्य से नियती को कुछ और ही मंजूर था। श्रीवास्तव खानदान के चारों बच्चों की डूबने से मौत हो गई, जबकि उनके दामाद को हेलीकाप्टर की मदद से बचा लिया गया। बच्चों की मौत से पूरी तरह टूट चुके श्रीवास्तव इस मोबाइल के साथ घर लौटे, जो बच्चों और उनके माता-पिता के बीच साझा कड़ी था। जब यह फोन बजता, श्रीवास्तव को यूं महसूस होता मानों उनके बच्चे उन्हें पुकार कर रहे हैं।
श्रीवास्तव ने मोबाइल का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया। हालांकि पिछले कुछ महीनों से इसकी बैटरी दागा देने लगी थी। उन्होंने बाजार में जगह-जगह इसकी नई बैटरी तलाशी। कंपनी का यह मोबाइल सेट चलन से बाहर हो चुका था, लिहाजा कहीं भी इसकी बैटरी उपलब्ध नहीं थी।
लेकिन श्रीवास्तव भावनात्मक कारणों की वजह से इसे खुद से अलग नहीं करना चाहते थे। उन्होंने कंपनी के सर्वित सेंटर से कई बार संपर्क किया, इसके बावजूद उन्हें बैटरी नहीं मिल सकी। आखिरकार उन्होंने फर्म के अध्यक्ष बर्ट नोर्डबर्ग को अमेरिका में एक इमेल भेजा। इस इमेल में उन्होंने अपने मरहूम बच्चों के साथ अपने 'पाक रिश्ते' का मर्मस्पर्शी अंदाज में जिक्र किया था। ईमेल भेजने के कुछ ही दिन बाद इस कंपनी को भारतीय इकाई के मुखिया और कस्टमर रिलेशन डिपार्टमेंट द्वारा उन्हें सूचित किया गया की बैटरी की वैश्विक स्तर पर खोज की जा रही है और वे जल्द ही इसकी उपलब्धता के बारे में उन्हें जानकारी देंगें। एक हफ्ते बाद उन्हें बताया गया की सिंगापुर में इसकी बैटरी मिल गई है और इसे दिल्ली लाया जा रहा है।
दो दिन बाद उन्हें सूचित किया गया की बैटरी दिल्ली पहुँच चुकी है और अगले तीन दिनों में इसे उज्जैन में उनके पते पर कोरियर कर दिया गया। ईमेल भेजने से लेकर रिल्प्लेस्मेंट बैटरी के उन तक पहुँचने तक यह पूरा मामला 22 दिनों में निपट गया। हालांकि उन्हें अपने इस अथक प्रयास के लिए एक भी पैसा नहीं चुकाना पडा।
मध्यप्रदेश के उज्जैन जिले में रहने वाले सेवानिवृत्त बैंक कर्मचारी एम.एस. श्रीवास्तव का भी कुछ ऐसा ही हाल है। वह अपने बच्चों के सोनी इरिक्सन मोबाइल T -100 की बैटरी बदलवाना चाहते थे, जिसे सात साल पहले खरीदा गया था। उनके लिए यह उपकरण अपने प्रिय बच्चों की आख़िरी निशानी है, जिनकी एक दुखद दुर्घटना में अकाल मौत हो गयी। एम.एस. श्रीवास्तव की दो बेटियाँ और एक बेटा था। जून 2003 में उनकी बेटी ने अपने भाई के लिए एक सोनी मोबाइल हैंडसेट खरीदा। श्रीवास्तव की बड़ी बेटी, जो शादी के बाद सूरत में सैटल हो चुकी थी, ने जुलाई 2004 में उन्हें अपने घर बुलाया। श्रीवास्तव के भाई का लड़का भी उनके साथ वहां गया।
श्रीवास्तव के दामाद के साथ चारों बच्चे सूरत के निकट सुवाई बीच पर पिकनिक मनाने के लिए गए। सुर्भाग्य से नियती को कुछ और ही मंजूर था। श्रीवास्तव खानदान के चारों बच्चों की डूबने से मौत हो गई, जबकि उनके दामाद को हेलीकाप्टर की मदद से बचा लिया गया। बच्चों की मौत से पूरी तरह टूट चुके श्रीवास्तव इस मोबाइल के साथ घर लौटे, जो बच्चों और उनके माता-पिता के बीच साझा कड़ी था। जब यह फोन बजता, श्रीवास्तव को यूं महसूस होता मानों उनके बच्चे उन्हें पुकार कर रहे हैं।
श्रीवास्तव ने मोबाइल का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया। हालांकि पिछले कुछ महीनों से इसकी बैटरी दागा देने लगी थी। उन्होंने बाजार में जगह-जगह इसकी नई बैटरी तलाशी। कंपनी का यह मोबाइल सेट चलन से बाहर हो चुका था, लिहाजा कहीं भी इसकी बैटरी उपलब्ध नहीं थी।
लेकिन श्रीवास्तव भावनात्मक कारणों की वजह से इसे खुद से अलग नहीं करना चाहते थे। उन्होंने कंपनी के सर्वित सेंटर से कई बार संपर्क किया, इसके बावजूद उन्हें बैटरी नहीं मिल सकी। आखिरकार उन्होंने फर्म के अध्यक्ष बर्ट नोर्डबर्ग को अमेरिका में एक इमेल भेजा। इस इमेल में उन्होंने अपने मरहूम बच्चों के साथ अपने 'पाक रिश्ते' का मर्मस्पर्शी अंदाज में जिक्र किया था। ईमेल भेजने के कुछ ही दिन बाद इस कंपनी को भारतीय इकाई के मुखिया और कस्टमर रिलेशन डिपार्टमेंट द्वारा उन्हें सूचित किया गया की बैटरी की वैश्विक स्तर पर खोज की जा रही है और वे जल्द ही इसकी उपलब्धता के बारे में उन्हें जानकारी देंगें। एक हफ्ते बाद उन्हें बताया गया की सिंगापुर में इसकी बैटरी मिल गई है और इसे दिल्ली लाया जा रहा है।
दो दिन बाद उन्हें सूचित किया गया की बैटरी दिल्ली पहुँच चुकी है और अगले तीन दिनों में इसे उज्जैन में उनके पते पर कोरियर कर दिया गया। ईमेल भेजने से लेकर रिल्प्लेस्मेंट बैटरी के उन तक पहुँचने तक यह पूरा मामला 22 दिनों में निपट गया। हालांकि उन्हें अपने इस अथक प्रयास के लिए एक भी पैसा नहीं चुकाना पडा।
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