भाद्र शुक्ल पक्ष की तृतीय को हस्त नक्षत्र होता है. इस तिथि को हरितालिका तीज व्रत मनाया जाता है. इस व्रत को करने से कन्याओं को मनोनुकूल वर तथा सौभाग्यवती महिलाओं को अखण्ड सौभाग्य की प्राप्ति होती है. इस दिन प्रातः काल स्नानादि से निवृत्त होकर वृति स्त्री को हरितालिका तीज व्रत करने का संकल्प करना चाहिए. तदुपरांत उसे पूरे दिन निराहार रहना चाहिए. सायंकाल को पुनः स्नान करके शुद्ध एवं उज्जवल वस्त्र धारण करके शिव एवं पार्वती की पूजा उपासना करनी चाहिए. माता पार्वती को सुहाग का जोड़ा एवं सुहाग पेटी चढ़ानी चाहिए. भगवान् शिव को धोती, कुर्ता आदि पांच वस्त्र चढाने चाहिए. इसके उपरान्त सौभाग्यवती स्त्री को तेरह प्रकार के मिष्ठान बनाकर सास को भेंट करने चाहिए. अंत में हरितालिका तीज व्रत की कथा का श्रवण करना चाहिए.
व्रत-कथा
माता सती जब अपने पिता दक्ष के होमकुंड में जलकर भस्म हो गईं, तो उसके पश्चात उन्होंने मैना और हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया और पार्वती कहलाईं. पार्वती बाल्यावस्था से ही शिव को पति के रूप में चाहती थीं. इसके लिये उन्होंने कठोर शिव्राध्ना करना आरम्भ किया. उन्होंने वर्षों तक अन्न त्यागकर शिव की कठोर तपस्या के. जब उनकी तपस्या फलोन्मुख हो रही थी, तो उन्हीं दीयों देवर्षि नारद हिमालय के यहाँ आए और उन्होंने पार्वते के साथ विवाह के लिये भगवान् विष्णु का प्रस्ताव रखा. हिमालय भी इस प्रस्ताव को पाकर प्रसन्न हो गए और पानी पुत्री पार्वती को इसके लिये मनाने का प्रयास किया. पार्वतीजी इस प्रस्ताव को सुनकर मूर्छित हो गई, जब उन्हें होश आया, तो उन्होंने पुनः घने जंगलों में जाकर शिव की आराधना करने का निश्चय किया. अपनी सखियों के साथ पार्वतीजी ने घने जंगलों में जाकर एक गुफा में भाद्रपद शुक्लपक्ष की त्रितीय के दिन शिवलिंग की स्थापना करके शिव की तपस्या आरम्भ कर दी. शीघ्र ही भगवान् शिव ने पार्वतीजी को दर्शन दिए और अपने पत्नी के रूप में वरण करने का वरदान भी दिया. इस प्रकार हरितालिका तीज के दिन तपस्या आरम्भ करने के कारण पार्वतीजी को मनोनुकूल एवं शिवजी जैसा वर प्राप्त हुआ. इसके बाद से ही मनोनुकूल वर की कामना एवं अखण्ड सौभाग्य की प्राप्ति के लिये स्त्रियाँ हरितालिका तीज व्रत करती हैं.
व्रत-कथा
माता सती जब अपने पिता दक्ष के होमकुंड में जलकर भस्म हो गईं, तो उसके पश्चात उन्होंने मैना और हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया और पार्वती कहलाईं. पार्वती बाल्यावस्था से ही शिव को पति के रूप में चाहती थीं. इसके लिये उन्होंने कठोर शिव्राध्ना करना आरम्भ किया. उन्होंने वर्षों तक अन्न त्यागकर शिव की कठोर तपस्या के. जब उनकी तपस्या फलोन्मुख हो रही थी, तो उन्हीं दीयों देवर्षि नारद हिमालय के यहाँ आए और उन्होंने पार्वते के साथ विवाह के लिये भगवान् विष्णु का प्रस्ताव रखा. हिमालय भी इस प्रस्ताव को पाकर प्रसन्न हो गए और पानी पुत्री पार्वती को इसके लिये मनाने का प्रयास किया. पार्वतीजी इस प्रस्ताव को सुनकर मूर्छित हो गई, जब उन्हें होश आया, तो उन्होंने पुनः घने जंगलों में जाकर शिव की आराधना करने का निश्चय किया. अपनी सखियों के साथ पार्वतीजी ने घने जंगलों में जाकर एक गुफा में भाद्रपद शुक्लपक्ष की त्रितीय के दिन शिवलिंग की स्थापना करके शिव की तपस्या आरम्भ कर दी. शीघ्र ही भगवान् शिव ने पार्वतीजी को दर्शन दिए और अपने पत्नी के रूप में वरण करने का वरदान भी दिया. इस प्रकार हरितालिका तीज के दिन तपस्या आरम्भ करने के कारण पार्वतीजी को मनोनुकूल एवं शिवजी जैसा वर प्राप्त हुआ. इसके बाद से ही मनोनुकूल वर की कामना एवं अखण्ड सौभाग्य की प्राप्ति के लिये स्त्रियाँ हरितालिका तीज व्रत करती हैं.
हरितालिका तीज व्रत कथा के बारे में जानकारी देने के लिए आपक बहुत बहुत धन्यवाद
जवाब देंहटाएंआपका ये लेख जोकि हरितालिका तीज व्रत कथा se संबंधित है बहुत ही उपयोगी है, इसके आपको बहुत बहुत धन्यवाद।
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