हरित विकास की समर्थक
1990 के शुरूआती दिनों में उन्होंने कई वैश्विक पर्यावरण मुद्दों पर गहन शोध और वकालत करना शुरू कर दिया। वर्ष 1985 से ही वे कई पत्रपत्रिकाओं में लिख कर जागरूकता फैलाने के काम में लगी रहीं।
उन के बेहतरीन कार्यों के प्रतिफल में वर्ष 2005 में उन्हें भारत सरकार द्वारा पदमश्री से सम्मानित किया गया। इसी वर्ष उन्हें स्टाकहोम वाटर प्राइज और वर्ष 2004 में मीडिया फाउंडेशन चमेली देवी अवार्ड प्रदान किया गया। अपने कार्यों से मिले इन अवार्डों से संतुष्ट होकर उन्होंने इस ओर काम करना छोड़ा नहीं, न ही उन्होंने इस ओर कोई सुस्ती बरी। उन की जागरूकता अभियान का दायरा प्रतिवर्ष बढ़ता ही रहा है। वे पर्यावरण से जुड़े मुद्दों के अलावा नक्सलवाद, राजनीतिक भ्रष्टाचार, बाघ व पेड़ संरक्षण और अन्य सामाजिक विषयों पर अपने विचार व्यक्त करने लगी हैं। इस के लिये उन्होंने प्रिंट मीडिया का सहारा लिया है। देश के ज्यादातर पढ़े जाने वाले अखबारों में उन के कालम थोड़े-थोड़े अंतराल पर आते रहते हैं। उन का मानना है की जागरूकता फैलाने के लिये किसी सशक्त माध्यम का इस्तेमाल होना चाहिए। जो आम लोगों तक आप की बात पहुंचा सके।
इतनी ख़ास होने पर भी जब आप सुनीता को सामने से देखेंगे तो उन्हें सादे विचार और व्यवहार के साथ शालीन कपड़ों और चेहरे पर तेज आभा के साथ पाएंगे। उन का व्यक्तित्व न केवन उन के लगभग 100 कर्मचारियों वाले संस्थान सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरमेंट के लोगों के लिये प्रेरणास्त्रोत है बल्कि युवा पीढी और महिलाओं के लिए उन का सम्पूर्ण अस्तित्व प्रेरणादायक है।
सुनीता जी को हार्दिक बधाई...
जवाब देंहटाएंregards
ऐसी ही दस-बीस और महान नारियाँ भारत में पैदा हों।
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