आरती श्री वैष्णो देवी (त्रिकूट मन्दिर) जी की
हे मात मेरी, हे मात मेरी,
कैसी यह देर लगाई हे दुर्गे। हे...
भवसागर में गिरा पड़ा हूँ,
काम आदि ग्रह से घिरा पड़ा हूँ।
मोह आदि जाल में जकड़ा पड़ा हूँ। हे...
न मुझमें बल है न मुझमें विद्या,
न मुझमें भक्ति है न मुझमें शक्ति।
शरण तुम्हारी गिरा पड़ा हूँ। हे...
न कोई मेरा कुटुंब साथी,
न ही मेरा शरीर साथी,
आपही उबारो पकड़ के बाँही। हे...
चारण कमल की नौका बनाकर,
में पार हुंगा ख़ुशी मानकर।
यमदूतों को मार भगाकर। हे...
सदा ही तेरे गुणों को गाऊं,
नित प्रति तेरे गुणों को गाऊं। हे...
न में किसी का न कोई मेरा,
चाय है चारों तरफ अँधेरा।
पकड के ज्योति दिखा दो रास्ता। हे...
शरण के ज्योति दिखा दो रास्ता। हे...
करो यां नैया पार हमारी।
कैसी यह देर लगाईं है दुर्गे। हे...
सुन्दर सृजन, सुन्दर भावाभिव्यक्ति, आभार.
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