दीपावली के दिन घनी काली अंधेरी रात होती है। काली अंधेरी रात या कोई भी अंधकार कष्ट का प्रतीक माना गया है, क्योंकि अंधकार में मार्ग दिखाई नहीं देता, व्यक्ति रास्ता भटक जाता है। मन में जब तक दुख: का, ग़म का अंधेरा रहेगा, तब तक व्यक्ति सफलता नहीं पा सकेगा। अंधेरे से उजाले की ओर जाने की प्रक्रिया को ही अमावस्या शांति कहते हैं। जितनी अधिक काली अंधेरी रात होती है, वह इस बात की प्रतीक है कि अब आगे जल्दी रोशनी का पहर आने वाला है। जैसे-जैसे सुबह नज़दीक आती है, अंधेरा और बढ़ता जाता हैं। जैसे-जैसे सुबह की किरण फूटने वाली होती है, व्यक्ति दुनिया की सुध-बुध भूलकर चैन से सोना चाहता है। सुबह का आना इस बात का प्रमाण है कि कोई भी अंधेरा अधिक समय तक नहीं टिकता। अधिक ग़म, अधिक ख़ुशी अधिक समय तक नहीं टिकती। अत्यधिक ग़म इस बात का संकेत हैं कि अब जल्दी ही ख़ुशी मिलने वाली है, अत्यधिक नींद इस बात का संकेत हैं कि सपनों की दुनिया के आगे वास्तविक उपलब्धि हाथ से जाने वाली है। कहा भी गया हैं कि ’जो सोवत हैं वो खोवत है, जो जागत है वो पावत है’ अर्थात ब्रह्म मुहूर्त के बाद सोना ज़िंदगी में बहुत कुछ खो देने का संकेत कहा गया है।
दीपावली की अमावस्या के दिन लकड़ी की दो चौकी लें। जिस दिन दीपावली की अमावस्या पड़े, उस दिन उस समयावधि से पहले सरसों के तेल का एक बड़ा दिया जला देवें और शनिदेव की तस्वीर, प्रतिमा या मंत्र के आगे तेल का दिया रखकर यह प्रार्थना करें कि हमारे घर में लक्ष्मी के आगमन में, सफलता में जो भी विघ्न, बाधा, परेशानी, रुकावट आ रही हैं, वे दूर हो जायें और उस दिये को अखण्ड जलने दें। दूसरे दिन के दीपावली पूजन हो जाने तक उसे जलाना चाहिए। जब दीपावली पूजन का मुहूर्त हो, उस समय लकड़ी की एक चौकी पर महालक्ष्मी माता की तस्वीर रखें और दूसरी चौकी पर शनि देव की तस्वीर, काला वस्त्र चौकी पर बिछाकर रखें। लक्ष्मी जी वाली चौकी पर रक्त लाल रंग का वस्त्र बिछायें। लक्ष्मी जी की हल्दी, कुमकुम, अष्टगंध, मिष्ठान, खील-बताशे, पकवान व खीर-पूड़ी अर्पण कर विधिवत पूजन करें। उन्हें लाल पुष्प व लाल वस्त्र अर्पण करें। शनिदेव को काले अक्षत, नीले पुष्प से पूजन करके, उड़द व तिल से बने पकवान भोग में अर्पण करें। जब भोग लगायें, तब जल भी साथ में रखें। एक-एक सूखा नारियल और एक-एक पानी वाला नारियल दोनों चौकी पर रखें। सामने बैठकर एक माला शनि महामंत्र की और एक माला महालक्ष्मी मंत्र की जाप करें। मंत्र जाप प्रत्येक सदस्य भी अपने-अपने उज्ज्वल भविष्य के लिए व जीवन में वैभव की प्राप्ति के लिए कर सकता है। जो मंत्र जाप करने हैं, वे निम्न हैं :
शनि महामंत्र
ऊँ नीलांजन समाभासं रवि पुत्रं यमाग्रजम्।
छाया मार्तण्ड सम्भूतं तम् नमामि शनैश्चरम्।।
महालक्ष्मी मंत्र
ऊँ श्रीं ह्यीं कमले कमलालये प्रसीद श्रीं ह्यीं श्रीं ऊँ महालक्ष्मये नम:।
इन दोनों मंत्रों के जाप के पूर्व अपने गुरू का व गणपति जी का मंत्र भी ११-११ बार पाठ कर लें। मंत्र पाठ के बाद आरती करें, कपूर जलायें। फिर जो भी प्रसाद शनिदेव के आगे रखा है और जो भी लक्ष्मी जी के आगे रखा हो, वो सभी अलग-अलग कपड़े में बाँध दें। शनिदेव के काले वस्त्र की चौकी पर उड़द, तिल, गुड़ के जो भी पकवान उड़द, तिल, गुड़ के साथ रखे थे, उन्हें काले कपड़े में बांध दें और लक्ष्मी जी वाला सारा सामान लाल कपड़े में बांध दें। मगर दोनों चौकी से पानी वाला नारियल अलग निकाल कर सामान को बांधना हैं। काले कपड़े वाला सामान किसी ग़रीब को या भिखारी को उसी रात्रि में दे दें। साथ में एक भोजन का बड़ा पेकेट भी उसे भोजन करने के लिए दें। लाल कपड़े वाला सामान किसी भी मंदिर के पुरोहित को दे दें। पानी वाले नारियल जो अलग निकाले थे, दोनों अपने घर के दरवाज़े पर यह कहकर फोड़ें कि मेरी ज़िन्दगी में धन प्राप्ति में, सफलता प्राप्ति में जो भी बाधा आ रही हैं उसे दूर करने के लिए हम यह श्रीफल बलि दे रहे हैं। नारियल फोड़ने के बाद उसके दोनों टुकड़ों में शक्कर में थोड़ा-सा दो चम्मच घी मिलाकर भर देवें। शक्कर से भरे यह नारियल अपने घर के अंदर या बाहर पीपल के बड़े पेड़ के नीचे ऐसी जगह पर अलग-अलग रखें, जहाँ पर खूब चीटिंया लगनी चाहिए। इस प्रकार से शनिदेव का प्रकोप इस दिन शांत होता हैं और महालक्ष्मी जी शीघ्र प्रसन्न हो जाती हैं। यदि घर में या घर के आस-पास कोई विधवा महिला हो तो दीपावली वाले दिन उसे भोजन, उपहार, वस्त्र आदि श्रद्धा से अवश्य देना चाहिए। ऐसा करने से सुहाग अमर होता है और परिवार में सुख बढ़ता है।
दूसरा उपाय यह हैं कि शनि मंत्र का और श्री यंत्र का अभिषेक पंचामृत से करें। फिर शुद्ध जल में धोकर व पोंछकर, अष्टगंध, केशर, चंदन से यंत्रों को लेपित करें। पुष्प, धूप, दीप, अगरबत्ती से आरती करके प्रसाद, मिष्ठान का अर्पण करें। दोनों यंत्रों के आगे अलग-अलग थाली में एक व्यक्ति की खुराक के बराबर भोजन सजाकर रखें। रात्रि भर भोजन रखा रहने दें। दूसरे दिन वह भोजन श्रद्धा से गाय को खिलाकर आयें।
तीसरा उपाय यह हैं कि दीपावली के दिन शनिदेव की प्रसन्नता व लक्ष्मी जी की कृपा प्राप्ति हेतु महालक्ष्मी पूजन के मुहूर्त में हवन ज़रूर करें। हवन के लिए घर में ही यज्ञ कुण्ड जैसा बनाकर या किसी लोहे या ताँबे के पात्र में आम की लकड़ी, गोबर के कण्डे जलाकर घर में ही चारू सामग्री तैयार करके हवन करें। ये हवन की चारू सामग्री जो तिल, शक्कर, घी, चावल से मिलकर बनती है, पूरे १०८ बार शनि महामंत्र की इससे आहुति दें और १०८ बार महालक्ष्मी मंत्र की इससे आहुति दें। शनिदेव को बाद में उड़द, तिल, गुड़ से बने पकवान अग्नि में समर्पित करें। लक्ष्मी जी को ३३ बार खीर-पूड़ी की आहुति समर्पित करें। फिर एक-एक करके सूखा नारियल दोनों देवी-देवताओं के मंत्र के साथ पूर्णाहुति के लिए अग्नि में डालें। गुरू गणपति जी के लिए घी की आहुति दें। यह बड़ा प्रभावकारी उपाय है।
दीपावली का पावन त्यौहार “कार्य सिद्धी” एवं “आर्थिक समृद्धि” सम्बन्धित प्रयोगों को सफलता पूर्वक सिद्ध करने के लिए अबुझ मुहूर्त है। छोटे-छोटे प्रयोगों को करके भी हम आर्थिक समृद्धि प्राप्त कर सकते हैं। आप भी अपने अनुकूल एक या एक से अधिक प्रयोगों को पूर्ण श्रद्धा और विश्वास के साथ करें। आपकी आर्थिक स्थिति सुधरेगी और माँ लक्ष्मी की कृपा अवश्य प्राप्त होगी।
प्रयोग ४ : आर्थिक वृद्धि के लिए सदैव शनिवार के दिन गेहूँ पिसवायें तथा गेहूँ में एक मुट्ठी काला चना अवश्य डालें।
प्रयोग ५ : यदि आपके घर में पहली संतान पुत्र के रूप में प्राप्त हो, तो उसका दाँत जब भी गिरे उसे ज़मीन पर गिरने से पहले हाथ से उठाकर पवित्र स्थान पर रख दें और गुरू पुष्य नक्षत्र में दाँत को गंगा जल से शुद्ध करें और उसे धूप-दीप दिखाकर चाँदी की डिबिया में रख लेवें। इस डिबिया को सदैव अपने पास रखें या अपने धन स्थान में रखें। जब बच्चे के जन्म नक्षत्र आवे तो पुन: दाँत को शुद्ध करें और उसे धूप-दीप दिखायें ऐसा प्रत्येक माह करें। आपके पास धन की कोई कमी नहीं होगी।
प्रयोग ६ : यदि आप आर्थिक रूप से बहुत ही समस्याग्रस्त हैं तो २१ शुक्रवार “वैभव लक्ष्मी” का पूजन करें, व्रत करें और एक वर्ष से कम आयु की ५ कन्याओं को खीर एवं मिश्री प्रत्येक शुक्रवार को खिलायें। कुछ समय बाद ही आपकी परेशानी कम होने लगेगी।प्रयोग ७ : यह एक ऐसा प्रयोग हैं जिससे आर्थिक सम्पन्नता स्थायी रूप से प्राप्त की जा सकती है। आप यह प्रयोग दीपावली की रात्रि को करें। इसे आप स्वयं भी कर सकते हैं या किसी योग्य ब्राह्मण से करवा सकते हैं।
दीपावली की रात्रि में एक मोती शंख या दक्षिणावर्ती शंख को दीपावली पूजन के साथ ही पूजें। किसी भी लक्ष्मी मंत्र की पाँच माला या “श्री सूक्त” के सात पाठ करें। शंख को पूजा स्थान पर ही रहने दें। अगले दिन प्रात:काल स्नान करके लाल आसन पर बैठकर अपने सामने शंख को रख कर उसी मंत्र का या “श्री सूक्त” का पाठ करें। प्रत्येक मंत्र के के बाद एक साबुत चावल का दाना शंख में डालें। इस प्रकार आप १०८ बार मंत्र पाठ कर इतने ही चावल के दाने शंख में डालें। इस प्रकार प्रत्येक दिन पाठ करें। यह आपको तब तक करना हैं जब तक कि शंख चावलों से न भर जाये। जिस दिन शंख भर जाये उस दिन शाम को एक सुहागिन, पाँच एक वर्ष से कम की कन्यायें और कम-से-कम एक ब्राह्मण को भोजन कराके और दक्षिणा देकर विदा करें तथा शंख को किसी लाल वस्त्र में बाँधकर अपने धन स्थान में रख दें। जिस दिन यह प्रयोग समाप्त हो, उसके ४० दिन तक शंख को धूप अवश्य दिखायें। इसके बाद शंख को पूजा स्थान या धन स्थान पर रखकर भूल जायें। आपके इस प्रयोग से माँ लक्ष्मी का आपके यहाँ स्थायी वास हो जायेगा। सावधानी यह रखें कि इस प्रयोग की चर्चा किसी से ना करें और जो चावल प्रयोग में लायें वो खण्डित ना हो। ऐसा लगातार चार दिन तक करें। आप पर माँ लक्ष्मी की अवश्य कृपा होगी।
शास्त्रानुसार प्रत्येक पूर्णिमा पर प्रात: १० बजे पीपल वृक्ष पर माँ लक्ष्मी का फेरा लगता है। इसलिए जो व्यक्ति आर्थिक रूप से परेशान हो, वो इस समय पीपल के वृक्ष के पास जाये, उसका पूजन करें, जल चढ़ाये और लक्ष्मी जी की उपासना करे और कम-से-कम कोई भी एक लक्ष्मी मंत्र की एक माला करके आये।
14 फ़रवरी 2012
दीपावली पर धन-प्राप्ति के चमत्कारी प्रयोग
Labels: देवी-देवता
Posted by Udit bhargava at 2/14/2012 03:19:00 pm
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